अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन ने जीत दर्ज कर ली है, लेकिन अभी उनकी चुनौतियों का अंत नहीं हुआ है। बाइडन की असल चुनौती तो अब शुरू होगी। कोरोना महामारी के बाद देश और दुनिया में उपजे हालात से आखिर वह कैसे निपटेंगे। अब दुनिया की निगाहें इस पर टिकी है। उनकों देश के अंदर और बाहर कई चुनौतियों का एक साथ सामना करना होगा। बतौर राष्ट्रपति उनको कई जंग एक साथ लड़नी होगी। कैसे वह चीन के बढ़ते प्रभुत्व पर लगाम लगाएंगे और दुनिया को एक नए शीत युद्ध की ओर ले जाने से रोकेंगे। आइए जानते हैं बाइडन की बड़ी चुनौतियां।
1- कोरोना महामारी का बड़ा संकट
अमेरिका में कोरोना महामारी का प्रबल प्रकोप है। कोरोना वायरस के प्रसार के मामले में वह दुनिया का अव्वल राष्ट्र बना हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बाइडन ने इसको एक बड़ा मुद्दा भी बनाया था। बाइडन ने अमेरिका में कोरोना महामारी के प्रसार के लिए डोनाल्ड ट्रंप को दोषी करार दिया था। ऐसे में बाइडन के समक्ष बड़ी चुनौती होगी कि अमेरिका में कोरोना के प्रसार को कैसे रोका जाए। देश को कोरोना संकट और उससे उपजे हालात पर काबू पाने की बड़ी चुनौती होगी। बाइडन की मान्यता है कि कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए वैज्ञानिकों के सुझाव को लागू किया जाएगा।
2- अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार और बेरोजगारी से निपटना होगी बड़ी चुनौती
कोरोना महामारी के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर गई है। महामारी के दौरान कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन भी लगाया गया। हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने इसकी मुखालफत की थी, जबकि विपक्ष ने लगातार देश में नए प्रतिबंधों की वकालत की है। कोरोना महामारी के दौरान देश में बेराजगारी की समस्या बढ़ी है। अमेरिका में बड़े पैमाने पर बेरोजगार हुए हैं। खासकर युवाओं पर इसका ज्यादा असर पड़ा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक लाखों अमेरिकी बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन कर चुके हैं। अमेरिका के लेबर डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल में यह आंकड़ा 66 लाख के पार जा चुका था। बेरोजगारी के कारण अमेरिका में कई लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे हैं। ऐसे में बाइडन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और युवाओं को रोजगार देना होगा।
3- नस्लीय हिंसा के बाद बिखरे अमेरिकी समाज को एकजुट करने की चुनौती
अमेरिका में नस्लीय हिंसा के बाद बिखरे अमेरिकी समाज को एकजुट करना बाइडन के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी। नस्लीय हिंसा के बाद अमेरिका में श्वेत और अश्वेत के बीच हुए संघर्ष के बाद अमेरिकी समाज पूरी तरह से विभाजित हो गया है। नस्लीय हिंसा के दौरान कई डेमोक्रेट्स नेताओं ने नस्लीय हिंसा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन किया था। खासकर पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और कमला हैरिस ने अश्वेत हितों की बात उठाई थी। उस दौरान रिपब्लिकन पार्टी खासकर डोनाल्ड ट्रंप अश्वेत आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने इसे आतंकवादी घटना करार दिया था। अब जब बाइडन के हाथ देश की कमान होगी, तब उनके समक्ष अमेरिकी समाज में समरसता और एकजुटता लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। उनके लिए खासकर यह चुनौती तब और भी बड़ी हो जाती है, जब उनके ही पार्टी में नस्लीय हिंसा को जायज ठहराने वाली एक मजबूत लॉबी है। इसका सामना उन्हें करना पड़ सकता है।