इस्लामी जम्हूरिया की दो तरुणिओं समीना बेग (पाकिस्तान) और अफसानेह हेसामिफर्द (ईरान) ने विश्व में सबसे ऊंची चोटी (एवरेस्ट के बाद) काराकोरम पर्वत श्रंखला पर फतह हासिल कर, जुमे (22 जुलाई 2022) की नमाज अता की थी, तो हर खातून को नाज हुआ होगा। सिर्फ सरहद पर ही नहीं, ऊंचाई पर भी पहुंच गयी। यही इन दोनों युवतियों ने बता दिया कि सब मुमकिन है। बस इच्छा शक्ति होनी चाहिये। सुन्नी समीना और शिया अफसानेह आज स्त्रीशौर्य के यश की वाहिनी बन गयीं हैं।
मगर फिर याद आती है मांड्या (कर्नाटक) की छात्रा मुस्कान खान, जिसने पढ़ाई रोक दी थी। क्योंकि उसे कॉलेज के नियमानुसार हिजाब नहीं पहनने दिया गया था। बजाये जीवन की ऊंचाई के मुस्कान खान अदालत (हाईकोर्ट—बंगलूर और उच्चतम—दिल्ली) तक चली गईं। मुसलमान उद्वेलित हो गये। क्या होना चाहिये था? शायद ईस्लामी मुल्कों की तरुणियां ज्यादा मुक्त हैं। मगर सेक्युलर भारत में क्यों नहीं हैं ? हिन्दुस्तान में कौमियत मजहब पर आधारित नहीं है। फिर भी हिजाब पर बवाल ?
संयोग है कि यह दोनों एशियायी युवतियां सरलता से माउन्ट एवरेस्ट फतह कर चुकी हैं। काराकोरम पर्वत श्रंखला निहायत खतरनाक बतायी जाती है। पर वाह! समीना और अफसानेह! अल्लाह का शुक्र है। कामयाबी हासिल हो गयी। गत शुक्रवार पाकिस्तानी तथा ईरानी महिलाओं के लिए फख्र का दिन था।
मुझे याद है जब दिसम्बर 1988 को बेनजीर भुट्टो इस्लामी पाकिस्तान की वजीरे आजम चुनी गयीं थीं। वे अपने वालिद जुल्फीकार अली भुट्टो के साथ दो दशक हुए पूर्वी पाकिस्तान हारने (2 जुलाई 1972) के बाद संधि—वार्ता हेतु शिमला आई थीं। तब वे महज अट्ठारह साल की कमसिन थीं। एक दिलफेंक ने अखबारों में खत लिख दिया था कि बेनजीर को दिल्ली में राजदूत नियुक्त कर दें। भारत—पाक रिश्ते बेहतरीन हो जायेंगे। मगर कट्टर इस्लामियों ने बेनजीर को मार डाला।
पाकिस्तान को गौर करना होगा कि कैसे पांच भारतीय लड़कियां दुनिया के सभी सबसे ऊंचे शिखिर एवरेस्ट को फतह कर चुकी हैं। इनमें अरुणिमा सिन्हा भी हैं, जो दुनिया के छह पर्वत शिखरों को जीत चुकीं हैं। एवरेस्ट भी। हालांकि इस वालीबाल खिलाड़ी का पैर काट दिया गया था। वह भी एक त्रासदभरी दास्तां हैं। यूपी के अकबरपुर (फैजाबाद, अब अंबेडकरनगर) की वासी अरुणिमा सिन्हा केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के इन्टर्व्यू के लिये जा रहीं थीं। नयी दिल्ली—पद्मावती एक्सप्रेस रेल से (2011)। बरेली के पास कुछ चोर लोग उनका पर्स छीन रहे थे। जब अरुणिमा भिड़ी तो उन चोरों ने उसे पटरी पर फेंक दिया। सामने से एक रेल आ रही थी। उसका पैर कट गया। पर वह निराश नहीं हुयीं। अंतत: एवरेस्ट पर चढ़ी। जीवनभर उसके लिये सब कुछ संघर्ष का पर्याय रहा। भारतीय रेल ने उसे नौकरी दी। अरुणिमा को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पद्मश्री से नवाजा भी।
अन्य चार महिलाएं जो सफल पर्वतारोही थी : प्रथम बछेन्द्री पाल, जो 1984 में एवरेस्ट शिखर की विजेता रही। इस पद्मश्री विजेता की आत्मकथा ”शिखर तक मेरी यात्रा” हर युवती के लिये अनिवार्यत: पठनीय है। अगली वीरबाला है तेरह—वर्षीया तेलुगुभाषी बालिका मालवथ पूर्णिमा जो एवरेस्ट पर सवार हुयी। फिर आयी कु. संतोष यादव और प्रेमलता अग्रवाल। यह दोनों एवरेस्ट पर चढ़ चुकीं हैं।
मगर भारत के लिये पर्वतारोहण के इतिहास में यादगार घटना थी 29 मई 1953 की है। जब शेरपा तेनसिंग नोर्गी जो प्रथम मानव बने जिन्होंने एवरेस्ट शिखर पर कदम रखकर हाथ बढ़ा कर नीचे खड़े न्यूजीलैण्ड के सर एडमंड हिलेरी को ऊपर खींचा। विश्व के सबसे ऊंचे स्थल पर पहुंचाया था। मुझे यह दिन भली भांति याद है क्योंकि 29 मई 1953 को मेरा जन्मदिन था।
अब लौटे ईरान और पाकिस्तानी पर्वतारोहियों पर : समीना और अफसानेह पर। मानव समाज आश्वस्त हो गया होगा कि इन दो युवतियों ने दिखा दिया की दकियानुसी जन लड़कियों के पैर नहीं बांध सकते। जितने भी मजहबी बहाने ढूंढ लें। अंतत: महिला को उस मंजिल तक जाना ही है जिसके आगे राह नहीं।