सोशल मीडिया बना किसान आंदोलन की ताकत

नई दिल्ली : दो महीने पहले जब पंजाब के किसानों ने कृषि विधेयक बिल पारित होने के बाद पहली बार मोर्चा निकला था तब मैनस्ट्रीम मीडिया का इतना ध्यान आकर्षित करने में वे नाकाम रहे थे| अपनी इसी पहली गलती से सीख कर इस बार किसानों के परिवार के सदस्यों- बच्चे, बूढ़े और महिलाओं के साथ मिलकर ने इस बार अपनी कमान संभाली और अपनी आवाज़ को बुलंद कर इस पूरे आंदोलन में उतर गए है|जहाँ किसानों का जत्था पंजाब से दिल्ली की और बढ़ रहा था वैसे ही उनकी आवाज़ सोशल मीडिया पर अपनी आवाज़ बुलंद कर हर देशवासी को अपनी देश भक्ति और किसानो की समस्याओं से जोड़ती चली जा रही थी|

ये आंदोलन सिर्फ फेसबुक या ट्विटर तक नहीं थमा जबकि किसानों ने और उनकी पूरी मण्डली ने वह सभी भारत के भाषाओँ में बोलने वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का पूरी तरह से इस्तेमाल कर रहे है जहाँ वह जानते है लोग अंग्रेज़ी न जानते हुए भी अपनी भाषाओँ में उनके आंदोलन में शामिल हो सकते है। कुछ ऐसा ही दिखा कू ऐप पर भी जहाँ लोग अपनी विरोध और अपनी बातें और किसानों को अपना सहयोग देते दिख रहे है| ये वो भारत की जनता है जो अंग्रेजी न समझ सकती है और ना लिख- ल सकती है लेकिन अपने विचारों को अपनी बोली/भाषा में व्यक्त कर रही है|

ऐसे कई कू ऐप पर यूज़र्स है जिन्होंने आंदोलनकारियों को खालिस्तानी व आतंवादी कहने पर अपने विचार रखे और कई ऐसे किसान भी है जो फिलहाल आंदोलन का हिस्सा नहीं बन पाए पर उनके आंदोलन को आवाज़ देते हुए उनके सन्देश को ऑडियो, वीडियो और टेक्स्ट के ज़रिये लोगों और तक पहुंचा मदद कर रहे है| कू ऐप के ज़रिये लोग हिंदी, तमिल तेलुगु और तमिल भाषा में अपने विचार और अपने सहयोग देते चले जा रहे है| अब देखना यह है कि यह आंदोलन कब तक इसी तरह चलता रहेगा या फिर सरकार इस बिल को वापस ले कर भारत के किसानों की मांगे मानेंगी|

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