भारत सरकार ने सैद्धांतिक तौर पर कोविड-19 की वैक्सीन बनाने वाली सभी विदेशी कंपनियों को अपने यहां उत्पादन करने की अनुमित दे दी है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि चीनी वैक्सीन निर्माता कंपनियां को भी इजाजत मिल जाएगी। अधिकारियों के मुताबिक नियामक यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी संदिग्ध चरित्र की कंपनी भारत में निर्माण नहीं कर सके। भारत में सिर्फ उन्हीं विदेशी कंपनियों को वैक्सीन बनाने की अनुमित मिलेगी जिनके टीके को अमेरिका, ब्रिटेन, जापान के दवा नियामकों या विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) से इमरजेंसी में इस्तेमाल करने की अनुमति मिली हो। किसी भी चीनी कंपनी की वैक्सीन को इन देशों या डब्ल्यूएचओ से अनुमति नहीं मिली है।
इस तथ्य के बावजूद चीन अभी तक पांच दर्जन से ज्यादा देशों को अपने यहां निर्मित वैक्सीन का निर्यात कर चुका है। मुख्य तौर पर वह दो वैक्सीन साइनोवैक की कोरोनावैक और साइनोफार्म का निर्यात कर रहा है। जबकि एक अन्य चीनी कंपनी की वैक्सीन कैनसाइनो बाइलोजिक्स वहां के सैनिकों को लगाई जा रही है।
इन सभी वैक्सीनों को चीन की दवा नियामक से मंजूरी मिली है। साथ ही इन वैक्सीन को पाकिस्तान, ब्राजील, इंडोनेशिया, तुर्की, चिली, उरग्वे जैसे कई देशों की नियामक एजेंसियों की भी मंजूरी मिली हुई है। यह भी बताते चलें कि चीन की वैक्सीन को लेकर दुनिया की कई नियामक एजेंसियां सवाल उठाती रही हैं। उदाहरण के दौर पर ब्राजील की नियामक एजेंसी ने पहले चीन की वैक्सीन कोरोनावैक को 78 फीसद सफल करार दिया लेकिन दो महीने बाद इसे सिर्फ 50 फीसद तक ही प्रभावी बताया।
चीनी अधिकारी भी बता चुके हैं कम प्रभावी अभी हाल ही में चीन के ही दो वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा था कि उनकी वैक्सीन ज्यादा प्रभावी नहीं हैं। इसकी वजह से पूरी दुनिया में चीन की वैक्सीन को लेकर नए तरह के संदेह पैदा हो गए हैं। वायरस जनित रोगों के कई अंतरराष्ट्रीय विशेषषज्ञों ने भी चीन की वैक्सीन को लेकर सवाल उठाए हैं। इसमें चिली व ब्राजील का उदाहरण दिया जा रहा है। जहां ब़़डे पैमाने पर वैक्सीन लगने के बावजूद महामारी पर रोक नहीं लगाई जा सकी है। ऐसे में भारतीय नियामक एजेंसियां भी अब पहले से भी ज्यादा सतर्क कदम उठाएंगी। साफ है कि चीनी वैक्सीन कंपनियों के लिए भारत की राह बहुत मुश्किल है।