बाराबंकी। मानसून में भीषण गर्मी से राहत तो मिल जाती है पर यही वह मौसम है जब त्वचा संक्रमण और फंगस इंफेक्शन का खतरा सबसे अधिक होता है। मानसून की शुरुआत में फंगल संक्रमण के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है। फंगस पैदा करने वाले जीवाणु आमतौर पर मानसून के दौरान कई गुना तेजी से फैलते हैं। इसलिए बदलते मौसम में त्वचा संक्रमण और फंगल इन्फेक्शन के प्रति सतर्क रहें यह कहना डिप्टी सीएमओ डॉ राजीव सिंह का है।
उन्होने बताया कि फंगल इन्फेक्शन नवजात से वृद्धावस्था तक किसी भी अवस्था में हो सकता है। इस मौसम में त्वचा से संबंधी कई समस्याएं हो जाती है। उमस और गर्मी के कारण यह मौसम रोम छिद्रों को बंद कर देता है जो त्वचा संबंधी कई बीमारियों की वजह बनती है। इससे बरसात में सामान्य दाद, खुजली सूजन ,एक्जमा, मुहांसे ,त्वचा पर चकत्ते , लाल दाने, या सोरायसिस आदि समस्याएं होती हैं।
मानसून के मौसम में सतर्क रहें फंगल इन्फेक्शन से –
फंगल इन्फेक्शन एक आम समस्या है, परंतु समय से इलाज न किया जाए तो यह एक गंभीर रूप ले सकती है। यह रोग कभी-कभी त्वचा तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि यह ऊतक, हड्डियों और शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे शरीर के एक अंग से दूसरे अंग मैं फैलता चला जाता है।
इसके लक्षण निम्न है –
§ त्वचा पर लाल रंग के गोलाकार निशान पड़ना।
§ त्वचा पर पपड़ी जमना या खाल उतरना।
§ त्वचा के प्रभावित हिस्से में दर्द और खुजली होना।
§ त्वचा का कुछ हिस्सा सफेद व नर्म हो जाना।
§ प्रभावित क्षेत्रों में पस के साथ दाने होना।
कुछ एसे करे बचाव –
§ बरसात के मौसम में दिन में दो बार स्नान करें।
§ एक-दूसरे के कपड़े, तौलिया या साबुन इस्तेमाल न करें।
§ तंग और भीगे हुए कपड़े न पहनें।
§ एक दूसरे की चप्पल न पहने।
§ नमी वाले स्थानों में नंगे पांव न जाएं।
§ बिना सलाह कोई भी दवाई न लगाएं।
§ परिवार के सदस्य को अगर इंफेक्शन है तो उसका इलाज तुरंत करवाएं।
उपचार –
फंगल इंफेक्शन का इलाज छह से आठ सप्ताह तक चलता है। इसमें एंटी फंगल क्रीम, मरहम या लेप, खाने की दवाइयां और त्वचा पर लगाए जाने वाले लोशन दिए जाते हैं।