कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तक दोनों नेता अपनी पूरी ताक़त लगाते दिखे हैं. कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी ने भी लंबे समय बाद कर्नाटक के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की. वहीं, बीजेपी की ओर से ये दावा किया गया कि कर्नाटक चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम की आंधी चल रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच तीख़ी बयानबाज़ी देखने को मिली. जहां राहुल गांधी ने पीएम मोदी को संसद में 15 मिनट तक बोलने की चुनौती दी तो वहीं मोदी ने राहुल गांधी को बिना कागज़ देखे हुए 15 मिनट तक बोलने की चुनौती दी. इस चुनाव में दोनों पक्षों की ओर से तीख़ी बयानबाज़ी की वजह ये रही कि इस चुनाव के नतीजे राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के राजनीतिक भविष्य के लिए अहम हो सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी जहां एक ओर उन आकलनों को झुठलाने की कोशिश में लगे हैं कि अब ब्रांड मोदी का असर होना कम हो गया है. वहीं, कुछ जानकारों की नज़र में राहुल गांधी के लिए ये चुनाव ‘करो या मरो’ जैसी स्थिति लेकर आया है. प्रधानमंत्री मोदी के लिए ये चुनाव अहम था क्योंकि वह कोशिश कर रहे हैं कि 2019 के चुनाव से पहले ब्रांड मोदी-शाह को एक बार फिर अजेय सिद्ध कर सकें.
बीजेपी की राजनीति पर नज़र रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी बताती हैं, “अगर इस चुनाव में बीजेपी की जीत होती है तो ये बात और मज़बूत हो जाएगी कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी अजेय है, वो कोई भी चुनाव कहीं पर भी जीत सकते हैं और बीजेपी के अंदर की राजनीति में उनके अलावा कोई और मुद्दा या व्यक्ति महत्व नहीं रखता है.”
“कर्नाटक के चुनाव में बीजेपी के कई स्थानीय नेता थे जैसे येदियुरप्पा और ईश्वरप्पा, लेकिन सबसे बड़े प्रचारक शाह और मोदी ही थे. एक दिलचस्प बात ये है कि अमित शाह इस चुनाव से एक रणनीतिकार के खांचे से निकलकर राजनेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं क्योंकि उन्होंने काफ़ी प्रचार किया है. वो भी एक ऐसे प्रदेश में जहां उनके लिए भाषा एक सीमा थी. उनके भाषणों का अनुवाद किया जाता था क्योंकि वह अंग्रेज़ी में नहीं बोलते हैं.”
जोशी बताती हैं कि बीजेपी की जीत होने की स्थिति में मोदी और शाह की जोड़ी इतनी ताक़तवर हो जाएगी कि आगामी चुनावों में यही दोनों रणनीति भी तय करेंगे, चुनाव करवाएंगे भी और जीत का श्रेय भी इनको ही मिलेगा; सरल शब्दों में कहें तो इससे बीजेपी में ‘एक व्यक्ति पार्टी’ की विचारधारा संगठन से बड़ी हो जा सकती है. लेकिन अगर इस चुनाव में सिद्धारमैया अपनी कुर्सी बचाने में सफल होते हैं तो बीजेपी के लिए ये बेहद चुनौतीपूर्ण होगा.
जोशी कहती हैं, “अगर सिद्धारमैया कर्नाटक में अपनी कुर्सी बचाने में सफल होते हैं तो गुजरात से जो एक ट्रेंड शुरू हुआ है, वो आगे बढ़ेगा. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को गुजरात बचाने में काफ़ी मेहनत करनी पड़ी, मोदी ने खुद 37 रैलियां कीं. और वहां जीएसटी, नोटबंदी और किसानों से जुड़े मुद्दे उभर कर सामने आए, मैंने पहली बार देखा कि प्रधानमंत्री मोदी को जनता के मंच से खुलेआम भला-बुरा कहा जा रहा था. ऐसे में इस अहम चुनाव में मोदी की राष्ट्रीय राजनीति पर जो पकड़ है वो पहली बार हिलती हुई दिखी. इसके बाद ये सिलसिला उपचुनाव में भी देखने को मिला. और अगर सिद्धारमैया ये चुनाव जीत जाते हैं तो मैं इसे एक राष्ट्रीय ट्रेंड का हिस्सा मानूंगी जहां से कांग्रेस नेतृत्व की स्थिति में आ जाएगी और बीजेपी के सामने एक ताक़तवर प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरेगी.”
इसके साथ ही उन्होंने 2019 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिलने की स्थिति में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जताई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कर्नाटक चुनाव के नतीजों का उनके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा.
कांग्रेस की राजनीति को क़रीब से देखने वाली वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता बताती हैं, “अगर इस चुनाव में कांग्रेस जीत जाती है तो इससे पार्टी समेत राहुल गांधी का भविष्य उज्ज्वल हो जाएगा. कांग्रेस के लिए कर्नाटक एक अहम राज्य है. ये दक्षिण का इकलौता राज्य है जहां पर कांग्रेस की सरकार है और भाजपा के पास दक्षिण भारत में कोई भी राज्य नहीं है. ऐसे में कर्नाटक उनके लिए अहम है. इसके बाद मध्यप्रदेश राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में ये उनके लिए एक मनोबल बढ़ाने वाली जीत होगी.”
स्मिता गुप्ता कहती हैं कि इसमें दो राय नहीं है कि ये जीत राहुल गांधी के भविष्य के लिए अहम साबित होगी. राजनीतिक हलकों में उनके क़द में बढ़ोतरी होगी और गठबंधन की राजनीति में भी कांग्रेस के लिए मोलभाव करना आसान होगा और अगर कांग्रेस कर्नाटक को गंवा देती है तो ये राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा.
वह कहती हैं, “अगर कांग्रेस ये चुनाव हार जाती है, तो विपक्ष की गठबंधन राजनीति में राहुल गांधी को गठबंधन का नेता बनाना बेहद मुश्किल हो जाएगा. राहुल गांधी को और ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.” “2014 के चुनावों में ऐसे कई लोगों ने भाजपा को वोट दिया था जो बीजेपी के वोटबैंक का स्वाभाविक हिस्सा थे. ऐसे लोगों ने वोट इसलिए दिया था क्योंकि उन्हें लगा कि देश को एक मज़बूत नेतृत्व की जरूरत है. लेकिन अब काफ़ी लोग मौजूदा केंद्र सरकार से ऊबते से नज़र आते हैं और उनको शायद लग रहा है कि कुछ ठीक नहीं हुआ हैं. नौकरियां नहीं मिल रही हैं. किसान आत्महत्या कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस अगर सिद्धारमैया जैसे नेता के नेतृत्व में जीत जाती है तो लोगों को एक अलग संदेश जाएगा.”