अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर की कोरोना वैक्सीन को लेने के लिए अमेरिकी प्रायद्वीप के कम विकसित देश तैयार नहीं हैं। डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय कार्यालय ने इसकी जानकारी दी है। पिछले दिनों दवा कंपनी ने दावा किया था कि उसकी कोरोना वैक्सीन वायरस को रोकने में 90 फीसद कारगर है। 12 लाख से ज्यादा लोगों की मौत का कारण बने वायरस से जूझ रही दुनिया के लिए यह बड़ी अच्छी खबर है, लेकिन टीका बन जाने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। भंडारण वितरण और टीकाकरण को लेकर काफी चुनौतियां हैं।
डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय कार्यालय ने बुधवार को कहा कि फाइजर द्वारा विकसित वैक्सीन को -70 डिग्री तापमान पर स्टोर करना होगा, जो कम विकसित के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। कोल्ड स्टोरेज की क्षमता नहीं रखने वाले देशों में ट्रांसपोर्ट करना काफी चुनौतीपूर्ण है। यही कारण है कि अमेरिकी प्रायद्वीप के कम विकसित देश मैसेंजर आरएनए वैक्सीन (MRNA vaccines) लेने को तैयार नहीं हैं।
एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी फाइजर द्वारा विकसित को लेकर इसी तरह चिंता जताई थी। उन्होंने कहा कि वैक्सीन को शून्य से 70 डिग्री सेल्सियस कम तापमान में रखना की आवश्यकता है। इस वजह से भारत जैसे विकासशील देशों, विशेषकर यहां ग्रामीण इलाकों व कस्बों में इसकी आपूर्ति बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है।
फाइजर ने पिछले दिनों दावा किया था कि वायरस के इलाज में 90 फीसद से अधिक असरदार है। इन कंपनियों का कहना है कि उनकी वैक्सीन उन लोगों के इलाज में भी सफल हुई है, जिनमें कोरोना के लक्षण पहले से दिखाई नहीं दे रहे थे। कंपनी वैक्सीन को इसी महीने के तीसरे हफ्ते में आपात इस्तेमाल की अनुमति लेने के लिए योजना बना रही है।
फाइजर के चेयरमैन और सीईओ डॉ. अल्बर्ट बौरला ने कहा था कि वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोग्राम में यह सफलता ऐसे समय में मिली है जब पूरी दुनिया को इस वैक्सीन की जरूरत है और संक्रमण की दर नए रिकॉर्ड बना रही है। उन्होंने कहा कि संक्रमण की स्थिति ऐसी है कि अस्पतालों में क्षमता से ज्यादा मरीज पहुंच रहे हैं और अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है।