दुखद अब भारत के बच्चों में भी कोरोना के लक्षण दिखने लगे हैं: AIIMS

कोरोना वायरस की अभी तक जितनी भी रिपोर्ट आई हैं, उसमें बच्चों के संक्रमित होनी की संख्या बहुत कम है. जो भी मामले सामने आए हैं, उसमें बच्चों में कोरोना के कोई लक्षण नहीं या बहुत हल्के लक्षण देखे गए हैं. इटली, स्पेन, ब्रिटेन और अमेरिका के कुछ बच्चों में कोरोना से संबंधित एक नए सिंड्रोम दिखने की भी बात सामने आ चुकी है.

इस घातक लक्षण को मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (MIS-C)का नाम दिया गया है. चिंता की बात ये है कि अब भारत के बच्चों में भी ये लक्षण सामने आने लगे हैं.

अन्य देशों की तुलना में भारत में अभी MIS-C के कम ही मामले देखने को मिले हैं. AIIMS दिल्ली में MIS-C के दो मामलों की स्टडी की गई है जिसमें पाया गया कि इन बच्चों को तेज बुखार था जबकि बाकी के लक्षण अलग-अलग थे. ढाई साल के बच्चे को कफ, नाक बहने और दौरा पड़ने की शिकायत थी तो छह साल के बच्चे में बुखार और शरीर पर दाने थे. इस बच्चे में कफ या दौरे जैसे लक्षण नहीं थे.

मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम में बच्चों में तेज बुखार, कुछ अंगो का सही तरह से काम ना करना, शरीर में अत्‍यधिक सूजन दिखने जैसे लक्षण दिखते हैं. ये लक्षण बहुत अधिक तक कावासाकी बीमारी के लक्षणों से मिलते-जुलते हैं. हालांकि जर्नल सेल में छपी एक नई स्टडी के मुताबिक, MIS-C और कावासाकी बीमारी में धमनियों को होने वाले नुकसान के लक्षण थोड़े अलग होते हैं.

स्टडी के मुताबिक, कावासाकी और MIS-C में तेज बुखार, कंजक्टीवाइटिस , पैरों और गले में सूजन, रैशेज जैसे एक जैसे ही लक्षण पाए जाते हैं जबकि सिर्फ  MIS-C में सिर दर्द, पेट दर्द, उल्टी, गले में खराश और कफ जैसे लक्षण ज्यादा पाए जाते हैं.

बच्चों और बड़ों के इम्यूनिटी रिस्पॉन्स में अंतर होता है और शरीर में वायरल का प्रवेश भी इनमें अलग-अलग तरीके से होता है. इसलिए बच्चों में ऐसी गंभीर बीमारियां जल्दी नहीं पाई जाती हैं.

एम्स के बाल चिकित्सा विभाग के डॉक्टर राकेश लोढ़ा का कहना है, ‘बच्चों का इम्यून रिस्पॉन्स बहुत मजबूत होता है और वैक्सीनेशन की वजह से भी इनकी इम्यूनिटी प्रशिक्षित हो जाती है. कोरोना वायरस उम्र के हिसाब से लोगों को ज्यादा शिकार बना रहा है लेकिन अच्छी इम्यूनिटी होने की वजह से बच्चे जल्दी ठीक हो जा रहे हैं.’

बुजुर्गों की तरह बच्चों में डायबिटीज या दिल से संबंधित कोई पुरानी बीमारी भी नहीं होती है इसलिए भी उनमें कोरोना का गंभीर खतरा कम होता है. स्टडी के नतीजों से Covid-19 से संक्रमित बच्चों का इलाज ढूंढने में और मदद मिल सकती है क्योंकि 12 साल से कम के बच्चों को रेमडेसिवीर दवा नहीं दी जा सकती है और प्लाज्मा थेरेपी भी दो दिनों तक देने के बाद असर दिखाती है.

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