मकर संक्रांति : बृहस्पति देव करेंगे कोरोना को काबू!

जी हां, प्रयागराज में संगम की रेती पर विश्व प्रसिद्ध माघ मेला 14 जनवरी से शुरू होगा। इस बार माघ मेला के स्नान पर्वों पर गुरु बृहस्पति का दुर्लभ योग बन रहा है। इस दिन सूर्य सहित चंद्रमा, बुध, गुरु और शनि पांच ग्रही योग है। मेले के छह स्नान पर्व में चार स्नान पर्व गुरुवार को ही पड़ रहे हैं। ग्रहीय गोचर के अनुसार, गुरु बृहस्पति महामारी व अनिष्टकारी शक्तिओं को नष्ट करने में सक्षम हैं। यानी इस संयोग में द्वादश माधव के सानिध्य में वृहस्पति शुभता प्रदान करने के साथ ही अपने प्रभाव से विश्व में व्याप्त कोरोना महामारी नियंत्रित करेंगे। क्योंकि गुरु बृहस्पति सौम्य, शक्तिशाली और शुभकारक हैं। इस वर्ष मकर संक्रांति पर पूजा पाठ, स्नान और दान के लिए सुबह 8.30 बजे से शाम 5.46 तक पुण्य काल रहेगा।

सुरेश गांधी

दान-पुण्य का महापर्व मकर संक्रांति भगवान सूर्य की आराधना का पर्व है। चूकि शनि सूर्य पुत्र है और इस दिन सूर्य का शनि से मिलन होने के चलते यह पर्व धर्म कर्म की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके राशि में प्रवेश करते है। या यूं कहे इस दिन धनु राशि से सूर्य देव निकल कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहा जाता है। इसीलिए मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है। जो जीवन की वजह है और आधार भी। वैसे भी मकर राशि के स्वामी शनिदेव है, जो सूर्य के पुत्र होते हुए भी सूर्य से शत्रु भाव रखते है। शनिदेव के घर में सूर्यदेव की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसीलिए इस दिन तिल का दान व सेवन किया जाता है। ज्योतिष की मानें तो साल 2021 की मकर संक्रांति मध्यम फलदायी रहेगी। लेकिन इस बार की मकर संक्रांति राजपक्ष के नेताओं को कष्ट होने के संकेत दे रही है। संक्रांति के बाद लगातार गुरु तारा और शुक्र तारा अस्त होने से यह मध्यम फल प्रदान करेगी। साल 2021 में संक्रांति गज पर सवार होकर आ रही है, संक्रांति का उप वाहन खर है।

इस दिन ब्राहमणों को अनाज, वस्त्र, उनी कपड़े आदि दान करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस दिन से सूर्य एक राशि में एक माह तक रहते हैं और कुछ लोग पंचांग संक्रांति से ही महीने का आरंभ मानते हैं। बारह राशियों में सूर्य के आगमन के कारण एक वर्ष में बारह संक्रांति होती हैं। मकर संक्रांति का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि इसी दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं और रात की अपेक्षा दिन बड़ा होना शुरू होता है। आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है। इसीलिए इस दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। कहते हैं अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति खराब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से मुक्ति पाई जा सकती है। जिस परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो, वे अपनी रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा कर संकट से छुटकारा पा सकते है।

जहां तक गुरु का सवाल है तो ज्योतिषियों के अनुसार गुरुवार धर्म-कर्म, पौष्टिक कर्म, यज्ञ, विद्या, वस्त्र, यात्रा और औषधि को बल प्रदान करता है। मकर संक्रांति व मौनी अमावस्या दोनों स्नान पर्व पर गुरु पुण्ययोग व श्रवण नक्षत्र का योग है। श्रवण नक्षत्र के स्वामी विष्णु हैं। संक्रांति का पुण्य काल दोपहर 1 बजकर 50 से सूर्यास्त तक रहेगा। 28 जनवरी को पौष पूर्णिमा, 11 फरवरी को मौनी अमावस्या और 11 मार्च को महाशिवरात्रि का स्नान पर्व गुरुवार के दिन ही पड़ेगा। जबकि 16 फरवरी को वसंत पंचमी मंगलवार और माघी पूर्णिमा 27 फरवरी दिन शनिवार को पड़ेगी। धनु राशि में इस समय सूर्य देव के साथ कई महत्वपूर्ण ग्रह एक साथ गोचर करेंगे। इस दिन सूर्य, शनि, गुरु, बुध और चंद्रमा मकर राशि में रहेंगे। जो, एक शुभ योग का निर्माण करते हैं। इसीलिए इस दिन किया गया दान और स्नान जीवन में बहुत ही पुण्य फल प्रदान करता है और सुख समृद्धि लाता है।

