इस व्यवस्था में व्यापारी भेजे जाने वाले माल का नाम, उसकी मात्रा, उसका मूल्य और देय टैक्स की जानकारी पोर्टल पर डालेंगे. इसके बाद पोर्टल से ई-इनवॉइस जनरेट होगी. इसी इनवॉइस के आधार पर आगे व्यापारी ई-वे बिल जारी करेंगे. पोर्टल पर इनवॉइस की जानकारी दर्ज होने के तुरंत बाद सरकार के अधिकारी इसे पढ़ सकेंगे.
शुरुआती चरण में 500 करोड़ रुपए से अधिक के टर्नओवर वाली कंपनियां और व्यापारियों के लिए ही इसे अनिवार्य किया गया है.मौजूदा समय में इस व्यवस्था से बैंक, बीमा समेत वित्तीय सेवाओं से जुड़ी कंपनियों और पार्सल सेवा दे रहीं ट्रांसपोर्ट कंपनियों को बाहर रखा गया है. जानकारों का कहना है कि सरकार जीएसटी आने के बाद हो रही टैक्स चोरी से परेशान है. वह ज्यादा पारदर्शी सिस्टम बनाने पर जोर दे रही है. इससे जाली इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) लेने की घटनाओं पर रोक लग सकेगी. जानकारों ने साफ किया है कि अगर कंपनी अपनी यूनिट से बाहर शहर के भीतर भी माल भेजना चाहेगी तो उसे ई-इनवाइस ही जनरेट करनी अनिवार्य होगा.
ई-इनवॉइस बिलिंग सिस्टम के तहत इनवॉइस प्रणाली में खास तरह से सभी जगह समान प्रारूप के बिल बनाए जाएंगे. यह बिल सभी जगह एक समान रूप से बनेंगे और रियल टाइम दिखाई देंगे यानि अभी कोई किसी सामान को आइटम लिख रहा है, कोई प्रोडक्ट लिख रहा है और छूट के लिए कोई डिस्काउंट लिख रहा है. कोई एग्जम्पशन लिख रहा है. ऐसा नहीं चलेगा. इलेक्ट्रॉनिक इनवॉइस बिलिंग सिस्टम में हर एक हेड को स्टैंडर्ड फॉर्मेट में लिखा जाएगा.
कंपनियों को अपनी मैन्युफेक्चरिंग या फिर दफ्तर से बाहर भेजी जाने वाली हर सेवाओं के लिए कंप्यूटरीकृत इनवॉइस ही लेनी होगी. इसके लिए वही सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना होगा, जिसमें केंद्र सरकार काम करती है.