कोरोना के इलाज में इस्‍तेमाल हो सकती है 50 फीसद से अधिक कारगर साबित होने वाली वैक्‍सीन

वैक्सीन निर्माताओं की तरफ से की जा रही सफलता की घोषणाएं बेबस दुनिया और बदहाल अर्थव्यवस्था के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं हैं। अबतक कम से कम चार दवा निर्माताओं ने यह दावा किया है कि उनकी वैक्सीन परीक्षण के दौरान 50 फीसद से ज्यादा कारगर साबित हुई है। दुनिया के ज्यादातर देशों का भी यही मानना है कि परीक्षण के दौरान 50 फीसद से ज्यादा कारगर पाई जाने वाली वैक्सीन इस्तेमाल में लाई जा सकती है। आइए जानते हैं कि अलग-अलग प्रौद्योगिकी पर आधारित ये वैक्सीन कोरोना संक्रमण के खिलाफ कैसे काम करती हैं..

फाइजर व बायोएनटेक

कंपनी ने वैक्सीन निर्माण में नई प्रौद्योगिकी मैसेंजर आरएनए यानी एमआरएनए का इस्तेमाल किया है, जो परीक्षण के दौरान 95 फीसद तक कारगर रही है। किसी महामारी की वैक्सीन के निर्माण के लिए इस डिजाइन को बहुत पहले चुना गया था। कारण है कि यह तेजी से परिणाम देने में सक्षम है। वैक्सीन निर्माताओं को उस वायरस के अनुवांशिक अनुक्रम यानी जेनेटिक सीक्वेंस की जरूरत होती है। बायोएनटेक के शोधकर्ताओं ने स्पाइक प्रोटीन के लिए जेनेटिक मैटेरियल कोडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया है। स्पाइक प्रोटीन वही हैं जो कोरोना वायरस में कील की तरह चिपके होते हैं। एमआरएनए जेनेटिक कोड का एक किनारा होता है, जिससे कोशिकाएं संवेदनशील होती हैं और प्रोटीन का निर्माण करती हैं। वैक्सीन के मामले में एमआरएनए कोशिकाओं को वायरस स्पाइक प्रोटीन के विशेष टुकड़ों के निर्माण के लिए निर्देश देते हैं और जब वास्तविक संक्रमण होता है तब ये उस पर हमला कर देते हैं। एमआरएनए बहुत नाजुक होते हैं, जिसके कारण उन्हें लिपिड नैनोपार्टिकल्स में रखा जाता है। लिपिड नैनोपार्टिकल्स मक्खन की तरह के आवरण हैं जो कमरे के तापमान पर पिघल जाते हैं। इसीलिए फाइजर की वैक्सीन को माइनस 70-75 डिग्री सेल्सियस पर रखने की जरूरत होगी।

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