नई दिल्ली। भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकया नायडु ने देश में थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी जेनेटिक बीमारियों से निपटने का आवाहन किया है। हाल ही में उन्होंने हैदराबाद स्थित थेलेसीमिया तथा सिकलसेल सोसाइटी में दूसरे ब्लड ट्रांस्फ्यूजन यूनिट तथा एक अत्याधुनिक डायग्नॉस्टिक प्रयोगशाला का उद्घाटन करते हुए यह बात कही।
भारतीय उपराष्ट्रपति ने राज्यों को आनुवांशिक बीमारियों की समय से पहचान करने और उसका प्रबंधन करने के लिए बच्चों की बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग कराने का सुझाव भी दिया है। चूंकि भारत में हर साल करीब 10 से 15 हजार बच्चे थेलेसीमिया की अनुवांशिक बीमारी के साथ जन्म लेते हैं जिनके इलाज का दो ही विकल्प है या तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराया जाय या नियमित अंतराल पर ब्लड ट्रांस्फ्यूजन हो।
आंकड़े बताते हैं कि देश के निम्न सामाजिक, आर्थिक वर्गों के लोगों में बीटा थेलेसीमिया के जीवाणु 2.9 से 4.6 प्रतिशत तथा जनजातीय आबादी में सिकलसेल एनेमिया के 5 से 40 प्रतिशत तक जीवाणु मौजूद हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा कि इन बीमारियों की रोकथाम और पहले से इनका पता लगाने के कार्य में सबसे बड़ी बाधा इस बारे में जागरुकता का अभाव है। हालांकि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने थेलेसीमिया, सिकलसेल एनीमिया और अन्य प्रकार के एनीमिया की रोकथाम और प्रबंधन के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं।
भारतीय उपराष्ट्रपति ने यह भी सुझाव दिया कि थैलीसीमिया और सिकल सेल एनीमिया जैसी अन्य अनुवांशिक बीमारियों की शीघ्र पहचान कर और रोगियों को परामर्श देकर ऐसे स्त्री-पुरुष के विवाह को रोका जा सकता है जो विकारयुक्त जीन्स के मौन वाहक ( साइलेंट वेक्टर ) हों और जिनसे पैदा होने वाले बच्चों में गंभीर अनुवांशिक विकार आने की संभावना हो।