ज्योतिषियों के मुताबिक सूर्य के राशि प्रवेश के समय बनाने वाली संक्रांति कुंडली से आगामी 30 दिनों के राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवेश के विषय में फलकथन किया जाता है। सूर्य एक वर्ष में 12 राशियों में भ्रमण करते है लेकिन मकर, मेष, कर्क और तुला राशि में सूर्य के प्रवेश के समय की कुंडली सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। इस वर्ष पौष के महीने में गुरुवार के दिन सूर्य मकर राशि में जब प्रवेश करेंगे तब वह 5 ग्रहों का एक विशेष योग बनेगा। 14 जनवरी दिन गुरुवार को भारतीय समयानुसार सुबह 8 बजकर 17 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। मान्यता है कि इस दिन गंगा, युमना और सरस्वती के संगम, प्रयाग मे सभी देवी देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते है। इसलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। गुड, तिल आदि का इसमें शामिल होना इस बात का संदेश देता है कि मन के हर बैर मिटाकर एक-दुसरे से मीठा बोलो। इसीलिए इस दिन बड़े के हाथों से तिल-गुड़ का प्रसाद लेना सबसे अहम् माना जाता है।

मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। बच्चे की विस्मय भावना में व सृजनशील कलाकार की कल्पना में हर सूर्योदय अपने प्रकार का पहला सूर्योदय होता है। जीवन को अंधकार से उजाले की ओर ले जाने का। यही एक ऐसा पर्व है जो नए साल के शुरु होते ही हर किसी के मन में उत्साह और उमंग भर देता है। यही वजह है कि भारतीयों का असली नव वर्ष मकर संक्रांति का दिन ही होता है। कहते है इस दिन स्नान-दान करने से दस हजार अश्वमेघ यज्ञ जितना पुण्य फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जटिल से जटिल रोगों का निवारण भी होता है। मकर संक्रांति में सामूहिक स्नान वर्ण, जाति, स्थान और भाषा की बहुत सारी सीमाएं तोड़ देता है। यह इसका पारंपरिक और समकालीन, दोनों रूप है। अक्षय उर्जा के स्रोत सूर्य देवता ज्योतिष विज्ञान और प्रकृति दोनों के ही आधार है। उनकी आराधना से दैहिक, दैविक और भौतिक तापों का क्षय होता है। इस दिन चावल और काली उड़द की दाल से मिश्रित खिचड़ी बनाकर खाने व दान करने का भी विधान है। इसके पीछे यह वैज्ञानिक आधार है कि इसमें दोषों को शांत को शक्ति होती है। आकाश में उड़ती पतंगे भी इस पर्व की परंपरा का ही हिस्सा है, जो इस बात को बताती है कि उंचाईयों को छू लों।

इस दिन सुबह से उल्लास छा जाता है। रसोई से उठती सोधी खुशबू दिल में उतर जाती है और महक जाता है सारा घर-आंगन। परिवर्तन शाश्वत है, परंतु उसे सकारात्मक बनाना मनुष्य की सृजनात्मकता है। संक्रांति से प्रकाश अधिक और अंधकार कम होने का भाव इसी मांगल्य का प्रतीक है। उसमें समन्वयन यानी खिचड़ी, संगमन, मिष्ठान भाव, स्नान का सहस्रशीर्ष अनुभव, लोकमन की संपृक्ति एक साथ एकत्र हैं। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को नवग्रहों के राजा की उपाधि दी गई है। यह आत्मा, पिता और सरकारी सेवा का कारक माना जाता है। सूर्य को सिंह राशि का स्वामित्व प्राप्त है। यह संक्रांति गुरूवार को पड़ रही है जिससे महंगाई के कुछ कम होने के आसार हैं। 1 फरवरी को पेश होने वाले बजट में सरकार कुछ विशेष करों में कटौती लाकर जनता को महंगाई से कुछ रहत दे सकती है। लेकिन मकर राशि में सूर्य, शनि, बुध, शुक्र और गुरु की युति बड़े राजनीतिक और सामाजिक बदलाव लाने का ज्योतिषीय संकेत भी दे रहा है। कृषि कानून के विरोध में हो रहा आंदोलन अभी लंबा चल सकता है। भूमि पुत्र मंगल के मेष राशि में स्थित को कर सभी ग्रहों के केंद्र में रहने से उत्तर भारत में और पाकिस्तान में भूकंपन के योग बन रहे हैं।

