जबलपुर में बोले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद- न्‍याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आज यानी शनिवार से दो दिन मध्य प्रदेश के दौरे पर हैं। आज वह जबलपुर पहुंच गए हैं। डुमना एयरपोर्ट पहुंचे पर प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्यपाल आनंदीबेन द्वारा गर्मजोशी से उनका स्वागत किया गया। जबलपुर में अखिल भारतीय राज्य न्यायिक अकादमिक निदेशकों के रिट्रीट को वह संबोधित कर रहे है। इस कार्यक्रम का आयोजन मानस भवन में हुआ है। जानें संबोधन के सभी जरूरी जानकारी।

जानें संबोधन में कही महत्वपूर्ण बातें

अपने संबोधन की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि मध्‍य प्रदेश सहित पश्चिमी भारत की जीवन रेखा और जबलपुर को विशेष पहचान देने वाली पुण्य-सलिला नर्मदा की पावन धरती पर, आप सबके बीच आकर मुझे प्रसन्‍नता हो रही है। उन्होंने कहा कि शिक्षा, संगीत एवं कला को संरक्षण और सम्मान देने वाले जबलपुर को, आचार्य विनोबा भावे ने ‘संस्‍कारधानी’ कहकर सम्मान दिया और वर्ष 1956 में स्थापित, मध्‍य प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय की मुख्य न्यायपीठ ने जबलपुर को विशेष पहचान दी।

18,000 से ज्‍यादा न्‍यायालयों का कंप्‍यूटरीकरण  हो चुका है

राष्ट्रपति ने आगे कहा कि देश में 18,000 से ज्‍यादा न्‍यायालयों का कंप्‍यूटरीकरण हो चुका है। लॉकडाउन की अवधि में, जनवरी, 2021 तक पूरे देश में लगभग छिहत्तर लाख मामलों की सुनवाई वर्चुअल कोर्ट्स में की गई।

आगे उन्होंने कहा कि हमारी lower judiciary, देश की न्यायिक व्यवस्था का आधारभूत अंग है। उसमें प्रवेश से पहले, सैद्धांतिक ज्ञान रखने वाले लॉ छात्रों को कुशल एवं उत्कृष्ट न्यायाधीश के रूप में प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य हमारी न्यायिक अकादमियां कर रही हैं।

जिला अदालतों में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने  की जरूरत

साथ ही कोविंद ने कहा कि अब जरूरत है कि देश की अदालतों, विशेष रूप से जिला अदालतों में लंबित मुकदमों को शीघ्रता से निपटाने के लिए न्यायाधीशों के साथ ही अन्य judicial एवं quasi-judicial अधिकारियों के प्रशिक्षण का दायरा बढ़ाया जाए।

कानून की किताबों के आधार पर निर्णय देना उचित नहीं

उन्होंने कहा कि बृहस्पति-स्मृति में कहा गया है ‘केवलम् शास्‍त्रम् आश्रित्‍य न कर्तव्‍यो विनिर्णय: युक्ति-हीने विचारे तु धर्म-हानि: प्रजाय‍ते’ अर्थात् केवल कानून की किताबों व पोथियों मात्र के अध्ययन के आधार पर निर्णय देना उचित नहीं होता। इसके लिए ‘युक्ति’ का – ‘विवेक’ का सहारा लिया जाना चाहिए ।

न्याय करने वाले व्यक्ति का निजी आचरण भी मर्यादित होना चाहिए

आगे उन्होंने कहा कि न्याय के आसन पर बैठने वाले व्यक्ति में समय के अनुसार परिवर्तन को स्‍वीकार करने, परस्‍पर विरोधी विचारों या सिद्धांतों में संतुलन स्‍थापित करने और मानवीय मूल्‍यों की रक्षा करने की समावेशी भावना होनी चाहिए। न्यायाधीश को किसी भी व्यक्ति, संस्था और विचार-धारा के प्रति, किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह तथा पूर्व-संचित धारणाओं से सर्वथा मुक्त होना चाहिए। न्याय करने वाले व्यक्ति का निजी आचरण भी मर्यादित, संयमित, सन्देह से परे और न्याय की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होना चाहिए।

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका से जुड़कर देश की सेवा का मौका मिला

राष्ट्रपति ने कहा,’ मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं कि मुझे राज्य के तीनों अंगों अर्थात् विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – से जुड़कर देश की सेवा करने का अवसर मिला’। उन्होंने कहा कि एक अधिवक्ता के रूप में, गरीबों के लिए न्याय सुलभ कराने के कतिपय प्रयास करने का संतोष भी मुझे है। उस दौरान मैंने यह भी अनुभव किया था कि भाषायी सीमाओं के कारण, वादियों-प्रतिवादियों को अपने ही मामले में चल रही कार्रवाई तथा सुनाए गए निर्णय को समझने के लिए संघर्ष करना होता है।

राष्ट्रपति ने कहा,’ मुझे बहुत प्रसन्नता हुई जब मेरे विनम्र सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कार्य करते हुए अपने निर्णयों का अनुवाद, नौ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया। कुछ उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषा में निर्णयों का अनुवाद कराने लगे हैं। मैं इस प्रयास से जुड़े सभी लोगों को बधाई देता हूं। आगे कहा,’मैं चाहता हूं कि सभी उच्च न्यायालय, अपने-अपने प्रदेश की अधिकृत भाषा में, जन-जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों से जुड़े निर्णयों का प्रमाणित अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट की भांति उपलब्ध व प्रकाशित कराएं।

आगे कहा कि स्वाधीनता के बाद बनाए गए भारत के संविधान की उद्देशिका को हमारे संविधान की आत्‍मा समझा जाता है। इसमें चार आदर्शों – न्‍याय, स्‍वतंत्रता, अवसर की समानता और बंधुता – की प्राप्ति कराने का संकल्‍प व्‍यक्‍त किया गया है। इन चार में भी ‘न्‍याय’ का उल्‍लेख सबसे पहले किया गया है। हमारी न्यायिक प्रणाली का एक प्रमुख ध्येय है कि न्याय के दरवाजे सभी लोगों के लिए खुले हों। हमारे मनीषियों ने सदियों पहले, इससे भी आगे जाने अर्थात् न्याय को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाने का आदर्श सामने रखा था।

न्‍याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं

राष्ट्रपति ने कहा कि न्‍याय व्‍यवस्‍था का उद्देश्‍य केवल विवादों को सुलझाना नहीं, बल्कि न्‍याय की रक्षा करने का होता है और न्याय की रक्षा का एक उपाय, न्याय में होने वाले विलंब को दूर करना भी है। आगे कहा कि ऐसा नहीं है कि न्याय में विलंब केवल न्यायालय की कार्य-प्रणाली या व्यवस्था की कमी से ही होता हो। वादी और प्रतिवादी, एक रणनीति के रूप में, बारंबार स्‍थगन का सहारा लेकर, कानूनों एवं प्रक्रियाओं आदि में मौजूद लूप होल्स( loop-holes) के आधार पर मुकदमे को लंबा खींचते रहते हैं।

 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com