लखनऊ। आज के समय मे किसान पारंपरिक खेती से हटकर अलग अलग तरह की खेती कर रहे हैं फसलों का चुनाव भी किसान अब उससे होने वाले मुनाफे से करता है यही कारण है कि बांस की खेती का चलन बढ़ रहा है आज देश मे बड़े पैमाने पर किसान बांस की खेती व्यावसायिक खेती कर रहे हैं घटते वन क्षेत्र और लकड़ी के बढ़ते प्रयोग को कम करने के लिए बांस काफी मददगार है इस खेती को बढ़वा देने के लिए भारत सरकार नेशनल बम्बू मिशन के अंतर्गत सब्सिडी और निशुल्क पौधे सरकार द्वारा उपलब्धता सुनिश्चित कर रही हैं।
दुनिया में बांस उत्पादन के मामले में अग्रणी होने के बावजूद भारत का निर्यात अभी काफी कम है देश मे बांस की खेती के प्रसार को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने 2014 से इस क्षेत्र में लगातार काम कर रही है साल 2017 में भारतीय वन्य अधिनियम 1927 का संशोधन करके बांस को पेड़ो की श्रेणी से हटा दिया है इस संशोधन की वजह से अब कोई भी बांस की खेती और व्यवसाय कर सकता है भारत सरकार ने बांस के पेड़ की कटाई पे लगी रोक एवंम आवागमन पर पूर्णतय वन्य अधिनियम से मुक्त कर दिया है जिससे किसान कम लागत और रख-रखाओ से लाखो में लाभ अर्जित कर सकता है
इसी क्रम में आज दिनांक 4 अग्रस्त को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में गांव कर्मी गड़ेवा पोस्ट चंदनपुर में मुम्बई की कम्पनी गोल्डेन मैजेस्टिक हॉर्टीकल्चर ने पांच एकड़ भूमि में बांस की खेती की शुरुआत की है कम्पनी के निदेशक उमेश चन्द्र दीक्षित एवंम रौबिन मिश्रा ने बताया कि बांस पर्यावरण के अनुकूल तो है ही क्योकि आक्सीजन का यह बहुत बड़ा स्त्रोत्र होता है इसके अतिरिक्त व्यावसायिक दृष्टिकोण से इसका प्रयोग फर्नीचर इंड्रस्ट्री,पेपर इंड्रस्ट्री,बम्बू बोतल,सजावट,आदि अनेको वस्तुएं निर्मित की जाती हैं कम्पनी ने टिश्यू कल्चर पध्दति से बांस के चार हजार पौधे खेत की मिट्टी में रोपित किये गए हैं विदेशों में जहाँ लोग बाँस को प्लास्टिक और लकड़ी के विकल्प के रूप में देख रहे हैं, इससे निर्मित वस्तुओं का काफ़ी चलन है । इसी क्रम में कम्पनी निर्यात के माध्यम से देश के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने की योजना पर भी विचार कर रही है ।
आगामी वर्षों में कम्पनी की ओर से देश के विभिन्न प्रान्तों में बांस की खेती का विस्तार व व्यावसायिकरण के माध्यम से देश के किसान को सशक्त और सुदृढ़ करने की योजना है