अहमदाबाद। अपने प्यार की निशानी को संजोने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाली महिला को आखिर जीत मिल ही गई। हाई कोर्ट ने मृत पति के संरक्षित रखे गए स्पर्म के इस्तेमाल करने की अनुमति महिला को दे दी। अब महिला अपने मृत पति के स्पर्म से आईवीएफ उपचार के माध्यम से मां बन सकेगी।
दरअसल, कोरोना संक्रमित व्यक्ति के बचने की कोई उम्मीद न देखकर उसकी पत्नी ने हाई कोर्ट में पति के स्पर्म को संरक्षित रखने और भविष्य में आईवीएफ के माध्यम से मां बनने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी। इस याचिका पर 20 जुलाई को गुजरात हाई कोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया था और मरणासन्न पति के स्पर्म को संरक्षित रखने का आदेश दिया था। उस समय कोर्ट ने केवल स्पर्म संरक्षित रखने के आदेश दिए थे, लेकिन उनका उपयोग करने की अनुमति नही दी थी। कोर्ट के आदेश के बाद पति के स्पर्म को वडोदरा के रेसकोर्स स्थित स्टर्लिंग अस्पताल में संरक्षित किया गया था। स्पर्म लेने के बाद कोरोना संक्रमित युवक की मौत हाे गई थी।
पति के मौत के बाद युवती ने आईवीएफ उपचार से मां बनने के लिए मृतक पति के संरक्षित स्पर्म का उपयोग करने के लिए कोर्ट से अनुमति मांगी थी। इस मामले पर शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि वर्तमान में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो पत्नी को अपने पति के स्पर्म का उपयोग करने से रोक सके। इसके बाद कोर्ट ने पत्नी को पति के शुक्राणु का उपयोग करने की अनुमति दे दी है। क्योंकि मृतक पति के माता-पिता ने इसके लिए अपनी सहमति दे दी है। अब पत्नी आईवीएफ उपचार के लिए संरक्षित स्पर्म का उपयोग कर सकती है।
याचिकाकर्ता के वकील निलय पटेल ने कहा कि याचिकाकर्ता के पति कोरोना संक्रमित होने पर डॉक्टर ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी। इस पर उसकी पत्नी ने अपने पति की निशानी के लिए पति के स्पर्म को संरक्षित करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कोर्ट के आदेश पर वडोदरा के रेसकोर्स स्थित स्टर्लिंग अस्पताल ने टेसा प्रक्रिया के साथ पति का स्पर्म लिया गया। यह प्रक्रिया अस्पताल में एक आईवीएफ विशेषज्ञ और मूत्र रोग विशेषज्ञ की उपस्थिति में की गई थी।