मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर स्थित पीठ ने प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण 14 फीसद से बढ़ाकर 27 फीसद किए जाने पर पूर्व में लगाई गई अंतरिम रोक को बरकरार रखा है। मामले की अगली सुनवाई दो नवंबर लिए बढ़ा दी गई। बुधवार को प्रशासनिक न्यायाधीश संजय यादव व जस्टिस बी. श्रीवास्तव की पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने राज्य शासन को चार याचिकाओं पर जवाब व याचिकाकर्ताओं को प्रत्युत्तर देने के लिए समय प्रदान कर दिया। जबलपुर निवासी छात्रा आकांक्षा दुबे सहित अन्य की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा।
उन्होंने दलील दी कि राज्य शासन का आठ मार्च 2019 को जारी संशोधन अध्यादेश अवैधानिक है। ओबीसी आरक्षण में संशोधन के कारण प्रदेश में ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़कर 27 फीसद हो गया है। नतीजतन कुल आरक्षण 50 से बढ़कर 63 फीसद हो गया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत 50 फीसद से अधिक आरक्षण नहीं किया जा सकता।
एक अन्य याचिका में कहा गया कि एमपीपीएससी ने नवंबर-2019 में 450 शासकीय पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया में 27 प्रतिशत पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कर लिए। शांतिलाल जोशी सहित पांच छात्रों ने एक अन्य याचिका में कहा कि 28 अगस्त 2018 को मप्र सरकार ने 15,000 उच्च माध्यमिक स्कूल शिक्षकों लिए विज्ञापन प्रकाशित कर भर्ती परीक्षा कराई। 20 जनवरी 2020 को इस संबंध में सरकार ने इन पदों में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू करने की नियम निर्देशिका जारी कर दी।
अधिवक्ताओं ने दलील दी कि भर्ती प्रक्रिया 2018 में आरंभ हुई, लेकिन राज्य सरकार ने 2019 का अध्यादेश इसमें लागू किया, जो अनुचित है। अधिवक्ता आदित्य संघी ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ओबीसी आरक्षण 14 फीसद से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का अध्यादेश 19 मार्च 2019 में स्थगित कर चुका है। इसलिए किसी भी सरकारी भर्ती या शैक्षणिक प्रवेश प्रक्रिया में 14 फीसद से अधिक ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।