दयानंद पांडेय। कृपया एक बात कहने की मुझे अनुमति दीजिए। वह यह कि अगर अंगरेज भारत में न आए होते और कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ न होता तो किसी को पाकिस्तान आदि बनाने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती। नौबत ही नहीं आती। पूरा भारत ही अब तक इस्लामी राष्ट्र होता। हम सभी मुसलमान होते। तालिबान होते। अफगानिस्तान , पाकिस्तान और सीरिया से भी बुरी हालत होती हमारी। स्त्रियों की स्थिति जाने क्या होती। क्यों कि इस्लाम की किताब कुरआन में साफ़ लिखा है कि स्त्रियां , पुरुषों की खेती हैं।
अत्याचार ब्रिटिश राज ने भी बहुत किया। धर्म परिवर्तन भी खूब करवाए। लेकिन इस्लाम के अनुयायियों ने जो और जिस तरह किया भारत में , कभी किसी और आक्रमणकारी ने नहीं किया। अब अंगरेजों को तो कुछ कह नहीं पाते लोग। क्यों कि भाई-चारा निभाने के लिए वह यहां अब उस तरह उपस्थित नहीं हैं , जैसे इस्लाम के आक्रमणकारी। जावेद अख्तर जैसे सफ़ेदपोश कठमुल्ले इसी लिए जब-तब आर एस एस के प्रति अपनी घृणा और नफरत का इज़हार करते रहते हैं। यह सब तब है जब कि अब आर एस एस वाले बार-बार इस्लाम के अनुयायियों को भी अपना बंधु बताते हुए कहते हैं कि हम सब का डी एन ए एक है। भाजपा की सरकार सब का साथ , सब का विकास , सब का विशवास और सब का प्रयास कहती ही रहती है। पर जावेद अख्तर जैसे लीगियों को तो छोड़िए तमाम सो काल्ड सेक्यूलर चैंपियंस भी इन दिनों जब कभी विवशता में तालिबान का दबी जुबान ज़िक्र करते हैं तो बैलेंस करने के लिए आर एस एस पर खुल कर हमला करते हैं। दुनिया जानती है , हिंसा इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। नालंदा जैसी विश्वस्तरीय लाइब्रेरी जलाने की लिए इस्लाम को दुनिया जानती है। महीनों जलती रही थी नालंदा लाइब्रेरी।
पूरी दुनिया में हिंसा और आतंक की खेती इन दिनों इस्लाम की ही जानिब हो रहा है। अमरीका , योरोप , कनाडा , फ़्रांस , चीन हर जगह इस्लाम हमलावर है। हमारे भारत में भी। लेकिन हमारे भारत में सेक्यूलर चैंपियंस इस्लाम की हिंसा को आर एस एस से बैलेंस करने की कुटिलता पर कायम हैं। आग को अगर पानी बुझाता है तो यह लोग पानी को भी उतना ही कुसूरवार मान लेने की महारत रखते हैं। कुतर्क यह कि अगर पानी न होता तो आग लगती ही नहीं। पानी ने ही आग को उकसाया कि आग लगाओ। इस मासूमियत पर भला कौन न मर जाए। सोचिए न कि पाकिस्तान और भारत में उपस्थित सेक्यूलर चैंपियंस दोनों ही बहुत ज़ोर-ज़ोर से आर एस एस-आर एस एस चिल्लाते हैं। सावरकर का स्वतंत्रता संग्राम, उन की वीरता और विद्वता भूल जाते हैं। भूल जाते हैं कि सावरकर इकलौते हैं जिन्हें ब्रिटिश राज में दो बार आजीवन कारावास की सज़ा मिली वह भी काला पानी की।
क्यों मिली? क्या मुफ्त में?
जिस ने धर्म के नाम पर पाकिस्तान बनाया , उस जिन्ना का नाम लेते हुए इन की जुबान को लकवा मार जाता है। पाकिस्तान बनाने के लिए डायरेक्ट एक्शन करवाया जिन्ना ने । डायरेक्ट एक्शन मतलब हिंदुओं को देखते ही मार दो। इस का भी ज़िक्र नहीं करते। लेकिन इस्लाम के अत्याचार से बचने के लिए सावरकर के द्विराष्ट्र सिद्धांत की बात चीख-चीख कर करते हैं। एक राहुल गांधी नाम का नालायक़ है जो देश और कांग्रेस की राजनीति पर बोझ बना हुआ है। यह राहुल गांधी चिल्लाता है , मैं राहुल सावरकर नहीं हूं , राहुल गांधी हूं ! यह मूर्ख यह नहीं जानता कि संसद भवन में सावरकर की बड़ी सी फ़ोटो उस की दादी इंदिरा गांधी ने लगवाई है। और कि सावरकर के नाम से डाक टिकट भी जारी किया है इंदिरा गांधी ने। तो क्या इंदिरा गांधी भी आर एस एस से थीं। हर व्यक्ति और हर संस्था में कुछ खूबी , कुछ खामी होती है। आर एस एस में भी खामी हो सकती है। खामी सावरकर में भी हो सकती है। पर सावरकर को हम सिर्फ ब्रिटिश राज से माफी मांगने के लिए ही क्यों जानना चाहते हैं। यह क्यों नहीं जानना चाहते कि सावरकर को माफी क्यों मांगनी पड़ी। दो-दो बार काला पानी का आजीवन कारावास क्यों मिलता है सावरकर को। इसी तरह आर एस एस की तुलना आप तालिबान से किस बिना पर कहने की ज़ुर्रत कर पाते हैं ? क्या काबुल के घोड़ों की लीद खाते हैं आप , यह कहने के लिए ? आख़िर यह और ऐसा ज़ज़्बा लाते कहां से हैं यह लोग ?
बातें बहुतेरी हैं। फिर कभी। पर यह सेक्यूलर एजेण्डेबाज अब ख़ुद वैचारिक रुप से तालिबान बन गए हैं। एकतरफा बात करने और कुतर्क करने के अफीम की लत लग गई है इन्हें।