– – डा0 जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल (सी.एम.एस.), लखनऊ
(1) 21वीं सदी में शिक्षा द्वारा बालक का विश्वव्यापी दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए:-
शिक्षित व्यक्ति विश्व में शांति फैलाने में अहम भूमिका निभा सकता है। जब सभी लोग साक्षर अर्थात शिक्षित होंगे तो उनके पास रोजगार होंगे, रोजगार का अर्थ है – आमदनी, स्वच्छता, समृद्धि, खुशहाली और स्वस्थ होंगे। अगर घर-घर में खुशहाली होगी तो लोग आपस में लड़ेंगे नहीं वरन् आपस में मिल-जुलकर एकता के साथ रहेंगे। समृद्धि आने से स्वस्थ मनोरंजन एवं ज्ञान के अनेक साधन उपलब्ध होंगे जिससे अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि के प्रति जागरूकता आयेगी। एकता के वृक्ष पर ही शान्ति के फल लगते हैं। विश्व में शान्ति लाने के लिए पहले हमें प्रत्येक बालक को शिक्षित करके घर-घर में एकता रूपी ज्ञान का दीपक जलाना होगा। शिक्षा के महत्व को समझते हुए ही साक्षरता दर को सुधारने और इस क्षेत्र में अधिक काम करने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा प्रतिवर्ष 8 सितंबर को अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने 17 नवम्बर 1965 को विश्व भर के लोगों को साक्षर अर्थात शिक्षित बनाने के लक्ष्य हेतु प्रतिवर्ष 8 सितंबर को अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाने की घोषणा की थी। सर्वप्रथम 8 सितंबर, 1966 को पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया गया था। तब से प्रत्येक वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाता है।
(2) शिक्षा के द्वारा ही सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो सकते हैं:-
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव डा0 कोफी अन्नान ने कहा था कि ‘‘मानव इतिहास में 20वीं सदी सबसे खूनी तथा हिंसा की सदी रही है।’’ 20वीं सदी में विश्व भर में दो महायुद्धों तथा अनेक युद्धों की विनाश लीला का ये सब तण्डाव संकुचित राष्ट्रीयता के कारण हुआ है, जिसके लिए सबसे अधिक दोषी हमारी शिक्षा है। विश्व के सभी देशों के स्कूल अपने-अपने देश के बच्चों को अपने देश से प्रेम करने की शिक्षा तो देते हैं लेकिन शिक्षा के द्वारा सारे विश्व से प्रेम करना नहीं सिखाते हैं। यदि विश्व सुरक्षित रहेगा तभी देश सुरक्षित रहेंगे। विश्व के बदलते हुए परिदृश्य को देखने से ज्ञात होता है कि 21वीं सदी की शिक्षा का स्वरूप 20वीं सदी की शिक्षा से भिन्न होना चाहिए। 21वीं सदी की शिक्षा उद्देश्यपूर्ण होनी चाहिए जिससे सारी मानव जाति से प्रेम करने वाले विश्व नागरिक विकसित हो। इसलिए 21वीं सदी की शिक्षा को प्रत्येक बालक का दृष्टिकोण संकुचित राष्ट्रीयता से विकसित करके विश्वव्यापी बनाना चाहिए।
(3) युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं:-
मनुष्य को विचारवान बनाने की श्रेष्ठ अवस्था बचपन है। इसलिए संसार के प्रत्येक बालक को विश्व एकता एवं विश्व शांति की शिक्षा बचपन से अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। चूंकि युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए हमंे मानव मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार डालने होंगे। मानव इतिहास में वह क्षण आ गया है जब शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम बनकर विश्व भर में हो रही उथल-पुथल का समाधान विश्व एकता तथा विश्व शान्ति की शिक्षा द्वारा प्रस्तुत करना चाहिए। नोबेल पुरस्कार विजेता महान अर्थशास्त्री जान टिनबेरजेन के यह विचार बरबस हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं कि ”राष्ट्रीय सरकारें विश्व के समक्ष उपस्थित संकटों का हल अधिक समय तक हल नहीं कर पायेंगी। इन समस्याओं के समाधान के लिए विश्व सरकार आवश्यक है।’’ अहिंसा के मसीहा महात्मा गाँधी ने कहा था कि यदि हम वास्तव में विश्व से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करना पड़ेगी।
(4) विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है:-
यदि विश्व के सभी लोग अपने आपसी मतभेदों को एक-एक करके कम करते जायें तथा एकता तथा शान्ति के आदर्शों के अन्तर्गत एकताबद्ध हो जायें तो विश्वव्यापी आतंकवाद ही नहीं वरन् अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी तथा पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ में एन.जी.ओ. का अधीकृत दर्जा प्राप्त भारत का एकमात्र विद्यालय, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के अनुसार विश्व में एक ही शहर में सबसे अधिक बच्चों वाले विद्यालय तथा यूनेस्को शान्ति शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित सिटी मोन्टेसरी स्कूल ने अपना नैतिक उत्तरदायित्व समझते हुए विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए विगत 62 वर्षों से प्रयासरत् है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल का मानना है कि विश्व एकता तथा विश्व शान्ति की शिक्षा ही इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
(5) विवादों का समाधान युद्धों से नहीं वरन् शान्तिपूर्ण परामर्श करके निकाला जाना चाहिए:-
संकुचित राष्ट्रीयता तथा सम्प्रभुता आदि के नाम पर सारा विश्व अलग-अलग टुकड़ों में बंट गया है। दूसरे राष्ट्र को जीतने तथा अपने को सुरक्षित बनाने के प्रयास में राष्ट्रों के बीच परमाणु शस्त्रों की होड़ बढ़ गयी है। इसलिए विश्व के सभी राष्ट्रों का उत्तरदायित्व है कि वे विश्वव्यापी समस्याओं तथा राष्ट्रों के बीच के आपसी मतभेदों का समाधान शान्तिपूर्ण परामर्श करके निकाले। जब तक सारे विश्व में एकता और शान्ति का वातावरण नहीं निर्मित होगा तब तक विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित नहीं हो सकता। हमारे प्रत्येक स्थानीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास इस तरह के होने चाहिए जिससे वीटो पॉवर रहित एक न्यायपूर्ण विश्व का निर्माण हो।
(6) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में ही अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान निहित है:-
हमारे विद्यालय द्वारा प्रतिवर्ष भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 पर विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन विगत 21 वर्षों से प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है। वर्ल्ड जुडीशियरी मानव जाति के सुरक्षित भविष्य की अन्तिम आशा है। हमारे विद्यालय के 55,000 से अधिक बच्चों की ओर से की जा रही विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों के सुरक्षित भविष्य की अपील को विश्व के वर्ल्ड जुडीशियरी का भारी समर्थन मिल रहा है। हमारा विश्वास है कि जगत गुरू भारत अपनी उदार संस्कृति, प्राचीन सभ्यता तथा अनूठे संविधान के अनुच्छेद 51 के आधार पर सारे विश्व में शान्ति स्थापित करेगा।