लखनऊ। लखनऊ के डालीगंज पुल से लेकर क्लाक टॉवर के पीछे तक गोमती नदी के किनारे बांग्ला बोलने वाले नागरिकों की संख्या बढ़ती जा रही हैं। स्थानीय नेताओं की मदद से राशन कार्ड बनवाने वाले ये नागरिक अपनी भाषा बोली में ही ज्यादा कर वार्ता करते मिलते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा एजेसियों और स्थानीय जांच यूनिट के अधिकारियों की नजर बांग्ला बोलने वाले नागरिकों पर है। इनकी संख्या गोमती नदी के किनारे है और ये झुग्गी झोपड़ी के रहकर लखनऊ की लड़कों पर तमाम कार्य करते दिखते हैं। छोटे रोजगार कर ये अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। इनकी गतिविधि तब संदिग्ध मानी जाती है, जब स्थानीय स्तर ये क्या कर रहे हैं पता नहीं चल पाता है।
लखनऊ में दस हजार की संख्या में बांग्ला बोलने वाले नागरिक रह रहें है। इसमें आधे से ज्यादा गोमती के किनारे रहते हैं। इनका मुख्य रोजगार श्रम करना है। कारखानों या रोजाना देहाड़ी पर मजदूरी इनकी जरुरत है। साथ ही डलिया बनाना, झाड़ू बनाना, ठेले पर छोटी वस्तुएं-रोजमर्रा की वस्तुएं की बेचना जैसे कार्य ये करते मिलते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद झा ने बताया कि वह मोहन मेकिन में रहते हैं। गोमती नदी का किनारा मोहन मेकिन से जुड़ता हैं और बंधा मार्ग से होते हुए पक्का पुल चला जाता है। बंधा से पास ही रेलवे का ओवरब्रिज है और इसके दोनों छोर पर सैकड़ों झोपड़ी डालकर लोग रहते हैं। ये कहां से आये और कब बस गये, कोई पता नहीं है। और अभी इनकी संख्या बढ़ रही है।
उन्होंने बताया कि अचानक से ऐसे लोगों की संख्या में वृद्धि भी संदेहात्मक है। सुरक्षा के दृष्टि से समाज में संकट की स्थिति पैदा करने वाली है। स्थानीय नेताओं खास तौर पर समाज की बात करने वाले राजनीतिक दल और उनके नेताओं के संरक्षण से ये बांग्ला बोलने वाले लोग पनपते हुए आज बहुतायत हो गये है।
खदरा निवासी दीपू ने बताया कि उनके क्षेत्र में भी बंधा के किनारे बहुत सारी झोपड़ी बनी और बाहर से आकर लोग रहने लगे। वे आयेदिन झगड़ा लड़ाई करते हैं तो विवाद भी कर लेते है। उसमें से कुछ तो समाज में गलत कृत करते हुए पकड़े जा चुके हैं। इन लोगों के राशन कार्ड स्थानीय नेताओं ने बनवाये हैं और आधार कार्ड बनवाने में मदद भी कर रहे है। बाहर से आये ये लोग ज्यादातर नमाज ही करते हैं।