चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी-CPEC) के सितारे गर्दिश में हैं. पाकिस्तान की नई हुकूमत के आर्थिक सलाहकार ने दावा किया है कि पूर्व की पाकिस्तान सरकार इकोनॉमिक कॉरिडोर समझौते में पाकिस्तान के हित को सुरक्षित नहीं रख सकी. लिहाजा अब इस समझौते को एक साल के लिए ताक पर रख दिया जाए और पाकिस्तान एक बार फिर चीन के साथ नए सिरे से इस करार को करने की कवायद करे.
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री इमरान खान के आर्थिक सलाहकार अब्दुल रज्जाक ने इस दलील के साथ दावा किया है कि पूर्व की पाकिस्तान सरकार ने इस समझौते में चीन की कंपनियों को मुनाफे में अधिक तरजीह देने का काम किया है. रज्जाक के मुताबिक इस करार में चीन की कंपनियों को टैक्स में कई स्तर पर लाभ देने का काम किया गया है. इसके चलते पाकिस्तानी कंपनियां शुरू से ही चीन की कंपनियों के सामने एक घाटे के सौदे में शामिल होने के लिए मजबूर हैं.
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इस दलील के साथ रज्जाक ने कहा कि पाकिस्तान सरकार को इस समझौते पर काम को एक साल के लिए रोक देना चाहिए और संभव हो तो इस समझौते को कम से कम 5 साल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया जाए.
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गौरतलब है कि रज्जाक एक जाने-माने पाकस्तानी कारोबारी हैं और इनकी कंपनी डेस्कॉन इंजीनियरिंग रियल एस्टेट, केमिकल और पावर सेक्टर में काम करती है. वहीं डेस्कॉन इंजीनियरिंग पाकिस्तान की पहली मल्टीनेशनल कंपनी है जो 6 देशों में अपने कारोबार का विस्तार कर चुकी है.
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रिपोर्ट के मुताबिक पिछले हफ्ते पाकिस्तान दौरे पर पहुंचे चीन के विदेश मंत्री वॉन्ग यी ने संकेत दिया था कि वह पाकिस्तान के साथ 2006 में हुए इस आर्थिक करार को नए सिरे से करने के लिए तैयार है. मामले से जुड़े लोगों का मानना है कि दोनों देशों के बीच यह विवाद 62 बिलियन डॉलर के इकोनॉमिक कॉरिडोर के उस हिस्से से संबंधित है जो मौजूदा समय में एशिया को यूरोप से जोड़ने के लिए तैयार किया जाना है. वहीं इस विवाद में ग्वादर पोर्ट के विस्तार और रोड और रेल नेटवर्क समेत पावर प्लांट परियोजना शामिल है.