फंसे कर्ज (एनपीए) के स्तर पर बैंकों के प्रदर्शन में सुधार सामने आने लगा है। सितंबर, 2020 में यह कम होकर 8.08 लाख करोड़ रुपये तक आ गया है। मंगलवार को संसद में इसकी जानकारी देते हुए वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि मार्च, 2018 में वाणिज्यिक बैंकों के एनपीए का स्तर बढ़कर 10.36 लाख करोड़ रुपये तक चला गया था। सरकार व बैंकों के सम्मिलित प्रयास से इसमें सुधार दिखने लगा है।
वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने मंगलवार को राज्यसभा को यह जानकारी दी। उन्होंने एक लिखित जवाब में कहा कि आस्ति-गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) और बैंकों की ओर से बाद में संकट की पहचान करने में पारदर्शी से संकट में फंसे खातों को एनपीए के तौर पर एक बार फिर वर्गीकृत किया गया था। इसके अलावा, जिन पुनर्गठित समस्या ग्रस्त खातों के साथ पहले ढील दी गयी थी और उनके संबंधि में बैंकों ने हानि के प्रावधान नहीं किऐ थे उनके लिए प्रावधान किए गए। ऐसे सभी कर्जों के पुनर्गठन की सुविधा वापस ले ली गयी। 30 सितंबर, 2020 तक एनपीए 2,27,388 करोड़ रुपये घटकर 8,08,799 करोड़ रुपये रह गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2015 में देश के वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए 3,23,464 करोड़ रुपये का था। मार्च, 2018 आते आते यह तेजी से बढ़ते हुए 10,36,187 करोड़ रुपये तक चला गया। सरकार द्वारा उठाए गए अनेक कदमों के फलस्वरूप अब इसमें सुधार देखा जा रहा है। एनपीए को लेकर बैंकों के बिगड़ते हालत को सुधारने के लिए सरकार ने सुधारों के साथ-साथ पूंजी उपलब्ध कराने का काम भी किया। फंसे कर्ज के समाधान पर भी जोर दिया गया है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मार्च को समाप्त चालू वित्त वर्ष के बचे दो महीनों में शेयर और बांड जारी कर करीब 10,000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रहे हैं। वित्तीय सेवा सचिव देबाशीष पांडा के मुताबिक, सरकार ने 2021-22 के लिये 20,000 करोड़ रुपये का आबंटन किया है।