बद्रीनाथ/जोशीमठ। चार धाम यात्रा चरम पर है। दो वर्ष के कोरोना काल के बाद तय समय पर शुरू हुई चार धाम यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं।
राज्य सरकार ने जहां धामों में प्रतिदिन पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का निर्धारण किया है वहीं बदरी-केदार मंदिर समिति ने देशभर के श्रद्धालुओं से आवासीय व्यवस्था सुनिश्चित करने के बाद ही धामों में पहुंचने के आग्रह के साथ ही धामों में अव्यवस्था से बचने के लिए अन्य पौराणिक महत्व के मंदिरों की यात्रा करने की भी सलाह दी है।
दरअसल हिमालय के चारों धामों के कपाट खुलने के बाद करीब 45 दिनों तक यात्रा चरम पर रहती है, जिसका एक कारण स्कूल-कालेजों का ग्रीष्म कालीन अवकाश और मैदानी क्षेत्रों में भीषण गर्मी का होना भी है। हालांकि बीते वर्षों से सितंबर से नवंबर माह तक भी यात्रियों का बेहतर आवागमन हो रहा है।
प्रश्न यह है कि जब मुख्यमंत्री ने अन्य धामों के साथ ही श्री बदरीनाथ धाम के लिए प्रतिदिन पहुंचने वाले यात्रियों की संख्या 15 हजार से बढ़ाकर 16 हजार कर दी और बीकेटीसी आवासीय समस्या का हवाला दे रही है तो पीक सीजन में पंडा पुरोहितों के लिए मंदिर समिति की धर्मशालाओं का अधिग्रहण क्यों जरूरी समझा गया? यह अधिग्रहण 45 दिन की मुख्य यात्रा के बाद भी तो किया जा सकता था।
लेकिन प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट बदरीनाथ महायोजना का भूत ऐसा सिर चढ़कर बोल रहा है कि ना तो तीर्थ यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखा जा रहा है और ना ही व्यापारियों की समस्याओं का। हालांकि महायोजना निर्माण के बाद बदरीनाथ धाम का कायाकल्प होना निश्चित है।
वर्तमान में बदरीनाथ मास्टर प्लान कार्यों की मॉनीटिरिंग कर रहे संयुक्त मजिस्ट्रेट ने बदरी-केदार मंदिर समिति की डालमिया और मोदी धर्मशालाओं के 12 कमरों का अधिग्रहण कर उन पंडा पुरोहितों को आवंटित कर दिया है जिनके पुश्तैनी मकानों को मास्टर प्लान के तहत जमींदोज किया जाना है। बदरी नाथ में अब तक मंदिर के आसपास ही कई दुकानों व मकानों को ध्वस्त किया जा चुका है।