कुंभ मेला 15 जनवरी और 4 मार्च को संगम के किनारे आयोजित किया जाएगा। त्रिपाठी ने कहा, ‘किन्नर अखाड़ा के सदस्य ट्रांसजेंडर्स की संस्कृति, उनके रीति-रिवाज, परंपरा और जीवनशैली को दुनिया के साथ इस धार्मिक समागम में साझा करेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘कुंभ के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रांसजेंडर्स आएंगे। हमारा उद्देश्य उन्हें एकजुट करने, उनके ममालों का निपटान करने, उनके बारे में गलतफहमी खत्म करने, लोगों को उनके अधिकारों के बारे में बताने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अवगत कराने का होगा। इसके अलावा हम लोगों में यह संदेश पहुंचाएंगे कि सनातन धर्म में ट्रांसजेडर्स का क्या स्थान है।’
6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ब्रिटिश शासन के दौरान बनी धारा 377 को रद्द करते हुए कहा था कि दो व्यस्कों के बीच बने संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं। यह धारा, लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर समुदाय के शोषण का प्रमुख हथियार बन गई थी। अपने आदेश में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा था कि यह धारा उनके साथ होने वाले भेदभाव का कारण थी। त्रिपाठी ने कहा, ‘किन्नर गांव में हर शाम को धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करेंगे जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से आए लोक कलाकार प्रस्तुति देंगे।’
त्रिपाठी ने कहा, ‘कुंभ मेला प्राधिकरण के साथ बातचीत जारी है। किन्नर गांव बनाने के लिए अधिकारी मेला क्षेत्र में जमीन देंगे। इस मामले पर हम इलाहाबाद के आयुक्त से मुलाकात करेंगे।’ इस साल की शुरुआत में इलाहाबाद में आयोजित हुए वार्षिक माघ मेला में किन्नर अखाड़ा के संतों ने हिस्सा लिया था। वह अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से किन्नर अखाड़ा को मान्यता देने का इंतजार कर रहे हैं। अखाड़ा परिषद हिंदू संतों की सबसे बड़ी पीठ है। परिषद के अध्यक्ष स्वामी नरेंद्र गिरी ने कहा, ‘किन्नर अखाड़ा ट्रांसजेंडर्स के संतों का मठ है। वह 13 अखाड़े का हिस्सा नहीं हैं। इसलिए उन्हें मान्यता देने का कोई कारण ही नहीं है।’