आत्महत्या की रोकथाम एक बड़ी चुनौती बन गई है। हर साल अलग-अलग उम्र वर्ग के लोगों द्वारा उठाया जाने वाला यह कदम दुनियाभर में होने वाली मौत की टॉप 20 वजहों में से एक है। आत्महत्या रोकना अक्सर संभव है और एक व्यक्ति खुद इसकी रोकथाम में सबसे अहम कड़ी होता है, क्योंकि वह समाज के एक सदस्य के रूप में, एक बच्चे के रूप में, एक माता-पिता के रूप में, एक मित्र के रूप में, एक सहयोगी के रूप में या एक पड़ोसी के रूप में अपनी सजगता से खुद के साथ अन्य लोगों को भी बचा सकता है।
आत्महत्या की प्रवृत्ति क्या एक मनोरोग है, जिसका इलाज होना चाहिए? आत्महत्या की प्रवृत्ति क्यों बढ़ रही है? शिक्षित और समृद्ध समाज में, खासकर युवाओं में इसकी अधिकता क्यों देखी जा रही है? क्या यह वाकई संसार के दुःखों से मुक्ति का विकल्प है? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनपर लगातार मंथन हो रहा है, होना भी चाहिए, क्योंकि बदलाव की राह बातचीत से ही निकलेगी।
मनोचिकित्सकों का कहना है कि हर आत्महत्या दुखद होती है, लेकिन हर मामले में कुछ न कुछ रहस्य छिपा होता है। लेकिन हर आत्महत्या के पीछे एक सामान्य वजह होती है और वह है मन में निराशा की गहरी भावनाएं। कई बार लोगों को ऐसा लगता है कि वे जिंदगी और हालात से पैदा हुई चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे या उन समस्याओं का समाधान नहीं तलाश पाएंगे। इन हालात से घबराकर कई लोग आत्महत्या करने को ही एकमात्र समाधान समझ लेते हैं, जबकि समस्या वाकई अस्थायी होती है। दुनिया ग्लोबल विलेज में बदल गई है, लेकिन लोगों में जरा-जरा सी बात पर मीलों की दूरियां कायम हो जाती हैं। अपनों से मिली चोट से आत्महत्या के ख्याल आने लगते हैं। ऐसा करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है।
लक्षण
मनोचिकित्सक श्वेता शर्मा बताती हैं कि सुसाइड के बारे में सोचने वालों की दिनचर्या में एकाएक बदलाव आता है। ऐसे लोग अपने दर्द को छिपाने की कोशिश करते हैं। इन लक्षणों पर भी ध्यान देना चाहिए।
आत्महत्या का वैज्ञानिक कारण
सुसाइड की दरों से स्ट्रेस का स्तर भी जुड़ा हुआ है। जो लोग खुदकुशी करते हैं, उनके शरीर में असाधारण तरीके से उच्च गतिविधियां और स्ट्रेस हार्मोन पाया जाता है। सेरोटोनिन मस्तिष्क का केमिकल (न्यूरोट्रांसमीटर) होता है, जो मूड, चिंता और आवेगशीलता से जुड़ा होता है। खुदकुशी करने वाले व्यक्ति के सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूड और मस्तिष्क में सेरोटोनिन का स्तर सामान्य से कम पाया जाता है।
एक महीने पहले से नजर आने लगते हैं प्राथमिक लक्षण
मनोचिकित्सक श्वेता शर्मा के मुताबिक, जो लोग आत्महत्या के बारे में विचार करते हैं, उनके दिमाग में ये विचार महीनों से चलते हैं। ऐसे लोग बात करते-करते एकाएक खो जाते हैं। ऐसे लोग आत्महत्या से पहले अपने सभी करीबों लोगों से मिलना भी चाहते हैं। इसके लिए वे बार-बार मिलने का दबाव बनाते हैं। ऐसे लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। याद रहे कि खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण अकेलापन है। यह स्थिति कोविड में बढ़ गई है।
मानसिक अवसाद से पीड़ित व्यक्ति को सहारे की जरूरत होती है। ऐसे लोगों पर नजदीकी निगाह रखना जरूरी है। इसमें सबसे पहला तरीका है-उस व्यक्ति से सीधे बातचीत करना और उसका मनोबल बढ़ाना। देश में ऐसे मरीजों को आत्महत्या से रोकने के लिए कई हेल्पलाइन नंबर चलाए जा रहे हैं, लेकिन उसे उस नंबर तक पहुंचने के लिए भी किसी सहारे की जरूरत होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक अवसाद की स्थिति में मरीज खुद किसी से कोई मदद नहीं लेना चाहता। यह जिम्मा उसके परिवार, मित्रों और शुभचिंतकों को उठाना होगा।
सोशल मीडिया पर रखें नजर
ऐसे लक्षण वाले लोग एकाएक सोशल मीडिया पर पोस्ट डालना कम कर देते हैं। डालते भी हैं तो भरोसा टूटने, दुख जैसी पोस्ट, या फिर वे बेहद प्रेरणादायक बातों वाले पोस्ट डालते हैं। प्रेरणादायक पोस्ट के जरिए वे दिखाने की कोशिश करते हैं कि सब कुछ ठीक है।
बात करना बेहद जरूरी है और डॉक्टर से सलाह भी
एम्स के मनोचिकित्सक डॉ राजेश सागर ने बताया कि सुसाइड के बारे में सोचने वालों के लक्षण आसानी से पहचाने जा सकते हैं। जो भी व्यक्ति मानसिक परेशानी से जूझ रहा हो, ज्यादा दुखी हो और किसी भी चीज में मन न लग रहा हो, उससे बात जरूर करें। उन्हें अकेला न छोड़ें। बीमार व्यक्ति को मनोचिकित्सक से सलाह लेने के लिए प्रेरित करें। कोरोना के समय में हम समाज से थोड़ा कट गए हैं और अकेलापन ज्यादा महसूस हो रहा है। इसलिए एक-दूसरे से बात करना बेहद जरूरी है।