महात्मा गांधी की पुण्यतिथि :- गांधी जी एक ऋषि और सत्याग्रही योद्धा, कभी नहीं छोड़ा सत्य और अहिंसा का साथ

समूचे विश्व में महात्मा गांधी ही एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन पर सबसे ज्यादा लिखा गया है और आज भी लिखा-बोला जा रहा है। यही नहीं उनकी जरूरत भी महसूस की जा रही है। गांधीजी ने सामाजिक विषमताओं यथा-अस्पृश्यता, सांप्रदायिकता, रंगभेद, नर-नारी असमानता आदि पर गहरा दुख प्रकट किया और इसको समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जाति प्रथा को उन्होंने वर्ण-व्यवस्था के हिमायती होने के बावजूद अनुचित ठहराया। उनका मानना था कि अछूत हिंदू धर्म के माथे पर लगा हुआ एक कलंक है। गांधीजी ने रंग के आधार पर भेदभाव को अमानवीय बताया। नर-नारी समानता के वह प्रबल पक्षधर थे, समर्थक थे। उनका दृढ़ मत था कि ‘नारी पुरुष की गुलाम नहीं, अर्धागिनी है, सहधíमणी है, उसे मित्र समझना चाहिए।’ शोषण रहित समाज स्थापना के पक्षधर गांधीजी सामंतशाही को अनुचित और अन्यायपूर्ण मानते थे। वे धाíमक थे, इसीलिए राजनीति में धर्म की प्रतिष्ठा चाहते थे। इसी भावना को साकार रूप देने के उद्देश्य से उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया।

एक महान ऋषि की भांति वह हमेशा सच्चाई, अहिंसा, ईमानदारी और बंधुता के रास्ते पर चले। उन्होंने अपना सब कुछ यहां तक अपने प्रिय से प्रियजनों का परित्याग कर दिया, लेकिन सत्य अहिंसा का साथ कभी नहीं छोड़ा। उनकी दृष्टि में दरिद्रनारायण का उत्थान ही देश का उत्थान था, क्योंकि उनकी शक्ति का उत्स इन्हीं गरीबों-दीन-दुखियों में था। उनके पास न सत्ता थी, न सेना, लेकिन उनकी बात राजाज्ञा की तरह मानी जाती थी और समूचा देश धर्माधीश के आदेश की भांति सिर झुकाकर उसे स्वीकार करता था। एक कवि ने उनके व्यक्तित्व के संदर्भ में ठीक ही लिखा है, ‘ओ फकीर, सम्राट बना तू, सिर पर लेकिन ताज नहीं। ओ भिक्षुक, तू भूप बना पर, वसुधा, वैभव राज नहीं।’

गांधीजी सत्याग्रह का हथियार अंग्रेजी सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने के पक्षधर थे। वास्तव में मामला तो विदेशी सरकार को निकालकर स्वराज स्थापित करना था। गांधीजी धर्मस्थानों में अछूतों के प्रवेश के लिए धरना देने या सत्याग्रह करने के पक्षधर नहीं थे। उनका मानना था कि सवर्ण हिंदुओं को उपदेशों के जरिये हृदय परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाए। तभी बदलाव संभव है। वह अस्पृश्यता को हिंदू समाज का सबसे बड़ा दोष मानते थे। यही नहीं इसके निवारण के लिए वह अपने ढंग से कठिन संघर्ष कर रहे थे, लेकिन आज के अधिकांश नेता इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर सामाजिक वातावरण को न केवल प्रदूषित कर रहे हैं, बल्कि संपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ने का काम भी कर रहे हैं। ऐसे संकट की घड़ी में आज गांधीजी जैसे महापुरुष की जरूरत है, जो ऐसे नेताओं को सद्बुद्धि दे सके और इस देश को बचा जा सके।

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