उत्तर प्रदेश के महोबा के निलंबित एसपी मणिलाल पाटीदार क्रशर कारोबारी की मौत के मामले में न सिर्फ भगोड़ा घोषित हैं, बल्कि पुलिस उनकी सरगर्मी से तलाश भी कर रही है। भ्रष्टाचार के संगीन मामले में डीआइजी अरविंद सेन और डीआइजी दिनेश चंद्र दुबे निलंबित किए जा चुके हैं। कानपुर के बहुचर्चित बिकरू कांड में पुलिसकर्मियों ने ही खुद अपनों की ही मुखबिरी की और पूरे महकमे को शर्मसार किया। ऐसी घटनाओं के बाद सूबे में पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई का दायरा बढ़ा है। इस वर्ष एक जनवरी से 31 अक्टूबर के बीच भ्रष्टाचार की शिकायतों पर पुलिसकर्मियों के विरुद्ध 42 मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
जिस तरह मौजूदा साल कोरोना के लिए हमेशा काली तारीख बनकर इतिहास में दर्ज रहेगा, वैसे ही यह वर्ष पुलिस महकमे में भ्रष्टाचार के फैलते घुन और उसकी सफाई के लिए उठ रहे कदमों के लिए भी याद किया जाएगा। भ्रष्टाचार व लापरवाही के संगीन आरोपों से घिरे अफसरों के साथ ही अधीनस्थ पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई का चाबुक लगातार चल रहा है। इस वर्ष आठ आइपीएस अधिकारी अलग-अलग मामलों में निलंबित किए गए हैं। भ्रष्टाचार के ही मामले में आइपीएस अधिकारी हिमांशु कुमार व डॉ.अजय पाल शर्मा के विरुद्ध विजिलेंस मुकदमा दर्ज कर विवेचना कर रही है।
250 दोषी पुलिसकर्मियों पर कठोर कार्रवाई : उत्तर प्रदेश में अराजपत्रित पुलिसकर्मियों पर भी कार्रवाई का चाबुक लगातार चल रहा है। पुलिस के आंकड़े ही खाकी के दामन पर बढ़ते छींटों की गवाही भी देते हैं। भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति पुलिसकर्मियों पर भारी पड़ी है, लेकिन उनकी शिकायतें भी कम होती नजर नहीं आ रहीं। भ्रष्टाचार के मामलों में इंस्पेक्टर से लेकर सिपाही तक पर कार्रवाई डेढ़ गुना अधिक हुई है, जो दूसरे पुलिसकर्मियों के लिए सबक भी है। वर्ष 2019 में भ्रष्टाचार के मामलों में 160 दोषी अराजपत्रित पुलिसकर्मियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की गई थी, जबकि इस वर्ष 250 दोषी पुलिसकर्मियों पर कठोर कार्रवाई का चाबुक चला है।
कार्रवाई का दायरा करीब दो गुना बढ़ा : इस साल भ्रष्टाचार के मामले में पुलिसकर्मियों के विरुद्ध 42 मुकदमे दर्ज किए गए हैं और चार पुलिसकर्मियों को सेवा से बर्खास्त भी किया गया। 52 पुलिसकर्मियों को परिनिंदा प्रवष्टि दी गई है। इसके अलावा पुलिस दुर्व्यवहार की शिकायतों में कार्रवाई का दायरा करीब दो गुना बढ़ा है। वर्ष 2019 में पुलिस दुर्व्यवहार के मामलों में 106 दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई हुई थी, जबकि इस वर्ष 263 दोषी पुलिसकर्मियों पर दंडात्मक कार्रवाई की गई है। पुलिस दुर्व्यवहार के 12 मामलों में एफआइआर दर्ज कराए जाने के साथ ही एक आरोपित पुलिसकर्मी को सेवा से बर्खास्त भी किया गया। दोनों वर्षों के आंकड़े एक जनवरी से 31 अक्टूबर के मध्य के हैं।
विवेचना में लापरवाही पर शिकंजा : महोबा कांड में एसआइटी की जांच में सामने आया था कि कई मुकदमों में पुलिस ने मनमानी कार्रवाई की थी। पुलिस पर विवेचना में खेल करने के गंभीर आरोप भी लगातार लगते रहे हैं। ऐसे मामलों में वर्ष 2019 में 1156 दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुई थी, जबकि इस वर्ष 1675 दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई गई है।
बख्शे नहीं जाएंगे दोषी : यूपी के डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी ने बताया कि पुलिसकर्मियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार से लेकर अन्य शिकायतों तक को पूरी गंभीरता से लेकर जांच कराई जा रही है। दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कठोर दंडात्मक कार्रवाई की गई है। किसी भी मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को बख्शा नहीं जाएगा।