लखनऊ। योगी सरकार उच्च शिक्षा विभाग के अधीन राज्य विश्वविद्यालयों और राजकीय व अनुदानित कॉलेजों के शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने की तैयारी में जुटी है। इसके लिए उच्च शिक्षा विभाग ने चालू वित्तीय वर्ष के अनुपूरक बजट में 921 करोड़ रुपये का प्रावधान करने का प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा है। सूत्रों के मुताबिक पांच सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर राज्य सरकार विश्वविद्यालय-कॉलेज शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने का एलान कर सकती है। इन शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दिलाने की तैयारी है।
केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने के बारे में दो नवंबर, 2017 को अधिसूचना जारी की थी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने शिक्षकों को पहली जनवरी 2016 से सातवां वेतनमान देने के संदर्भ में राज्य सरकार को 31 जनवरी, 2018 को पत्र भेजा था। इसके बाद यूजीसी ने दो फरवरी, 2018 को पत्र भेजकर यह बताया कि शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने पर पहली जनवरी, 2016 से 31 मार्च, 2019 तक होने वाले खर्च का 50 फीसद केंद्र सरकार वहन करेगी।
इस पर शासन ने सभी राज्य विश्वविद्यालयों और निदेशक उच्च शिक्षा से शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने पर होने वाले खर्च का ब्योरा मांगा था। लखनऊ विश्वविद्यालय संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) ने शिक्षकों को सातवां वेतनमान देने की मांग करते हुए बीती 16 जुलाई को शासन को नोटिस दी थी। नोटिस में कहा गया था कि यदि सातवां वेतनमान नहीं दिया गया तो शिक्षक आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।
उच्च शिक्षा विभाग ने यह कवायद पूरी कर ली है। विभाग के अधीन राज्य विश्वविद्यालयों, 154 राजकीय और 331 अनुदानित कॉलेजों के शिक्षकों को पहली जनवरी 2016 से 31 मार्च 2019 तक सातवां वेतनमान देने पर 921 करोड़ रुपये का व्ययभार आकलित किया गया है। अतिरिक्त व्ययभार की 50 फीसद धनराशि केंद्र सरकार मुहैया कराएगी। खास बात यह है कि छठवें वेतनमान का एरियर हासिल करने के लिए जहां शिक्षकों को आंदोलन करना पड़ा था, वहीं योगी सरकार का इरादा है कि शिक्षकों को सातवें वेतनमान के एरियर और मकान किराया भत्ते का भुगतान भी जल्द कर दिया जाए।
केंद्र ने भींची मुट्ठी, राज्य सरकार पर अब ज्यादा बोझ
गौरतलब हैै कि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के शिक्षकों को छठवां वेतनमान देने में केंद्र सरकार ने ज्यादा दरियादिली दिखायी थी। सातवें वेतनमान में केंद्र ने जहां 39 महीने की अवधि में आने वाले अतिरिक्त व्ययभार का 50 प्रतिशत वहन करने की मंशा जतायी है। वहीं छठवां वेतनमान देने के समय केंद्र ने 57 महीने (चार साल नौ महीने) की अवधि में आने वाले अतिरिक्त खर्च का 80 फीसद व्ययभार वहन किया था। केंद्र सरकार के मुट्ठी भींचने से राज्य सरकार को सातवां वेतनमान देने पर अपने संसाधनों से ज्यादा खर्च करना पड़ेगा।