उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को कहा कि अंग्रेजी मानसिकता बीमारी है, न कि अंग्रेजी भाषा। देश को अपनी समृद्ध धरोहर पर गर्व होना चाहिए। इस महीने की शुरुआत में हिंदी दिवस के अवसर मीडिया के एक वर्ग ने नायडू के हवाले से लिखा था कि ‘अंग्रेजी ब्रिटिश द्वारा पीछे छोड़ी गई बीमारी है।’
गोवा के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) के चौथे दीक्षांत समारोह में छात्रों को संबोधित करते हुए नायडू ने कहा, ‘कार्यक्रम के दौरान मैं अपनी मातृभाषा की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने की बात कही थी। लेकिन मीडिया के एक वर्ग ने इसे गलत तरीके से लिखा।
मेरा मानना है कि भाषा नहीं, बल्कि अंग्रेजी मानसिकता बीमारी है जो ब्रिटिशों से विरासत में मिली है। वे लोग हमारे मन में एक हीनभावना छोड़ गए कि अंग्रेज महान हैं, विदेशी महान हैं और हम कुछ भी नहीं। हमें इस मानसिकता से बाहर आना होगा।’
उच्च शिक्षा में सुधार की जरूरत: उपराष्ट्रपति देश में समकालीन आवश्यकताओं के साथ उच्च शिक्षा में सुधारों पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षा सिर्फ रोजगार पाने का जरिया नहीं है, बल्कि यह छात्रों को सशक्त बनाने और उन्हें वैश्विक नागरिक बनाने में भी मददगार है।
उन्होंने कहा, ‘देश की उच्च शिक्षा में सुधार होना चाहि। बुनियादी नियोक्ता कौशल के बिना हर साल लाखों छात्र इंजीनियरिंग में स्नातक होते हैं। हमें इस प्रचलन को बंद करना होगा। शैक्षिक पाठ्यक्रम उद्योगों की आवश्यकताओं को देखते हुए तैयार किए जाने और शिक्षा पद्धति में सुधार किए जाने की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए कुछ हफ्ते इंटर्न के तौर पर काम करना आवश्यक होना चाहिए ताकि पहले ही कुछ अनुभव प्राप्त हो सके।’