आखिर कब जागेगा इंसान….!

मानव वन्य जीव द्वंद का कारण, निवारण और इंसानों की भूमिका……

प्रकृति के संरक्षण में वन एवं वन्य जीवों की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है। आज प्रकृति में निरंतर तेजी से बदलाव देखने को मिल रहे हैं। नदी नाले अप्रैल आते आते सूख जा रहे हैं। पोखर ताल तलैया तो जैसे समाप्त ही हो गए हैं। जाड़े में ही गर्मी का प्रकोप बढ़ने लगा है। इस सबका एक ही कारण है प्रकृति के साथ निज स्वार्थों के लिए भयंकर छेड़छाड़। वनों का विदोहन। इस सबके लिए कोई जिम्मेदार है तो वह है इंसान। जैसे-जैसे समय बढ़ता जा रहा है, धरा का दायरा सीमित होता जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पृथ्वी संकुचित हो रही है। पृथ्वी का भौगोलिक स्वरूप पूर्ववत है परन्तु वैश्विक स्तर पर विशेष कर भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ रही निरंतर जनसंख्या व बढ़ते इंसानी दायरे, उनकी महत्वाकांक्षाएं व तीव्र विकसित होने की आसान सीढ़ी पार करने के कारण वनों का दायरा निरंतर कम होता जा रहा है। वैसे इस दिशा में सुधार हेतु प्रयास भी अत्यंत तेजी से हो रहे हैं, परंतु धरातल पर उनकी सफलता अभी काफी न्यून है। पुराने बाग वृक्षों की अंधाधुंध कटाई कर लोग जमीन को मकान, दुकान, कलकारखाने व खेती हेतु खाली करते जा रहे हैं, परंतु नए पौधों की रोपाई व उनकी सुरक्षा के प्रति लोग संवेदनशील नहीं हैं।

पौधों की रोपाई विभिन्न योजनाओं के दबाव में फ्री पौध पाने के कारण लोग कर तो देते हैं, परंतु उनके प्रति अपनापन चिंतन न होने के कारण ऐसे पौधों की सुरक्षा पर ध्यान नही दिया जाता और पौधे मर जाते हैं। जबतक लोग अपने आप को इस कार्य हेतु बाध्य समझेंगे तबतक इस कार्य में प्रगति कठिन है। लोगों को इस कार्य के लिए ईमानदारी से जागरूक करने की आवश्यकता है, उनमें इस कार्य के प्रति संवेदनशीलता को जगाना पड़ेगा। सरकार ने पुराने पेड़ों के कटान करने पर एक वृक्ष के बदले दो वृक्ष रोपे जाने का नियम बनाया है पर वास्तव में अपवादों को छोड़कर इसका अनुपालन कोई नहीं करता बल्कि नियम का अनुपालन के रुप में उसके स्थान पर नियत जमानत धनराशि जमा कर देता है और ऐसा कर अपने कृतव्यों की इतिश्री कर लेता है। एक तरफ तो वृक्ष लगवाने का अपने ही नियम में जमानत धनराशि जमा करने का प्रावधान एक प्रकार से ढील प्रदान करता है, जिसके कारण लोग सरकार के बनाए नियमों का अनुपालन करने के लिए बाध्य नहीं हो पाते। वैसे भी वृक्ष जितना विशाल होगा उसका बायोमास उतना ही अधिक होगा। जो वृक्ष जितना छोटा होगा उसका बायोमास उतना ही कम होगा।

बायोमास की अधिकता स्वच्छ वातावरण होने का कारक है। आज लगभग विभिन्न शोशल मीडिया के माध्यम से हर दिन खबरें आती हैं कि अमुक स्थान पर अमुक जंगली जीव बाहर आबादी की तरफ निकल आया है, जिसके कारण मानव वन्य जीव द्वंद की स्थिति उत्पन्न हो गई। क्या हमने कभी सोंचा है कि आखिर वन्य जीव अपने प्राकृतिक वास स्थलों से निकल कर इंसानी इलाकों में क्यों आ रहें हैं? क्यों मानव वन्य जीव द्वंद की स्थिति उत्पन्न हो रही है? इसका कोई समाधान भी हाल फिलहाल है? या फिर इसी प्रकार हमें निरंतर खबरें मिलना अनवरत रूप से जारी रहेगा। यदि वास्तव में ऐसा जारी रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी पीढ़ियां वन्य जीवों को देखने के लिए महरुम होने लगेंगी। कई प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं और एक लंबी सूची बनती जा रही विलुप्तप्राय वन्य जीवों की। क्या हमें याद है जब बचपन में सर्कस आते थे तो उनमें विभिन्न वन्य जीव जैसे हांथी, शेर, बंदर, भालू चिड़िया अपने क्रतब दिखाते थे? कुछ लोग तो भालू बंदर आदि लेकर गाँव गाँव घूमकर तमाशा दिखाते थे परंतु जैसे-जैसे समय बढ़ता गया इनकी संख्या में कमी आती गई। इसलिए सरकार को इनके संरक्षण के लिए कठोर नियम प्रतिपादित करने पडे़।

