अब आसानी से पता लगा सकेंगे कि आपके भोजन में कौन से खतरनाक बैक्टिरिया मौजूद हैं। इसके लिए लुधियाना के कृषि विश्वविद्यालय ने खास किट बनाया है। दरआलस बाजार से जब हम कोई खाने की चीज लेकर आते हैं, तो हमें यह पता नहीं होता कि वह कितनी सुरक्षित है। देखने में चमकदार और लुभावने दिखने वाले फलों में कौन सा बैक्टीरिया है और यह हमारी सेहत को कितना नुकसान पहुंचा सकता है, ऐसे में इस किट से यह जानना अब आसान होगा। हम घर बैठे सिर्फ 48 घंटे में ही पता लगा सकेंगे कि हम जो भी चीज खा रहे हैं, वह हमारे लिए घातक है या लाभदायक। बेकरी उत्पाद, फल-सब्जी, मीट या अन्य कोई भी डेयरी उत्पाद की जांच आसानी से हो सकेगी।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने खाद्य पदार्थों में छिपे बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए तैयार की किट
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के माइक्रोबायोलाजी विभाग ने खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले जानलेवा बैक्टीरिया का पता लगाने के लिए एक किफायती किट बनाई है। इसे नाम दिया गया है बैक्टीरियोलाजिकल फूड टेस्टिंग किट। माइक्रोबायोलाजी विभाग की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डा. परमपाल कौर सहोता ने इसे तैयार किया है। उनका दावा है कि यह देश की पहली कलर बेस्ड टेस्टिंग किट है। उनका कहना है कि इसके पेटेंट का आवेदन स्वीकार हो गया है। आवेदन उसी शोध का स्वीकार होता है, जो पहली बार हुआ हो।
किट के बारे में बतातीं पीएयू के माइक्रोबायोलाजी विभाग की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डा. परमपाल कौर सहोता।
दस प्रकार के बैक्टीरिया की होगी पहचान
डा. सहोता ने आठ साल तक गहन शोध के बाद यह किट बनाई है, जो खाद्य पदार्थों में मिलने वाले दस तरह के बैक्टीरिया की पहचान कर लेगी। ब्यूरो आफ इंडियन स्टैंडर्ड के दिशा-निर्देशों के तहत तैयार की गई इस किट के पेटेंट के लिए भी आवेदन किया गया है। इसे मिनी लैब भी कहा जा रहा है। क्योंकि लैब में जिन बैक्टीरिया की पहचान में सात दिन लगते हैं, उन्हेंं यह आठ से 36 घंटे में पहचान लेगी।
ऐसे होती है जांच
डा. सहोता के अनुसार खाद्य पदार्थ की जांच से पहले शीशी को कीटाणुरहित जगह में खोला जाता है। अगर आप बाजार से लाए बर्गर, पिज्जा, नूडल्स की जांच करना चाहते हैं, उसका एक छोटा सा टुकड़ा शीशी में डाला जाता है। फिर ढक्कन से शीशी को बंद कर दिया जाता है। इसके बाद करीब दो घंटे बाद शीशी को थोड़ी देर हिलाने के बाद छोड़ दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि करीब आठ से 36 घंटे बाद शीशी के अंदर का लिक्विड रंग में आए बदलाव को देखा जाता है। फिर किट के साथ दिए जाने वाले कलर चार्ट को देकर पता चल जाता है कि खाद्य पदार्थ में कौर सा बैक्टीरिया पाया गया। इसका क्या नुकसान है। इससे क्या बीमारी हो सकती है। हर बैक्टीरिया को प्रदर्शित करने के लिए अगल रंग होगा।
सिर्फ 100 से 150 रुपये होगी कीमत
डा. सहोता के अनुसार अगर आप को बाजार में बिक रहे किसी भी खाद्य पदार्थ की क्वालिटी पर संदेह है, तो जल्दी जांच के लिए यह किट बहुत कारगर है। एक किट से एक ही सैंपल लिया जा सकता है। अगर किसी प्रतिठति लैब में खाद्य पदार्थों के सैंपल भेजे जाएं, तो इतने बैक्टीरिया की जांच करने में करीब दस से तीस हजार रुपये खर्च होंगे। रिपोर्ट आने में कम से कम एक हफ्ता लगेगा। पीएयू इस किट की कीमत 100 से 150 रुपये रखेगा। हालांकि, रेट अभी फाइनल नहीं हुआ है। पीएयू प्रबंधन इस तकनीक को कुछ कंपनियों को बेच भी सकता है, ताकि इन्हेंं बड़े पैमाने पर बनाया जा सके।
दस हजार सैंपलों की जांच के बाद बनाई किट
डा. सहोता ने बताया कि किट तैयार करने से राज्यभर से सब्जियों, फलों, स्ट्रीट फूड, चिकन, बेकरी प्रोडक्ट्स के सैंपल लेकर जांच की गई। ये सैंपल छोड़े-बड़े रेस्टोरेंट, स्ट्रीट फूड विक्रेता, ढाबों, होटलों, बेकरी शाप, मीट विक्रेता, सब्जी विक्रेता और घर पर खाद्य पदार्थों की डिलीवरी करने वालों के यहां से लिए थे। करीब दस हजार सैंपलों की जांच के दौरान सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले 10 बैक्टीरिया मिले। इनकी वजह से हैजा, फूड प्वाइजनिंग, अल्सर, लिवर का संक्रमण जैसी पेट से संबंधित व अन्य 200 तरह की बीमारियां हो सकती हैं।