इतिहास गवाह है, जितनी भी महामारियां इंसानी सभ्यता को मिटाने के लिए आई हैं, टीका ही ब्रह्मास्त्र बनकर हमारी रक्षा-पंक्ति को मजबूत किया है। चिकित्सा विज्ञान की पहले बुनियाद बहुत कमजोर थी, लिहाजा किसी भी महामारी का टीका बनने में दशकों तक लग जाया करते थे, तब तक लोग कष्ट सहते रहते थे, लेकिन टीका बनने के बाद महामारी के मामलों में कमी आनी शुरू हो जाया करती थी। इस बार टीका को हमने रिकॉर्ड एक साल के भीतर ही बना लिया है। अब जरूरत है कि जल्दी-जल्दी से दुनिया के हर एक इंसान को इसकी खुराक दी जाए। हमें अन्यमनस्कता छोड़नी होगी। बिना टीके के कोई भी व्यक्ति अपनी इम्युनिटी, खान-पान, जीवनशैली और योग आदि के द्वारा खुद को स्वस्थ रख सकता है, लेकिन टीका सोने पर सुहागा है। टीका सबके लिए जरूरी है। यही कवच की तरह संक्रमण से मुक्ति दिलाएगा। चूंकि हर्ड इम्युनिटी आने के लिए एक निश्चित संख्या में लोगों को इम्यून होना पड़ेगा, लिहाजा बिना हिचक हर कोई टीका लगाए।
वैश्विक इम्युनिटी
अमेरिका के महामारी विशेषज्ञ डॉ एंथनी फासी के अनुसार किसी भी देश को हर्ड इम्युनिटी पाने के लिए 70 से 85 फीसद आबादी का टीके की दोनों खुराक दी जानी आवश्यक है, लेकिन दुनिया का अभी ये आंकड़ा सिर्फ 2.67 फीसद ही है। हर एक आदमी को कोरोना से मुक्त करने का दुनिया का साझा संकल्प होना चाहिए। अमीर-गरीब देश के खांचे से ऊपर उठकर दुनिया को सोचना होगा। वैक्सीन राष्ट्रवाद को त्यागना होगा। इस दिशा में भारत के प्रयास की चहुंओर सराहना की जा रही है। पड़ोसी देशों के अलावा गरीब मुल्कों को भी तेजी के साथ इसने वैक्सीन मुहैया कराना शुरू कर दिया है। दुनिया में हर दिन अभी करीब 65 लाख टीकाकरण हो पा रहा है। इस लिहाज से दुनिया की 75 फीसद आबादी का टीकाकरण करने में 4.8 साल लग जाएंगे। जिसमें टीके की दोनों खुराक दी जा सकेगी।
सामुदायिक प्रतिरक्षा (हर्ड इम्युनिटी) से दूर
देश में सामुदायिक प्रतिरक्षा की स्थिति को लेकर हुए ताजा सीरो सर्वे के मुताबिक देश में 21 फीसद वयस्क और 25 फीसद बच्चों में इसकी एंटीबॉडी मिली है। विशेषज्ञों के मुताबिक किसी सीमित इलाके में भले ही सामुदायिक प्रतिरक्षा की स्थिति बनती दिखी हो, लेकिन किसी बड़े शहर या स्थान में प्रतिरक्षा हासिल करने वाले लोगों का फीसद अभी बहुत कम है। इसलिए छोटे स्थानों पर मौजूद लोगों को भले ही वहां पर मौजूद रहने के चलते प्रतिरक्षा का लाभ मिल रहा हो, लेकिन ये लोग जैसे ही ये लोग उन स्थानों पर जाएंगे (जहां संक्रमण की दर भले ही धीमी हो) संक्रमित होने की आशंका बढ़ जाती है। टीका लगवाकर प्रतिरक्षा का फीसद बढ़ाने में मदद की जा सकती है।
दुनिया की स्थिति
ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के अनुसार शनिवार तक दुनिया में 19.90 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका था। इतिहास के इस सबसे बड़े टीकाकरण अभियान में दुनिया के 87 देश तेजी से जुटे हैं। औसतन दुनिया में हर रोज 65 लाख खुराक दी जा रही है।
कहां खड़े हैं हम
भारत में भले ही 34 दिनों में एक करोड़ टीकाकरण हो चुका हो, लेकिन भारत दुनिया में सर्वाधिक टीकाकरण वाली तालिका में हम पांचवें पायदान पर हैं। एक करोड़ से ज्यादा लोगों का टीकाकरण हो चुका है, लेकिन प्रति सौ लोगों पर टीका लगाए गए लोगों की संख्या 0.76 ही है। इसी से आप अंदाज लगा सकते हैं कि सरकार के प्रयासों के साथ हम सबके निजी प्रयासों की भी जरूरत है। जैसे हम लोगों ने मतदाताओं को वोट डालने के लिए जागरूक किया, वैसे ही टीकाकरण के लिए भी जागरूक किए जाने की दरकार है। भारत में 0.7 फीसद आबादी को ही पहली खुराक मिल सकी है जबकि दोनों खुराक पाने वाली आबादी अभी 0.1 फीसद ही है।
चुनौती खत्म नहीं हुई है
भले ही कुछ राज्यों में संक्रमण के मामले बढ़े हों और कुल एक्टिव केस में उछाल आया हो, लेकिन देश में कोरोना की दूसरी लहर के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मानसून के दौरान संक्रमण के मामले बढ़ सकते हैं। इस सीजन में सामान्य फ्लू के मामले बढ़ जाते हैं, इस लिहाज से कोरोना के मामले भी बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
चिंता की बात
विशेषज्ञों के मुताबिक भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता कोरोना वायरस के नए स्ट्रेन साबित हो सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और ब्रिटेन में वायरस के नए रूप परेशानी का सबब बने हुए हैं। चूंकि भारतीयों की एक बड़ी आबादी आज भी कोरोना संक्रमण से मुक्त है लिहाजा कोई भी प्रभावी स्ट्रेन अपेक्षाकृत संक्रमण मुक्त स्थान पर पहुंचकर ताजा आउटब्रेक शुरू कर सकता है।