राज्यपाल की पहल लायी रंग, 25 हजार टीबी ग्रसित बच्चों को मिला अपनों का संग

विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर विशेष

लखनऊ : टीबी यानि क्षय रोग से ग्रसित बच्चों को जल्द से जल्द बीमारी की जद से बाहर निकालकर सुनहरे भविष्य की राह आसान बनाने में जुटीं प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की पहल रंग लायी है। उन्होंने वर्ष 2019 में इन बच्चों को गोद लेने की अपील शिक्षण संस्थानों, अधिकारियों और स्वयंसेवी संस्थाओं से की थी। इसका सुखद परिणाम यह रहा कि अब तक सूबे में करीब 25,000 टीबी ग्रसित बच्चों को गोद लिया जा चुका है। इन बच्चों को पोषण सामग्री प्रदान करने के साथ ही उनके घर-परिवार वालों के साथ बैठकर उनका मनोबल बढ़ाने का भी कार्य किया जा रहा है ताकि बच्चे जल्दी से जल्दी बीमारी को मात दे सकें। विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर इन बच्चों को नई जिन्दगी देने में जुटे हर किसी के प्रति ‘सैल्यूट’ करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य बनता है।

राज्य क्षय रोग कार्यक्रम अधिकारी डॉ. संतोष गुप्ता का कहना है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण बच्चों में टीबी होने की गुंजाइश ज्यादा होती है । यही कारण है कि हर साल करीब 15 से 20 हजार बच्चे इस बीमारी की जद में आते हैं। बच्चों की जांच और इलाज की पूरी तरह नि:शुल्क व्यवस्था है। प्रदेश में पहली नवम्बर 2020 से टीबी ग्रसित बच्चों का नई रेजिमेन के तहत इलाज किया जा रहा है, जिसके लिए नयी औषधि आई है। बच्चों को शीघ्र ही इस बीमारी से उबारने की जरूरत होती है ताकि उनकी पढाई-लिखाई के साथ ही उनका सुनहरा भविष्य प्रभावित न होने पाए। इसके लिए वह राज्यपाल और उन संस्थाओं के साथ ही उन लोगों के शुक्रगुजार हैं जिन्होंने इन बच्चों का भविष्य संवारने के लिए उन्हें गोद लेकर उन्हें पोषण सामग्री प्रदान करने के साथ ही भावनात्मक सहयोग देने में जुटे हैं। प्रदेश के आगरा, वाराणसी, फिरोजाबाद, गाजियाबाद, लखनऊ और गाजीपुर में अब तक सबसे अधिक टीबी ग्रसित बच्चों को गोद लेकर उनका भविष्य संवारने का कार्य किया जा रहा है।

एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्य का कहना है कि सही पोषण और उचित पर्यावरणीय वातावरण न मिलने से बच्चे जल्दी टीबी की जद में आ सकते हैं । सही पोषण का मतलब या तो भरपेट भोजन न मिल पाने से है या तो पोषक तत्वों की कमी वाले भोजन पर आश्रित होने से है, जैसे- पिज्जा-बर्गर आदि । इसमें किशोरावस्था वाले बच्चे भी शामिल हो सकते हैं क्योंकि यह शारीरिक विकास की अवस्था होती है और उस दौरान शरीर को पर्याप्त पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ऐसे में टीबी ग्रसित बच्चों को गोद लेने के साथ ही उन बच्चों के घर जाकर उनकी पारिवारिक स्थितियों का पूरी तरह आंकलन कर उनकी जरूरत की सामग्री प्रदान करने में जुटे लोग सराहना के पात्र हैं। इसके अलावा उनका कहना है कि बच्चे को जन्म के बाद जितना जल्दी संभव हो सके बीसीजी का टीका अवश्य लगवाएं क्योंकि यह बच्चे के और अंगों में टीबी का फैलाव रोकता है। लोगों को यह भ्रान्ति कदापि नहीं होनी चाहिए कि टीका लगने से बच्चे को टीबी होगी ही नहीं बल्कि यह टीका बच्चे के अन्य अंगों तक टीबी के फैलाव को रोकने का काम करता है। उनका कहना है कि बच्चों में स्किन, ब्रेन और लंग्स की टीबी होने का ज्यादा खतरा रहता है। हालांकि बाल और नाखून को छोड़कर टीबी शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है।

बच्चों में टीबी के लक्षण और कारण :
पिछले तीन महीने में वजन का घटना या न बढ़ना
दो हफ्ते से अधिक समय से खांसी का आना
बुखार का बने रहना
किसी टीबी से ग्रसित मरीज के संस्पर्श में दो साल से अधिक रहने वाले बच्चे को भी टीबी हो सकती है

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