किसान आंदोलन के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में इसको लेकर कुछ रोचक बातें कही हैं। उनके संबोधन में केवल ये आंदोलन ही शामिल नहीं रहा बल्कि उन्होंने कई दूसरे क्षेत्रों को भी इस संबोधन में छुआ। उन्होंने कहा कि विपक्ष ही कभी किसानों के हक की बात करता था आज वही सरकार द्वारा किए गए कृषि सुधारों का विरोध कर रहा है। ऐसा केवल राजनीति के तहत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी किसानों ने रिकॉर्ड उत्पादन किया है। देश में खाद्यान्न का भंडार भरा रहा। उन्होंने ये भी कुछ कुछ समय के बाद कानूनों में सुधार होते ही हैं। उन्होंने आंदोलनकारियों को समझाने के लिए विपक्ष का सहयोग भी मांगा। आइए पढ़ें इस दौरान उनके दिए संबोधन की कुछ खास बातें
उन्होंने कहा कि श्रमजीवी औश्र बुद्धिजीवियों के बीच एक नई जमात अब सामने आ रही है जिनका नाम आंदोलनजीवी। ये छात्रों का आंदोलन हो या किसानों का या और कोई हर जगह पहुंच जाते हैं। उन्होंने कहा कि ये आंदोलनजीवी लोगों को गुमराह करने का काम करते हैं। उन्होंने किसानों का समर्थन देने वाले विदेशियों पर भी तंज कसा। उन्होंने कहा कि एफडीआई जो फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी है, से बचने की जरूरत है। उन्होंने ये भी कहा कि कोरोना काल में भी पड़ोसी देश ने सीमा पर तनाव व्याप्त करने की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसका हमारे जवानों ने डटकर मुकाबला किया और चीन को करारा जवाब भी दिया। सीमा के सवाल पर सरकार किसी के सामने झुकने वाली नहीं है।
भारत ने मानवता को बचाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर में जब मरीज डॉक्टरों की भीड़ में किसी भारतीय को देखता है तो उसका हौसला बढ़ जाता है। यही भारत ने इतने वर्षों में कमाया है। केंद्र और राज्यों ने मिलकर देश को यहां तक पहुंचाया है। कोरोना काल में आए संकट को अवसर में बदलने का काम दोनों ने मिलकर किया है।
उन्होंने कांग्रेस के सांसद बाजवा के कहे गए बयानों पर तंज लेते हुए कहा कि जब वो ये सुन रहे थे तो उन्हें लगा कि वो शायद इमरजेंसी और सिख विरोधी हिंसा की भी बात करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित नहीं रहा है। भारत का इतिहास इस बात का गवाह रहा है। भारत के ऊपर हो रहे हमले से बचाने की जरूरत है। ये सत्यम शिवम सुंद्रम से सुसोजित है। ये कथन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का है। लेकिन जाने अंजाने में हमनें उनके आदर्शों को भुला दिया है। हम दुनिया के दिए शब्दों को आगे लेकर बढ़ जाते हैं और अपना शब्द भूल जाते हैं।
हम केवल बड़ा लोकतंत्र ही नहीं है बल्कि हम इसकी जड़ हैं। हमें आने वाली पीढ़ी को बताना होगा। हमारा मन लोकतात्रिक है। आपातकाल के दौरान पूरा देश जेल में बदल चुका था। इसके बाद भी इसकी लोकतांत्रिक जड़ों को नहीं हिला पाया। इसलिए लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना है।
आत्मनिर्भर भारत पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया के लोग कोरोना काल में निवेश को तरस रहे हैं। भारत में ऐसा नहीं है। वहीं दुनिया भारत को डबल डीजिट की तरफ बढ़ते देख रही है। आज भारत में दुनिया के दूसरे सबसे अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं। कुछ समय पहले डिजिटाइलेजशन को लेकर सवाल उठते थे। आज नजारा सभी के सामने है। आने वाले समय में भी हम आगे बढ़ रहे हैं। जल थल और नभ में भी हम आगे बढ़ रहे हैं।
