बुजुर्ग कैदियों को मिलेगा ई-रिक्शा : आनंदीबेन पटेल

राज्यपाल ने सेंट्रल जेल का किया निरीक्षण,दिए निर्देश
कहा, कृषि और पशु पालन के क्षेत्र में सर्वाधिक रोजगार

वाराणसी। प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपने तीन दिवसीय वाराणसी दौरे के दौरान बुधवार को केंद्रीय कारागार का निरीक्षण एवं महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के भैरव तालाब परिसर में कृषि विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने सेंट्रल जेल में अधिकारियों को निर्देश दिया कि अशक्त और वृद्ध कैदियों को अब अगर कहीं बाहर जाना होगा तो वह अपने बैरक से कारागार के मुख्य द्वार तक ई-रिक्शा से जाएंगे। इसके लिए दो ई-रिक्शा की व्यवस्था राजभवन से की जाएगी। उन्होंने केंद्रीय कारागार में स्थापित अमर शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किया। इसके साथ ही आजाद की प्रतिमा के समीप स्थापित स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के स्मृति स्तंभ के बारे में जेल अधीक्षक से राज्यपाल ने जानकारी ली। जेल में स्थित गौशाला के निरीक्षण के दौरान उन्होंने गायों को केला और गुड़ आदि खिलाया। निरीक्षण के दौरान राज्यपाल ने जेल के कैदियों से भी मुलाकात की और विभिन्न विधा में निपुण कारीगरों के उत्पाद का अवलोकन किया। बेकरी के उत्पाद, फर्नीचर में गवर्नर चेयर, तौलिया-गमछा के साथ ही सब्जियों को देख कर उन्होंने कैदियों के हुनर की खासी प्रशंसा की।

इसके बाद कृषि गोष्ठी में राज्यपाल ने कहा कि कृषि व पशु पालन के क्षेत्र में सर्वाधिक रोजगार है। केंद्र व राज्य सरकार कृषि को बढ़ावा देने के लिए तमाम योजनाएं शुरू की ताकि गांवों का विकास हो सके। गांवों के विकास से ही देश का विकास होगा। गांवों के विकास से ही देश का विकास होगा। उन्होंने कहा कि एफपीओ में अच्छे लोगों को शामिल करने की जरूरत है। इसमें कृषि वैज्ञानिकों के अलावा ऐसे व्यक्ति को भी शामिल किया जाय जो विदेशों से बात करने में समक्ष हो। ताकि निर्यात को और गति मिल सके। उन्होंने इस परिसर को कृषि विश्वविद्यालय के रूप में विकसित करने की जरूरत है ताकि किसानों की समस्याओं का सामाधान स्थानीय स्तर पर हो सके। साथ ही उन्हें रोजगार भी मिल सके। कृषि के छात्रों को कुछ सीखना है देखना है तो उन्हें खेतों तक जाना होगा। थ्योरी तो क्लास में समझा जा सकता है लेकिन प्रैक्टिकल के लिए उन्हें आस-पास के गांवों में ही करना चाहिए, ताकि वास्तविक ज्ञान हो सके। इसके अलावा किसानों को भी इसका लाभ मिल सके। उन्होंने छात्रों से कहा कि कुछ नया सीखने के लिए लैब से लैंड तक जाना होगा। विद्यार्थियों को गांवों में जाकर सर्वे करना चाहिए ताकि किसानों को कम लागत, कम पानी में अच्छी पैदावार कर सके। कहा कि समाज के लिए यह सुखद संदेश है कि महिलाएं और बेटियां भी अब तेजी से कृषि व पशु पालन की ओर कदम बढ़ा रही है।

उन्होंने कहा कि एक समय था कि विदेशों से गेहूं आता था। लाल रंग का गेंहू की क्लालिटी भी खराब होती थी। दो दशक पहले उत्पादन बढ़ाने के चक्कर में किसानों ने फर्टिलाइजर का उपयोग करना शुरू कर दिया। जिससे उत्पादन तो बड़ा लेकिन लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने लगा। फर्टिलाइजर वह रसायनिक खादों के कारण कैंसर की भी नहीं हार्ट जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया। इसे देखते हुए ऑर्गेनिक खेती को सरकार ने प्रोत्साहित करना शुरू किया। अब धीरे-धीरे किसान भी समझने लगे हैं। ऑर्गेनिक खेती हेतु के स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि वह समाज के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इसी प्रकार पराली जलाने से प्रदूषण फैलता है। अब किसान भी समझने लगे हैं। ज्यादातर किसान अब पराली को खेतों में ही दफन कर दे रहे हैं। बाद में इसका उपयोग खाद्य का आयोग करते हैं। कहा कि शुद्ध पानी, शुद्ध आहार, शुद्ध विचार जीवन जीने के लिए बेहद जरूरी है। इसके लिए हम स्वयं इसके लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि तालाबों को संरक्षित करने की जरूरत है, एक समय तालाबों की विशेष महत्ता थी। इसके अलावा कपड़ा धोने, स्नान करने सहित अन्य कार्यों में भी अब तालाबों पर ही निर्भर रहते थे। समय के साथ बदलाव हुआ और अब हर घर में नल लग गए हैं। उसमें पर्याप्त पानी मिल रहा है। ऐसे में तालाबों की महत्ता नहीं समझ रहे हैं। यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है। इसे संरक्षित करना होगा। उन्होंने कहा कि ग्राम प्रधानों की भी संरक्षण की जिम्मेदारी है।

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