आज वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 व इसी तरह अन्य अधिनियम बना दिए गए जिसके कारण सर्कस आदि में गाँव-गाँव वन्य जीवों को ले जाकर कर्तब दिखाना, उन्हें पकड़ना व पालना कानूनन जुर्म हो गया है। ऐसा सिर्फ और सिर्फ इसलिए ही हुआ है क्योंकि वास्तव में ऐसे वन्य जीवों की संख्या में ह्रास आया है। मानव वन्य जीव द्वंद के चार ही प्रमुख कारण हैं या तो वन्य जीवों की संख्या में वृद्धि हो रही है और वनों के विस्तारीकरण में स्थिरता अथवा कमी आ गई है, और यदि वन्य जीवों की संख्या यथावत अथवा कम हुई है। इसका तात्पर्य है कि वनों के क्षेत्रफल का नुकसान हुआ है। एक महत्वपूर्ण कारण यह भी हो सकता है कि वन्य जीवों की संख्या में वृद्धि भी न हुई हो और वनों के क्षेत्रफल में भी कमी न हुई हो तब निश्चित रूप से जंगल में इंसानी दखलंदाजी बढ़ी है जिसके कारण वन्य जीव अपने आप को असुरक्षित महसूस कर जंगल के बाहर जाने को विवश हों। सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है कि वनों के प्रबंधन में कमी जैसे वन्य जीवों के लिए जंगल क्षेत्र में आसान आहार व पानी की व्यवस्था न होना। इस कारण भी वन्य जीव जंगल छोड़ कर इंसानी बस्ती की तरफ रूख कर सकते हैं। अग्नि दुर्घटनाएं भी इसका कारक हैं। वन्य जीव जब जंगल से बाहर निकलते हैं तो असुरक्षित महसूस करने पर मवेशी और इंसानों पर हमला करते हैं अथवा भुखा होने की स्थिति में मवेशी और इंसानों पर हमला करता है, जिसके कारण कई बार भीषण स्थितियां उत्पन्न होती हैं।

इंसान अपनी सुरक्षा और बदला लेने की नियत से कई बार वन्य जीवों को मार देते हैं। इस प्रकार आए दिन मानव वन्य जीव संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो रही है। इसका निवारण यही है कि जंगलों के विस्तारीकरण पर जोर दिया जाए। वनों के अवैध कटान पर पूरी तरह रोक लगाई जाए। इंसान की वनों में दखलंदाजी विशेष स्थितियों को छोड़कर समाप्त की जाए। अग्नि दुर्घटनाएं रोकी जाएं। वन्य जीवों के प्राकृतिक वास स्थल में उनके आहार व पानी की समुचित व्यवस्था की जाए। इस कार्य में जन सहभागिता की महत्ती आवश्यकता है। जबतक हम इस कार्य में सिर्फ विभाग और सरकार की तरफ देखते रहेंगे, आशा करते रहेंगे। तबतक यह कार्य निश्चित रूप से कठिन बना रहेगा। आज आवश्यकता है हर व्यक्ति को इस ओर जागरुक होने की। आज जरूरत है हर इंसान को यह प्रण कर उसे पूर्ण करने की कि न ही हम अवैध कटान, शिकार, अतिक्रमण, अग्नि दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार बनेंगे और न ही किसी अन्य को ऐसे कार्य करने देंगे। यदि हमारे आसपास ऐसी कोई भी घटना घटित होती है तो उसकी उसी समय जानकारी सम्बंधित को देंगे तथा अग्नि दुर्घटना जैसी स्थतियां उत्पन्न होने पर बचाव हेतु स्वयं सहयोग करेंगे तथा अन्य लोगों से अपील करेंगे उन्हें जागरूक करेंगे, तभी ऐसी घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा, पर्यावरण स्वच्छ बना रह सकेगा।

लेखक, दुधवा टाइगर रिजर्व लखीमपुर खीरी से संबंद्ध हैं।

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