अर्णब गोस्वामी की ज़मानत से कुछ लोगों की दीपावली खराब हो गई!

दयानंद पांडेय

कुछ कठमुल्लों, कुछ कम्युनिस्टों, कुछ जहरीले, कुछ सैडिस्ट, कुछ सेक्यूलर चैंपियन की दीपावली सुप्रीम कोर्ट ने आज खराब कर दी। अर्णब गोस्वामी को ज़मानत सुप्रीम कोर्ट ने आज दीपावली के पहले ही ज़मानत दे दी। इन लोगों पर दोहरी मार पड़ी है। एक तो सेक्यूलरिज्म की ओट में बिहार में जंगलराज का आगाज नहीं हो पाया दूसरे, यह अर्णब गोस्वामी की ज़मानत। कुछ तो ऐसे विघ्न-संतोषी लोग थे जो बाकायदा जैसे प्रार्थना कर रहे थे कि सारी अर्णब , तुम्हारी दीपावली तो अब जेल में बीतेगी। ऐसे कुंठित और जहरीले लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं था। असल में अर्णब गोस्वामी का विरोध इन नपुंसकों के लिए मोदी विरोध का बहाना था।

यह वही लोग हैं जो एक नौकरी बचाने के लिए पैंट उतार कर उकड़ू बैठ जाते हैं। एक दारोगा डांटता है तो पैंट में ही पेशाब कर देते हैं। यह लोग अर्णब गोस्वामी जेल में रहने का भविष्य रोज लिख रहे थे। मजाक उड़ा रहे थे। वह अर्णब जिस ने महाराष्ट्र सरकार की नींद हराम कर दी है। महाभ्रष्ट शरद पवार जैसे ताकतवर आदमी की नींद हराम कर दी है। लेकिन एन जी ओ चलाने वाले भड़ुए लोग अर्णब की जेल यात्रा पर हर्ष-विभोर थे। वह लोग भी जो खुद व्यक्तिगत झगड़ों में भी जेल जा कर शहीदाना तेवर दिखाते रहे थे, उन की खुशी भी हैरतनाक थी। अब कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि वर्वर राव, गौतम नौलखा एवं सुधा उपाध्याय सहित अन्य को ज़मानत क्यों नहीं? सवाल वाजिब है।

लेकिन क्या अर्णब गोस्वामी और वर्वर राव, गौतम नौलखा एवं सुधा उपाध्याय की धाराएं एक हैं ? दूध और खून का फर्क भी लोग नहीं जानते। सर्वाधिक दिलचस्प अर्णब की ज़मानत के समय सुप्रीम कोर्ट के तमाम सवाल हैं। जिन का कोई जवाब महाराष्ट्र सरकार के वकील कपिल सिब्बल के पास नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह महाराष्ट्र सरकार को कुत्तों की तरह डांटा है, वह किसी भी सरकार, किसी भी व्यक्ति के लिए शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब मरने के लिए काफी है। वैसे भी हरीश साल्वे जैसे प्रतिष्ठित वकील के सामने कपिल सिब्बल जैसे दल्ला वकील की हैसियत ही क्या है?

तथ्य यह भी दिलचस्प है कि इन दिनों जब भी रिपब्लिक भारत खोलिए तो सिर्फ और सिर्फ अर्णब गोस्वामी की ही खबर चलती मिली। यह भी अद्भुत था कि रोज-ब-रोज चौबीसों घंटे, अर्णब गोस्वामी की ही खबर चलती रही। जाने रिपब्लिक की टी आर पी का क्या हाल है पर रिपब्लिक के एंकर और रिपोर्टर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर की प्रतिभा, लगन और समर्पण की कोई और मिसाल तो मेरे सामने नहीं है कि एक अर्णब गोस्वामी की जेल की खबर पर दसियों दिन निरंतर बने रहना। अनूठा और अप्रतिम रिकार्ड है यह। शायद ही दुनिया में कोई ऐसी मिसाल हो खबरों की दुनिया में।

कभी कम्युनिस्ट रहे, कभी एन डी टी वी में रहे अर्णब गोस्वामी ने आज जेल से निकलते ही, वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा कर महाराष्ट्र सरकार पर अपने आक्रमण का ऐलान कर दिया है। हालां कि कंगना रानावत ने यही काम हर-हर महादेव कह कर किया था। पर कंगना का आक्रमण अमूर्त है। एक सीमा में है। अर्णब का आक्रमण किसी सीमा में निबद्ध नहीं है। मूर्त है। और कि कारगर भी। अर्णब की अगर चली तो तय मानिए कि उद्धव ठाकरे सरकार जल्दी ही किसी गहरे संकट में फंसी दिखेगी।

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