बच्चों को बेहतर माहौल देने का किया प्रयास
प्रेस कान्फ्रेंस में पेश किया कार्यकाल का ब्योरा
लखनऊ : बाल कल्याण समिति, लखनऊ ने पौने पांच वर्ष में बच्चों से सम्बन्धित लगभग आठ हजार मामलों में सुनवाई की। इनमें अधिकतर मामले बच्चों के आश्रय, बालश्रम, बाल भिक्षावृत्ति, माता-पिता से नाराज होना तथा किशोर-किशोरियों का पलायन, बाल विवाह आदि से संबंधित रहे। इस बात की जानकारी गुरूवार को बाल कल्याण समिति लखनऊ ने ऑनलाइन प्रेस कान्फ्रेस में दी। बताया कि बाल कल्याण समिति लखनऊ ने 23 दिसंबर 2016 को कार्यभार संभाला था। वैसे तो कार्यकाल तीन वर्ष का होता है, परंतु कुछ विभागीय कारणों से कार्यकाल बढ़कर पौने पांच साल का हो गया। अपने इस पौने पांच साल में बाल कल्याण समिति में लगभग 8000 मामलों को लिया। इनमें अधिकतर मामले बच्चों के आश्रय, बालश्रम, बाल भिक्षावृत्ति, माता-पिता से नाराज होना तथा किशोर-किशोरियों का पलायन, बाल विवाह आदि से संबंधित रहे। अपने इस कार्यकाल में हर तरह की चुनौतियों का सामना बाल कल्याण समिति ने किया। कई ऐसे मामले भी आएं जो मुख्यतः पति-पत्नी के आपसी झगड़े के थे, परंतु उसमें बच्चे प्रताड़ित हो रहे थे । जिस अभिभावक के पास बच्चा होता वह दूसरे को उससे नहीं मिलने देता, और बच्चा तथा दूसरे अभिभावक परेशान होते। ऐसे में बाल कल्याण समिति ने अपने ही परिसर में बच्चे से अभिभावक को मिलाया। इसी तरह के एक मामले में बच्चे की मां ने हाईकोर्ट में बाल कल्याण समिति लखनऊ के खिलाफ अपील की । जहां बाल कल्याण समिति के फैसले को सही ठहराया गया।
बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष कुलदीप रंजन के साथ ही सदस्य ऋचा खन्ना, विनय कुमार श्रीवास्तव, सुधा रानी, डॉ. संगीता शर्मा ने बताया कि अपने कार्यकाल में बाल कल्याण समिति ने अथक प्रयास करके बच्चों को अच्छे से अच्छा माहौल देने के लिए अपने परिसर में बाल मित्रवत वातावरण रखा और वकीलों को परिसर में आने से रोका। जिससे अभिभावक अपनी बात को मूल रूप से रख सके और उनका पैसा भी बच सके । नवजात शिशुओं के मामले में भी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अधिकतर नवजात शिशु बहुत ही कमजोर और कम वजन के मिलते हैं, जिन्हें रखने के लिए अक्सर ही परेशानियों का सामना करना पड़ता था। बाल कल्याण समिति लखनऊ में नेल्सन हॉस्पिटल के डॉ. अजय मिश्रा द्वारा बाल गृह शिशुओं में आने वाले नवजात शिशुओं का इलाज कराना शुरू किया। इस तरह के प्रयास से कई कमजोर बच्चों की जान बच सकी। इस दौरान बाल कल्याण समिति ने कई रचनात्मक कार्य भी किये। उनमें मुख्य रूप से बाल गृहों में मेडिकल कैंप, बालगृह शिशु में पुस्तकालय की स्थापना, योग तथा मेडिटेशन की शुरुआत, कथा रंग तथा कथा कथन जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से बालगृहों में स्टोरी टेलिंग बच्चों को फास्टर केयर में दिया गया । जिसमें कुछ बच्चे फिट फेसलिटी उपयुक्त सुविधा तंत्र तथा कुछ बच्चे व्यक्तिगत रूप से फास्टर केयर में दिए गए ।
कोविड के दौरान बाल कल्याण समिति के सामने कई बड़ी चुनौतियां सामने आई। इसमें घरों से पलायन किए हुए बच्चों को रखने की एक बड़ी समस्या रही। पूरे कोविड काल में ऐसे कई मामले आये। जिसमें बाल कल्याण समिति निरंतर देखरेख करती रही। चाहे वह बच्चों को आश्रय देना हो या उनकी घर वापसी हो। 2020 में लॉकडाउन के दौरान बाल विवाह के लगभग 14 मामले सामने आए, जिन्हें तत्परता से रुकवाया गया। मई 2021 में 29 बालिकाएं राजकीय बालगृह बालिका कोविड पाजिटिव पाई गई। जिनके आईसोलेशन के लिए गृह में स्थान की कमी थी। बाल कल्याण समिति ने बाल आयोग तथा सेवा भारती से संपर्क कर आईसोलेशन सेंटर की व्यवस्था की। जिसमें निरंतर समिति व आयोग के सदस्य बच्चों के संपर्क में रहे और प्रति-दिन उनके लिए किसी न किसी तरह के कार्यक्रम का आयोजन करते रहे। 29 बालिकाएं लगभग 15 दिन इस आईसोलेशन सेंटर में रही और स्वस्थ्य होकर वापस गृह में चली गई। कोविड से अभिभावक की मृत्यु के लिए मुख्यमंत्री की बाल सेवा योजना के लिए बाल कल्याण समिति ने कई बच्चों के घर जाकर उनकी समस्याओं को सुना और उन्हें योजना से जोड़ा। अपने इन पौने 5 साल के कार्यकाल में बाल कल्याण समिति को डीपीओ तथा विभाग के सभी अधिकारियों का सहयोग मिला। पुलिस, वन स्टॉप सेंटर, चाइल्डलाइन लखनऊ तथा अन्य बच्चों के साथ काम कर रही एन.जी.ओ. ने पूर्ण सहयोग दिया।