चांदी की मछली
के बिना अधूरी है पूजा, बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले की चांदी की मछली है मशहूर
चांदी की मछली
चांदी सबसे शुभ और शीतल धातु मानी गई है। उसी तरह शुभ और मंगलमयी प्रतीकों में मोर,गाय,हाथी,शेर के अलावा मछली को भी शामिल किया गया है…। आइए जानते हैं चांदी की मछली का महत्व और चलते हैं एक ऐसी जगह जहाँ की चांदी की मछली देश-विदेश में मशहूर है….
जानकार लोग चांदी की मछली पूजा स्थल में रखते हैं…दिवाली की पूजा में रखते हैं…और कई प्रदेशों में इसे शादी में कन्या और दामाद को देने का रिवाज है…चांदी की मछली 5 ग्राम से लेकर 5 किलो तक के वजन की बाजार में उपलब्ध है।
हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में एक परिवार द्वारा चांदी की मछली पीढी दर पीढी बनाई जा रही है। जब भारत में अग्रेजों का राज था तब इस परिवार के बुजुर्गो ने विक्टोरिया राजकुमारी को चांदी की मछली भेट की थी। तो बदले में राजकुमारी ने मछली की खूबसूरती को देख कर उन्हें एक मैडल भेंट में दिया था। इसी कला के कारण इस परिवार का नाम आईने अकबरी पुस्तक में भी दर्ज है।
बेहद खूबसूरत दिखने वाली यह मछली पूरी से चांदी बनी होती है। अपनी खूबियों के कारण इसे ‘सुपर फिश’ का नाम दिया गया है। इस ‘सुपर फिश’ के बारे में मान्यता है कि इसकी पूजा से भाग्योदय हो जाता है।
150 साल पहले की थी मछली बनाने की शुरूआत
– ओमप्रकाश सोनी के दादा जागेश्वर प्रसाद सोनी ने करीब 150 साल पहले चांदी की मछली बनाने की शुरुआत की थी। वह तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं जो यह काम कर रहे हैं।
– जागेश्वर प्रसाद के नाती और पौत्र राजेन्द्र सोनी, ओमप्रकाश सोनी और रामप्रकाश सोनी मछली बनाते है।
– यूपी और आसपास के किसी भी राज्य में चांदी की मछली बनाने की कला किसी के पास नहीं है। सिर्फ इसी परिवार के हाथ में है।
– भारतीय परम्परा में आस्था और विश्वास के आधार पर खास पर्वों पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है।
– प्राचीन काल में व्यापारी भी भोर के समय सबसे पहले चांदी की मछली देखना पसंद करते थे।
– व्यवसायी ओमप्रकाश बताते हैं, “वह चांदी की मछली बनाने के अलावा कुछ और नहीं करते। साल भर इन मछलियों की बिक्री होती है, लेकिन दीवाली और शादी के मौके पर मांग बढ़ जाती है। बुंदेलखंड में इन मछलियों की इतनी मांग है कि इसका कारोबार करने के लिये दूसरे व्यवसायी खरीद कर ले जाते हैं।”