जो बाइडन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। ट्रंप प्रशासन के साथ भारत के करीबी रिश्ते होने के बावजूद ऐसी कोई आशंका नहीं है कि बाइडन भारत के साथ रिश्तों में कोई बदलाव करेंगे। इसके बजाय वह भारत के साथ मौजूदा सामरिक, रक्षा और सुरक्षा संबंधों को बनाए रखेंगे, जो राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के कार्यकाल में हुए परमाणु समझौते के कारण मजबूत हुआ था।
विदेश नीति के विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिका और भारत के बीच संबंध मूल रूप से आपसी विश्वास और लाभों पर आधारित हैं। चीन के साथ भारत के तनावपूर्ण सीमा गतिरोध के बीच संवेदनशील उपग्रह डाटा साझा करने के लिए हुए सैन्य समझौते बाइडन के शासन में और पुख्ता हो सकते हैं। बाइडन ने प्रचार के दौरान स्पष्ट किया था कि कि भारत-अमेरिका साझेदारी उनके प्रशासन की ‘उच्च प्राथमिकता’ होगी।
बाइडन ने यह भी कहा कि वह ट्रंप द्वारा लगाए गए एच -1 बी वीजा के अस्थायी निलंबन को हटा देंगे और उन्होंने अधिक समावेशी और उदार आव्रजन नीति का संकेत दिया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का भी बाइडन द्वारा समर्थन किए जाने की संभावना है। यह सर्वविदित है कि ट्रंप भारत में अनुच्छेद 370 हटाने, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियां, व सुरक्षा जैसे कई मुद्दों पर भारत के साथ खड़े थे, लेकिन बाइडन के भी अमेरिकी विदेश नीति के निर्धारित सिद्धांतों से विचलित होने की संभावना नहीं है।
बेशक जो अपनी विदेश नीति में पाकिस्तान के साथ संबंधों को एक नया आयाम दे सकते हैं। लेकिन उम्मीद है कि बाइडन पाकिस्तान पर भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को प्रायोजित न करने का दबाव डाल सकते हैं। जहां तक अफगानिस्तान की बात है, अमेरिकी सैनिकों की वापसी में कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है, क्योंकि अमेरिका के लोग आतंकवाद से ग्रस्त उस देश से अपने सैनिकों की वापसी के पक्ष में हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ओबामा के साथ मोदी के करीबी संबंध बाइडन के कार्यकाल में विदेश नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिसमें भारत समेत अन्य मित्र देशों के साथ मिलकर काम करने की नीति रही है, और ट्रंप के दौर में जिसे झटका लगा था। उस नीति में चीन के खिलाफ अमेरिका भारत के साथ खड़ा रहा है। बाइडन भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में हुए रक्षा समझौते को खारिज नहीं कर सकते, जिसमें दोनों देशों ने बेसिक एक्सचेंज ऐंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए तथा अपने रक्षा सहयोग का विस्तार किया।
विशेषज्ञ मानते हैं कि जो बाइडन ट्रंप के कुछ विचारों को स्वीकार करते हुए चीन को दुनिया भर में टक्कर देने का विकल्प चुन सकते हैं, भले ही उनकी शैली और तौर-तरीका ट्रंप जैसा न हो। लेकिन वह भारत को हमेशा ध्यान में रखेंगे, ताकि भारत-अमेरिका के करीबी संबंध खराब न हों। बाइडन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘ठग’ कहा था और चीन पर शिनजियांग में उइगरों के ‘नरसंहार’ का आरोप लगाया था। डेमोक्रेट प्रशासन अमेरिका-ईरान परमाणु समझौते को फिर से लागू कर सकता है, जिससे न केवल भारत के लिए ईरान से तेल आयात का मार्ग प्रशस्त होगा, बल्कि पश्चिम एशिया में ईरान के साथ भारत के लिए रणनीतिक अवसर भी खुलेंगे।
बाइडन-हैरिस प्रशासन पेरिस समझौते, भारतीयों के लिए वीजा और अन्य कई मुद्दों पर ट्रंप से अलग नीति अपना सकते हैं। इन सभी बातों पर विचार करें, तो लगता है कि बाइडन भारत के लिए बेहतर हो सकते हैं, भले ही वह व्यक्तिगत संबंधों को बढ़ाने के प्रति ज्यादा उत्सुक न हों, जिसे मोदी पसंद करते हैं। बाइडन सरकार का सरकार से संबंध को ज्यादा महत्व देते हैं। अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों में सुधार से भारत को लाभ होगा।
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि बाइडन को ओबामा के साथ दो बार उप-राष्ट्रपति के रूप में काम करने का अनुभव है, जो उन्हें दुनिया भर में अपने सहयोगियों और अन्य देशों के साथ स्थिर और परिपक्व रिश्ते बनाने की क्षमता प्रदान करता है, जिससे भारत जैसे देशों को भरोसा होता है कि नई सरकार रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाएगी और आक्रामक रवैये के जरिये हमारे देश को अस्थिर करने की चीन की कोशिश को विफल कर देगी।