नई दिल्ली। अभी विश्व कोरोना वायरस जनित महामारी से जूझ ही रहा था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पश्चिम अफ्रीका में एक और वायरल संक्रमण के पहले मामले की पुष्टि की है जो कि मारबर्ग वायरस से होने वाला रोग है, यह वायरस चमगादड़ों द्वारा फैलता है और जिसकी मृत्यु दर 88 प्रतिशत तक बताई गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मारबर्ग वायरस कोरोना और इबोला से भी अधिक खतरनाक और जानलेवा है।
मारबर्ग वायरस से होने वाली बीमारी का पहला मामला दक्षिणी गुएकेडौ प्रान्त में दर्ज किया गया। पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना में मारबर्ग वायरस के 2 मामले सामने आए हैं तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इसे लेकर चेतावनी जारी की है। मारबर्ग के बारे में यह कहा जाता था कि यदि इसकी जद में कोई आ गया, तो उसकी मौत लगभग निश्चित है।मारबर्ग वायरस के संक्रमण का पता एंटीजन डिटेक्शन टेस्ट, सीरम न्यूट्रलाइजेशन टेस्ट, सेल कल्चर द्वारा वायरस आइसोलेशन या आरटी-पीसीआर के जरिए किया जाता है।
इसके लक्षणों की बात करें तो तेज बुखार, तेज सिरदर्द के साथ मांसपेशियों में दर्द होता है। संक्रमण के तीसरे दिन मरीज को पतले दस्त, पेट में दर्द और ऐंठन, मतली और उल्टी शुरू होती है, जो एक सप्ताह तक बनी रह सकती है। इसके गंभीर मामलों में आमतौर पर रक्तस्राव होता है। इसके कारण मृत्यु आमतौर पर शुरुआत के 8 से 9 दिनों के बीच होती है। इस वायरस से होने वाली बीमारी की अवधि 2 से 21 दिनों की होती है।
इसके संक्रमण फैलने की बात करें तो
मारबर्ग एक से दूसरे व्यक्ति के सीधे संपर्क में आने से फैलता है। यह संक्रमित लोगों के रक्त, स्राव, अंगों या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों से और सामग्रियों से फैल सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक 1967 में जर्मनी के मारबर्ग और फ्रैंकफर्ट और सर्बिया के बेलग्रेड में एक साथ हुए दो बड़े प्रकोपों में इस बीमारी की पहली बार पहचान की गई।