मुसीबत के वक्त ‘अंतिम कंधा’ को नहीं बनने दिया ‘धंधा’
-डी.एन. वर्मा
लखनऊ। ‘जाके पांव न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई’ यह कहावत राजधानी की वर्षा वर्मा के ऊपर शत-प्रतिशत सटीक बैठती है। अपनी दोस्त के लिए शव वाहन के इंतजाम को लेकर गुजरे उन पलों को याद कर आज भी उनकी आँखों में आंसू आ जाते हैं। हालांकि जिए गए उन पलों ने ही वर्षा को इतनी हिम्मत दी कि आज वह उन अनगिनत लोगों को पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई का नेक कार्य कर रही है जिसकी समुदाय में हर तरफ तारीफ़ हो रही है। वर्षा का मानना है कि पूरे सम्मान के साथ अंतिम विदाई हर किसी का अधिकार बनता है। कोरोना काल में समाज आज कई तरह की विषम परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर है। पूरा का पूरा परिवार कोरोना उपचाराधीन होने की स्थिति में दुर्भाग्य से यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो ऐसे में उनकी अंतिम क्रिया करना कठिन कार्य हो जाता है।
राजधानी लखनऊ के ऐसे ही परिवारों की मदद को आगे आयी वर्षा वर्मा जो कि हर रोज करीब 10-12 शवों को परिजनों के घर पहुंचाने या अंतिम क्रिया के लिए बैकुंठ धाम या गुलाला घाट पहुंचाने का कार्य कर रही हैं। ‘एक कोशिश ऐसी भी’ संस्था के तहत पिछले तीन वर्षों से लावारिश शवों की अंतिम क्रिया में सहयोग करने वाली वर्षा इस मुश्किल वक्त में और भी जिम्मेदारी के साथ समाज के जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभा रही हैं। वह हर धर्म के लोगों की मदद को तत्पर रहती है, उसका मानना है कि न शव जानता है, न बीमारी जानती है और न कोरोना जानता है कि वह किस जाति या धर्म का है तो हम कौन होते हैं मदद में विभेद करने वाले। वह बताती है कि इस कोरोना काल में पूरे दिन मदद को फोन आते रहते हैं और तनिक भी विचलित हुए बगैर वह हर किसी की भी मदद को तत्पर रहती हैं।
वर्षा बताती हैं कि वह इस दिशा में उस वक्त कदम बढ़ाने को ठान लीं जब उनके परिवार और दोस्त को इस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ा। वह बताती है कि दोस्त के इलाज में बड़ी रकम खर्च करने के बाद भी न बचा पाने पर जब शव को घर ले जाने की बारी आई तो कोई भी शव वाहन 10 से 15 हजार रूपये से कम लेने को तैयार नहीं थे। इस विकट स्थिति से गुजरने के बाद ठान लिया कि अब समाज के लिए कुछ करना है और आज उनके पास दो शव वाहन और एक वैन मरीज को घर से अस्पताल और अस्पताल से घर पहुंचाने के लिए है। वर्षा का कहना है कोई भी व्यक्ति ऐसे मुश्किल वक्त में उनके मोबाइल नम्बर- 8318193805 पर संपर्क कर मदद ले सकता है। 32 वर्षीया वर्षा बताती हैं कि इस काम में उनका परिवार भी भरपूर मदद कर रहा है।
अस्पतालों का भी मिल रहा सहयोग
वर्षा बताती हैं कि उसके इस कार्य में अस्पताल भी बहुत सहयोग कर रहे हैं। जब किसी की भी कोरोना या किसी अन्य कारण से मृत्यु हो जाती है और परिवार का कोई सदस्य या मित्र शव को लेने अस्पताल पहुँचने की स्थिति में नहीं होता या अंतिम क्रिया करने की स्थिति में नहीं होता है तो इसकी जानकारी अस्पताल से मिलते ही वर्षा कहती हैं- चिंता न करो- ‘मैं हूँ न’। उनके ड्राइवर वैन लेकर अस्पताल पहुँचते हैं तो वर्षा श्मसान घाट पर जरूरी इंतजाम करने में जुट जाती हैं।
कोरोना काल में देवदूत बनीं वर्षा
डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ. गौरव बताते हैं कि उनके संस्थान के पास जो शव वाहन था उसका ड्राइवर कोरोना उपचाराधीन हो गया था, ऐसे में नई नियुक्ति तक सीएमओ कार्यालय के माध्यम से शव वाहन बुलाकर शव को परिजनों के घर तक या श्मसान घाट तक पहुंचाने में बड़ा वक्त लग जाता था। यह बात जव वर्षा को पता चली तो वह अस्पताल से संपर्क कर ऐसे लोगों की मदद को आगे आईं। इससे जिन शवों को घण्टों अस्पताल में रोकना पड़ता था, उसमें अब एकदम कमी आई है। मैं तो यही कहूंगा कि इस मुसीबत की घड़ी में वर्षा देव दूत के रूप में परेशान लोगों की मदद को आगे आयी हैं।
चली तो अकेले थी, लोग आते गए और कारवां बनता गया
वर्षा कहती हैं कि जिस कार्य का बीड़ा वह उठाने जा रहीं थी वह बहुत ही मुश्किल भरा और धारा के विपरीत था लेकिन जब ठान लिया तो हार क्या, जीत क्या। यही सोचकर वैन ली और उसको तैयार करने में हो रहे विलम्ब को लेकर भी तिलमिलाहट थी लेकिन वह पूरा हुआ तो ड्राइवर की चिंता। इसी उधेड़बुन में थीं कि दो बहुत ही जिम्मेदार और नेक ड्राइवर भी मिल गए जिसे वह अपना दाहिना और बायाँ हाथ बताती हैं। इसके साथ ही उनके इस नेक कार्य को देखकर कई अन्य लोग भी मदद को आगे आये और उनकी जरूरत को पूरा करने में हरसंभव मदद कर रहे हैं। इससे उनका हौसला बढ़ रहा है और वह इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने के काबिल अपने को पा रही हैं।
वर्षा की समुदाय से अपील
वर्षा की समुदाय से यही अपील है कि कोरोना के इस मुश्किल वक्त में समाज में जो भी व्यक्ति किसी की ही छोटी-बड़ी मदद कर सकता है वह आगे आये और एक दूसरे की मदद करे। इसके अलावा कोरोना से खुद के साथ घर-परिवार और समुदाय को सुरक्षित करने के लिए जरूरी प्रोटोकाल का शत-प्रतिशत पालन करें। बहुत जरूरी हो तभी घर से बाहर निकलें और मुंह व नाक को अच्छी तरह से ढककर रखें, बाहर एक दूसरे से दो गज की दूरी बनाकर रखें और हाथों को साबुन-पानी या सेनेटाइजर से बार-बार साफ़ करते रहें।