जर्मनी की कार निर्माता कंपनी वोक्सवैगन अब अपनी बीटल कार का उत्पादन बंद करने वाली है। 2019 में इस कार का अंतिम उत्पादन किया जाएगा। आपको बता दें कि बीटल कार कभी जर्मनी के तानाशाह हिटलर की सबसे पसंदीदा कार हुआ करती थी, लेकिन अब यह आर्थिक बदहाली का शिकार हो गई है। यही वजह है कि कंपनी ने इसका उत्पादन बंद करने का फैसला किया है। जर्मनी में इसने कभी आम लोगों की कार के रूप में पहचान बनाई थी। बीते सात दशकों में भी इसको लेकर लोगों का क्रेज काफी था।
दरअसल, 1933 में एडोल्फ हिटलर ने फर्डिनांड पोर्श को एक ऐसी कार विकसित करने का आदेश दिया था जो आम लोगों की पसंद बने और उनकी जेब के हिसाब से सही हो। इसके लिए उन्होंने वोक्सवैगन जिसका जर्मनी में अर्थ “पीपुल्स कार” का नाम दिया था। हिटलर को एक ऐसी कार की जरूरत थी जिसको 100 किमी की रफ्तार से दौड़ाया जा सके और जिसमें चार लोगों के बैठने की सुविधा उपलब्ध हो। पॉर्श ने हिटलर के संरक्षण में 1937 में सार्वजनिक वाहन निर्माता कंपनी फॉक्सवैगनवर्क यानी आम लोगों की कार बनाने वाली फैक्ट्री (कंपनी) गठित की थी।
इस कार के डिजाइन और स्टाइल की जिम्मेदारी पोर्श के मुख्य डिजाइनर इरविन कोमेंडा पर थी। लेकिन यह उत्पादन केवल तभी सार्थक साबित हुआ जब इसे थर्ड रीच का वित्त समर्थन प्राप्त हुआ। लेकिन इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर हो इससे पहले ही युद्ध शुरू हो गया और इसके निर्माण कार्य रोककर कंपनी ने सैन्य वाहनों का निर्माण शुरू कर दिया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के वाहन उद्योग को बदहाली से बाहर निकालने के लिए फॉक्सवैगन को प्राथमिकता दी। सेडान बीटल को अमेरिका में पहली बार 1950 के दशक में उतारा गया था। नाजी जर्मनी से जुड़ाव के कारण तब इसकी बिक्री काफी कम रही थी। 1959 में विज्ञापन एजेंसी डॉयले डेन बर्नबैक ने कार को नये सिरे से पेश किया और इसके छोटे आकार को उपभोक्ताओं के लिए फायदा बताकर प्रचारित किया। हिटलर की पसंदीदा इस कार को डिजनी की 1968 की फिल्म ‘दी लव बग’ से खासी लोकप्रियता मिली। इस फिल्म में एक ऐसी फॉक्सवैगन कार की कहानी थी जो खुद सोच सकती थी।
अंतिम बीटल एलबम ‘एब्बी रोड’ की पृष्ठभूमि में भी यह सबसे मुख्य कार रही थी। हालांकि अमेरिका में 1979 में बीटल की बिक्री बंद कर दी गयी लेकिन मैक्सिको और ब्राजील में इसका उत्पादन जारी रहा। 1997 में अमेरिकी बाजार में ‘न्यू बीटल’ को पेश किया। लोगों के ऊपर इस कार के क्रेज का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 1999 में बीसवीं सदी में दुनिया की सबसे प्रभावशाली कार के लिए जो सर्वे किया गया उसमें बीटल को चौथा स्थान मिला था।
विश्वसनीयता और मजबूती के क्षेत्र में बीटल की प्रतिष्ठा लगातार पूरी दुनिया में बढ़ती गई। 1960 के दशक में बीटल की बिक्री में काफी तेजी आई। 1972 को बीटल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। 1973 में इसकी 16 मिलियन कार बनाई गईं। वहीं 1992 तक 21 मिलियन से अधिक का उत्पादन हुआ था। 2009 तक बीटल दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कार बन चुकी थी। 1951 में वोक्सवैगन के प्रोटोटाइप में 1.3 एल डीजल इंजन का इस्तेमाल किया गया। इस कार ने महज एक मिनट के अंदर 100 किमी प्रतिघंटा की स्पीड़ कायम कर एक नई पहचान बनाई।
लेकिन इतने गौरवशाली इतिहास को संजोने वाली यह कार अब बंद क्यों हो रही है इसका सवाल लगभग हर किसी के मन में उठ रहा है। हम आपको बता दें कि कंपनी ने इसका जवाब अब दे दिया है। कंपनी ने इसका उत्पादन बंद करने के पीछे जो तर्क दिया है उसमें कहा गया है कि कंपनी अब इलेक्ट्रिक वाहनों तथा बड़े परिवारों को ध्यान में रखकर अपनी कार तैयार करेगी। कंपनी ने कहा कि उसकी योजना बीटल के दो अंतिम संस्करण पेश करने की है। इसकी कीमत 23,045 डॉलर या इससे अधिक हो सकती है। अब जबकि कंपनी ने इसका उत्पादन बंद करने का फैसला कर लिया है तो कुछ लोगों के लिए यह फैसला पसंद न आने वाला जरूर होगा। इसकी वजह ये भी है कि आम लोगों की पहुंच वाली इस कार से जर्मनी के लाखों लोगों की कई पुरानी यादें जुड़ी हैं।