नई दिल्ली। ब्रिटिश सेना में भारतीय सिपाही मंगल पांडे जो 1857 में भारत की स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के पीछे के प्रमुख व्यक्तियों में से थे , आज उनकी जयंती है। वह कलकत्ता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री की पैदल सेना के सिपाही नंबर 1446 थे। उनकी भड़काई क्रांति की आग से ईस्ट इंडिया कंपनी हिल गई थी। मंगल पांडे ने ही ‘मारो फिरंगी को’ नारा दिया था। मंगल पांडे को आजादी का सबसे पहला क्रांतिकारी माना जाता है।
क्रांतिकारी मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे और माता का नाम अभय रानी था। मंगल पांडे की शहादत की याद में भारत सरकार ने बैरकपुर में शहीद मंगल पांडे महाउद्यान बनवाया था।
29 मार्च, 1857 के दिन दोपहर के वक़्त जब बैरकपुर में तात्कालिक रूप से तैनात 34वीं बंगाल नेटिव इंफैट्री के एक अधिकारी लेफ्टिनेंट बौघ को सूचना दी गई कि उसकी रेजीमेंट के कई जवान बहुत आक्रोश में हैं और उनमें से एक सिपाही मंगल पांडे एक लोडेड मस्कट के साथ पैरेड ग्राउंड से रेजीमेंट के गार्ड रूम के सामने आ रहा है और दूसरे सिपाहियों को विद्रोह के लिए भड़का रहा है और धमकी दे रहा है कि जो भी पहला यूरोपीय व्यक्ति उसके सामने आएगा, उसे वह गोलियों से उड़ा देगा।
वह व्यक्ति था वीर मंगल पांडे। दो ब्रितानी सिपाहियों पर हमला करने के कारण, मंगल पांडे को 20 वर्ष की उम्र में 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दे दी गई थी।
कोर्ट मार्शल के बाद उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देनी तय की गई थी लेकिन हालत बिगड़ने की आशंका के चलते अंग्रेजों ने गुपचुप तरीके से 10 दिन पहले उन्हें फंदे पर लटका दिया था।