कोरोना महामारी के चलते पिछले वर्ष शीत-कालीन संसद सत्र को रद्द करना पड़ा था। इस वर्ष बजट सत्र के हंगामेदार और बेहद रोमांचक राजनीतिक गतिविधियों से परिपूर्ण होने के संकेत मकर संक्रांति की कुंडली दे रही है। मकर राशि में गोचर कर रहे पांच ग्रहों का मकर संक्रांति की कुंडली के लग्न पर तथा आज़ाद भारत की वृषभ लग्न की कुंडली के नवम भाव पर प्रभाव बड़े सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने का ज्योतिषीय योग है। मोदी सरकार इनकम टैक्स एक्ट में बड़े बदलाव करते हुए कई कर छूटों को समाप्त कर अमीर करदाताओं को अधिक कर चुकाने और नए करदाताओं को टैक्स में शामिल कर सकती है। कृषि से संबंधित बजट में वृद्धि होगी तथा मकर राशि के प्रभाव के चलते जैविक कृषि को बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। आज़ाद भारत की कुंडली में चंद्रमा-शनि के दशा के प्रभाव से विवाह संबंधी कानूनों में बड़े बदलाव तथा सामान नागरिक संहिता पर सरकार आगे कदम बढ़ाएगी जिसका कड़ा विरोध हो सकता है। मकर संक्रांति की कुंडली में पांच ग्रह एक साथ मकर राशि में हैं जो ईरान की कर्क लग्न की कुंडली के सप्तम में तथा अमेरिका की सिंह लग्न की कुंडली के छठे घर में होकर मध्य-पूर्व एशिया में तनाव बढ़ने का योग बना रहे हैं। इस तनाव के चलते फरवरी के महीने में शेयर बाजार में उथल-पुथल मच सकती है।

सवा चार घंटे पुण्यकाल

सूर्य 14 जनवरी को सुबह 8.13 बजे धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन पुण्य काल सवा चार घंटे तक यानी सुबह 8.13 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक रहेगा। इसी बीच 14 मिनट तक अर्थात 8.13 बजे से 8.27 बजे तक महापुण्य काल रहेगा। इस काल में तिल, गुड़, वस्त्र का दान करना और तर्पण करना पुण्य फलदायी होगा।

भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने किया था उत्तरायण का इंतजार

शास्त्रों में मान्यता है की सूर्य भगवान छह महीने उत्तरायण और छह महीने दक्षिणायण की स्थिति में रहते हैं। जब सूर्य देव उत्तरायण में रहते हैं उस समय देवताओं के दिन होते हैं और दैत्यों की रात्रि होती है। जब सूर्य देव दक्षिणायण में होते हैं, तब देवताओं की रात्रि और दैत्यों का दिन माना जाता है। इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है। इस दिन प्रयाग में पावन त्रिवेणी तट सहित हरिद्वार, नासिक, त्रयंबकेश्वर, गंगा सागर में लाखों-करोड़ों आस्थावान डूबकी लगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलता है, इस दौरान सूर्य की किरणों को खराब माना गया है, लेकिन जब सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है, तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं। इस वजह से साधु-संत और वे लोग जो आध्यात्मिक क्रियाओं से जुड़े हैं उन्हें शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो पूर्व के कड़वे अनुभवों को भुलकर मनुष्य आगे की ओर बढ़ता है। स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि, उत्तरायण के 6 माह के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं, तब पृथ्वी प्रकाशमय होती है, अतः इस प्रकाश में शरीर का त्याग करने से मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है और वह ब्रह्मा को प्राप्त होता है। महाभारत काल के दौरान भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने भी मकर संक्रांति के दिन शरीर का त्याग किया था।

इस साल संक्रांति की खासियत

नाम – मंदा
नक्षत्र – महोदरी
प्रवेश – पूर्व दिशा
गमन – पश्चिम
वाहन – गज
उपवाहन – खर
जाति – मृग
वस्त्र – श्याम
पात्र – खप्पर
भक्ष्य पदार्थ – दही
दृष्टि – आग्नेय दिशा, दक्षिण-पूर्वी
पुष्प – अर्क
स्थिति – बैठी हुई
आभूषण – मणि
फल – मध्यम

मकर संक्रांति की परंपरा

सूर्य प्रत्येक मास अपनी राशि परिवर्तित करता है और राशि परिवर्तित करते हुए कुछ समय पृथ्वी के दक्षिण भाग पर अपना प्रकाश डालता है और कुछ समय पृथ्वी के उपरी भाग पर प्रकाश डालता है। सूर्य जब पृथ्वी के दक्षिण भाग को छोड़कर उत्तरी भाग में प्रकाश डालना प्रारंभ करता है तो इस अवसर को उत्तरायण कहा जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि सूर्य जब भी शनि प्रधान मकर राशि में प्रवेश करता है वह उत्तरायण होता है। आध्यात्मिक रूप से सूर्य अपने पुत्र शनि के घर में प्रवेश करता है। यह अत्यंत सकारात्मक फल प्रदान करता है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने लड्डू और अन्य मीठे पकवान बनाने की परंपरा है। साथ ही इसके पीछे यह महत्व भी है कि इस समय मौसम में काफी सर्दी होती है, तो तिल और गुड़ से बने लड्डू खाने से स्वास्थ्य ठीक रहता है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com