कई सारी फिल्में नेक इरादे से बनती हैं और उनमें बात कहने में एक ईमानदारी भी होती है मगर वह असफल इसलिए हो जाती हैं क्योंकि सिर्फ एक मुद्दा दिखाने का ईमानदार जज्बा एक अच्छी फिल्म बना सके यह जरूरी नहीं! ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ के साथ कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है।
‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ जैसी फिल्म बनाने वाले श्री नारायण सिंह की ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ की बत्ती गुल करने में स्क्रीनप्ले राइटर्स की टीम विपुल रावल, सिद्धार्थ सिंह और गरिमा वहाल के साथ-साथ श्री नारायण सिंह खुद भी जिम्मेदार हैं। कथा और पटकथा दोनों में ही यथार्थ का अभाव नजर आता है। फिल्म एक डिप्लोमा फिल्म की तरह रह जाती है जिसमें ईमानदार फिल्म बनाने की नीयत तो है पर एक विद्यार्थी का नौसिखिया अंदाज भी है। काश श्री नारायण सिंह ने कहानी पर और मेहनत की होती तो यह फिल्म एक अलग स्तर पर खड़ी नजर आती।
अभिनय की बात करें तो शाहिद कपूर इस फिल्म में एक अलग अंदाज में नजर आते हैं। जिस तरह का ग्राफ उन्होंने एक अभिनेता के तौर पर इस किरदार का गढ़ा है वो वाकई दिल छू लेता है। श्रद्धा कपूर जिन्होंने पहली बार किसी मुद्दे पर आधारित फिल्म की है अपने सहज अभिनय से बांधे रखती है। दिव्येन्दू शर्मा ने भी अपनी उपस्थिति सशक्त रूप से दर्ज कराई है। यामी गौतम थोड़ी देर के लिए ही आती है लेकिन अपनी छाप छोड़ जाती है।
अंशुमन महाले की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को दर्शनीय बनाती है। निर्देशक नारायण सिंह एडिटर नारायण सिंह पर हावी रहे इसलिए एडिटिंग में थोड़ी कमजोरी नज़र आती है। हालांकि, अनु मलिक, रोचक कोहली और सचित-परंपरा के गीत कर्णप्रिय बन गए हैं।
कुल मिलाकर ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ ईमानदार विचार का असफल प्रयास है। ईमानदार नीयत और कलाकारों के अभिनय के लिए चाहें तो आप यह फिल्म देख सकते हैं। नहीं भी देखेंगे तो आप ज्यादा कुछ खोने नहीं वाले हैं।
स्टार कास्ट: शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर, दिव्येंदु शर्मा और यामी गौतम
निर्देशक: श्री नारायण सिंह
निर्माता: भूषण कुमार, निशांत पिट्टी व कृष्ण कुमार
रेटिंग: 5 में से 2 स्टार
अवधि: 2 घंटे 41 मिनट