म्‍यांमार में तख्‍तापलट की कार्रवाई का चीन से संबंधों पर पड़ेगा कैसा असर, जानें एक्‍सपर्ट की जुबानी

म्‍यांमार के राजनीतिक हालात तख्‍तापलट के बाद हर रोज बदल रहे हैं। सेना द्वारा वहां की तख्‍तापलट की कार्रवाई को पूरी दुनिया ने गलत बताया है। चीन ने भी इसको लेकर अपनी कड़ी नाराजगी जाहिर की है। चीन की ही बात करें तो तख्‍तापलट से पहले भी दोनों देशों के बीच संबंध काफी मुश्किलों भरे थे। इसकी वजह दोनों देशों की सीमाओं पर जारी तनाव था। तख्‍तापलट के बाद म्‍यांमार की सेना ने वहां की प्रमुख ऑन्‍ग सॉन्‍ग सू की को पद से हटाकर उन्‍हें हिरासत में ले लिया है। वहीं चीन की बात करें तो शी चिनफिंग ने सू की को वर्ष 2001 में हुए 33 समझौतों पर पूरा समर्थन देने का एलान किया था। लेकिन बदलती परिस्थितियों में कमांडर इन चीफ ऑफ डिफेंस सर्विस मिन ऑन्‍ग ह्लेनिंग ने देश में आपातकाल की घोषणा कर सत्‍ता अपने हाथों में ले ली है।

ऐसी परिस्थिति में विशेषज्ञ मानते हैं कि भले ही सू की को पद से हटाने में चीन की कोई भूमिका नहीं रही हो लेकिन म्‍यांमार में अब भी चीन का राजनीतिक महत्‍व काफी अधिक है। वह भी तक जब अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश म्‍यांमार पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं। मंगलवार को इस मसले पर संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में इसको लेकर मंथन हुआ था। इसमें संयुक्‍त राष्‍ट्र के राजदूत ने म्‍यांमार में हुई तख्‍तापलट की कार्रवाई की कड़ी निंदा करते हुए यूएनएससी से इस मामले में सू का समर्थन करने की अपील की थी।

उन्‍होंने देश में दोबारा लोकतंत्र बहाल करने के लिए भी सुरक्षा परिषद का समर्थन मांगा है। हालांकि इस बारे में अब तक कोई जानकारी सामने नहीं आई है कि यूएनएससी ने बंदियों की रिहाई और देश में लोकतंत्र बहाली को लेकर कोई बयान जारी किया है या नहीं। रूस और चीन ने इस बाबत कहा है कि वो अपने प्रतिनिधियों को म्‍यांमार भेजेंगे जिससे हालात का जायजा लिया जा सके।

तख्‍तापलट के बाद चीन ने इस पर पहली प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि चीन घटनाक्रम पर पूरी निगाह रखे हुए हैं। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍ता वांग वेनबिन का कहना था कि म्‍यांमार एक पड़ोसी देश होने के अलावा उनका एक दोस्‍त भी है। उन्‍होंने म्‍यांमार से देश के संविधान के तहत कदम उठाने और राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बहाल करने की अपील की थी।

गौरतलब है कि चीन ने म्‍यांमार में खनन, तेल, गैस पाइपलाइन समेत दूसरे क्षेत्रों में अरबों का निवेश किया हुआ है। लेकिन जब चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी साथी सत्तावादी शासन का पक्ष लेती है, तो ये भी पता चलता है कि उसका म्यांमार की सेना के साथ रिश्‍ते अच्‍छे नहीं रहे हैं।

लंदन के चतम हाउस की एशिया पेसेफिक प्रोग्राम की डायरेक्‍टर चंपा पटेल का कहना है कि ये हमेशा ही खतरनाक होता है कि सेना अपनी ताकत का इस्‍तेमाल दूसरों को किनारे करने के लिए करे। उनकी असुरक्षा की वह देश में ताकत को एकत्रित करना और चीनके साथ सहयोग होता है। म्‍यांमार में तख्‍तापलट की कार्रवाई वहां पर चीन के विदेश मंत्री वांग यी की हुई यात्रा के तीन सप्‍ताह बाद हुई है। उन्‍होंने वहां पर सू की समेत सैन्‍य अधिकारियों से मुलाकात की थी। उन्‍होंने चुनाव में सू की को जीत की बधाई दी थी बल्कि उम्‍मीद जताई थी कि म्‍यांमार तेजी से विकास की तरफ आगे बढ़ेगा और पूर्व में जो समझौते चीन के साथ हुए हैं उन्‍हें भी आगे बढ़ाया जाएगा।

शंघाई इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्‍टडीज के शोधकर्ता झाओ गेनचेंग नहीं मानते हैं कि म्‍यांमार के बदलते घटनाक्रम में चीन का कहीं भी कोई हाथ रहा है। उनका कहना है कि कुछ मानते हैं कि म्‍यांमार में हुए तख्‍तापलट में चीन ने गुप्‍त तरीके से सेना का साथ दिया है। लेकिन यदि ऐसा होता तो चीन को सेना का समर्थन करना चाहिए था, जो उसने नहीं किया। इसके अलावा इसके समर्थन में चीन को सेना को हथियार समेत दूसरी चीजों की भी आपूर्ति करनी होती।

 

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