एक संसदीय समिति के अनुसार एनडीए के शासनकाल में बैंक नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA) में 6.2 लाख करोड़ रुपये की बढ़त हुई है. समिति की एक ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार इसकी वजह से बैंकों को 5.1 लाख करोड़ रुपये तक की प्रोविजनिंग करनी पड़ी है. इस रिपोर्ट को वित्त समिति ने सोमवार को मंजूर किया है.
यह आंकड़ा मार्च 2015 से मार्च 2018 के बीच का है. जब कोई लोन वापस नहीं मिलता है तो बैंक को उस रकम की व्यवस्था किसी और खाते से करनी होती है, इसे ही प्रोविजनिंग कहते हैं. कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली इस समिति ने इसके लिए काफी हद तक रिजर्व बैंक को जिम्मेदार माना है. समिति ने RBI से सवाल किया है कि वह आखिर दिसंबर, 2015 में हुई एसेट क्वालिटी की समीक्षा (AQR) से पहले जरूरी उपाय करने में विफल क्यों रहा?
सूत्रों के मुताबिक आरबीआई को यह पता लगाने की जरूरत है कि आखिरकार AQR से पहले दबाव वाले खातों के शुरुआती संकेत क्यों नहीं मिल सके? यह रिपोर्ट संसद के शीतकालीन सत्र में पेश की जाएगी.
इस समिति के सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल थे. समिति ने इसकी वजह जाननी चाही है कि आखिर क्यों कर्जों के रीस्ट्रक्चरिंग (वापसी की शर्तों में फेरबदल) के द्वारा दबाव वाले खातों को एनपीए बनने दिया जा रहा है?
सूत्रों के अनुसार, नॉन परफॉर्मिंग एसेट या फंसे कर्जों के बढ़ने की समस्या इस सरकार को विरासत में मिली है और इसमें रिजर्व बैंक ने भी वाजिब भूमिका नहीं निभाई है.
रिपोर्ट में यह मसला भी उठाया गया है कि भारत में कर्ज-जीडीपी अनुपात दिसंबर, 2017 में महज 54.5 फीसदी है, जबकि यह चीन में 208.7 फीसदी, यूके में 170.5 फीसदी और यूएसए में 152.2 फीसदी है.
गौरतलब है कि क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2018 में देश में बैंकों का कुल एनपीए करीब 10.3 लाख करोड़ रुपये था.