2014 में जब पहली बार सदन में आया तो कहा था कि उनकी सरकार गरीबों को समर्पित है। आज भी इसमें बदलाव नहीं हुआ है। हमें देश को आगे बढ़ाने के लिए गरीबी को खत्म करना ही होगा। इसको कम या रोका नहीं जा सकता है। गरीबों के मन में आत्म्विश्वास को जगाना होगा इसके बाद वो फिर खुद इसको खत्म करने में जुट जाएगा। दो करोड़ से अधिक गरीबों के लिए घर बने और आठ करोड़ से अधिक गैस कनेक्शन दिए गए। इन योजनाओं से गरीबों के जीवन में बदलाव आया है और उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। चुनौतियों के बीच हमें ये तय करना होगा कि समस्या का हिस्सा बनें या इसका समाधान तलाशें। समस्या का हिस्सा बनने से केवल राजनति की जा सकती है। उन्होंने उम्मीद जताई कि सभी साथ मिलकर काम करेंगे।
किसान आंदोलन पर बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि किस बात को लेकर आंदोलन इसको किसी ने स्पष्ट नहीं किया। इसके मूलभूत बातों पर किसी पर ध्यान नहीं दिया। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कई बातें सदन में रखीं। देवेगौड़ा ने सरकार के सहयोग का समर्थन किया और उन्हें सुझाव भी दिया। इसके लिए उनका आभार। पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह जी ने कहा था 36 फीसद ऐसे किसान हैजिनके पास दो बीघा कम है। 18 फीसद के पास आधा हैक्टेयर से कम है। वो कितनी भी मेहनत करे उनकी गुजर बसर करना मुश्किल है। छोटे किसानों का जीवन यापन मुश्किल है। देश में ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है उनके पास बेहद कम जमीन है। 12 करोड़ किसानों के पास केवल दो हैक्टेयर से भी कम की जमीन है। इनके बारे में सोचना जरूरी है।
चुनाव के दौरान कर्जमाफी की घोषणा में छोटे किसान नहीं आते हैं। इसमें केवल राजनीति होती है। इस तरह की घोषणाओं से इनका कोई फायदा नहीं होता है। 2014 के बाद किसानों को लाभ देने के लिए सरकार ने फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ा तो 90 हजार करोड़ रुपये का क्लेम किसानों को दिया गया। किसान क्रेडिट कार्ड का दायरा बढ़ाया गया। पौने दो करोड़ किसान आज इसके दायरे में हैं और फायदा उठा रहे हैं। पीएम सम्मान निधि योजना के तहत सीधे किसानों के खाते में पैसे पहुंचाए गए। बंगाल में राजनीति की वजह से इसमें रुकावट आई। एक लाख 15 हजार करोड़ रुपये किसानों को मिला है।
यूरिया को छोटे किसानों तक पहुंचाने का किसान सरकार ने किया। पेंशन की सुविधा उन्हें दी। सड़कों के माध्यम से हम किसानों तक पहुंचे। किसान रेल की शुरुआत हुई तो दूर दराज के किसानों को नई राह दिखाई दी। किसान उड़ान योजना का फायदा आज किसान ले रहे हैं।
छोटे किसानों के सशक्तिकरण की वकालत हर किसी ने की है। हर सरकार ने इसके बारे में कहा है। शरद पवार ने नए कानून में सुधारों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि हमें जो अब लगा है वो हमनें किया है। आगे भी इसमें सुधार की गुंजाइश है। लेकिन इसकी वकालत करने वालों ने अचानक यू टर्न ले लिया है। उनके ऊपर राजनीति हावी हैं। उन्हें ये बताना चाहिए कि सुधारों को किया जाना चाहिए। उन्होंने इस संदर्भ में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का एक बयान भी राज्य सभा में पढ़ा।
उन्होंने कहा कि पीएम मनमोहन सिंह ने किसान को अपनी उपज कहीं भी बेचने का अधिकार देने की बात कही थी। लिहाजा विपक्ष को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की बात इस सरकार को माननी ही पड़ी है। दूध के क्षेत्र में एक ऐसी सप्लाई चेन बनी है जो बेहद मजबूत है। इसका लाभ इन लोगों को मिल रहे हैं। ये मजबूती पिछली सरकारों में मिली है। इसका करीब 8 लाख करोड़ रुपये का कारोबार है।