पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की तिथि से पितृ पक्ष आरंभ हो रहे हैं. इस दिन चतुर्दशी की तिथि प्रात: 9 बजकर 38 मिनट पर समाप्त हो रही है. इसके बाद पूर्णिमा की तिथि शुरू हो जाएगा. पूर्णिमा की तिथि को प्रथम श्राद्ध है जिसे पूर्णिमा श्राद्ध भी कहा जाता है.
श्राद्ध का महत्व और फल
पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण करने से पुण्य प्राप्त होता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जो दोष बताए गए हैं उनमें पितृ दोष भी बताया गया है. पितृ दोष के कारण व्यक्ति के जीवन में सदैव परेशानी, संकट और संघर्ष बने रहते हैं. इसलिए इस दोष का निवारण बहुत आवश्यक बताया गया है. पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के जरिए पितरों को आभार प्रकट किया जाता है. ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और अपना आर्शीवाद प्रदान करते हैं. वहीं श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
पितृ पक्ष में श्राद्ध कैसे करें
वैदिक धर्म के अनुसार पितरों का श्राद्ध उनकी मृत्यु तिथि पर ही किया जाना चाहिए. मान्यता है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी की तिथि को करना श्रेष्ठ है. वहीं यदि अकाल मृत्यु होने पर श्राद्ध चतुर्दशी के दिन श्राद्ध किया जाना चाहिए. साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है. इसके अतिरिक्त जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है तो उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाना चाहिए.
पिंड दान की तरीका
पितृ पक्ष में पिंडदान का भी महत्व है. मान्यता के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड और शहद को मिलाकर बने पिंडों को पितरों को अर्पित किया जाता है. इसके साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है.
श्राद्ध कर्म क्यों किया जाता है
श्राद्ध कर्म करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है. पितृ पक्ष में दान देने की भी परंपरा है. श्राद्ध करने से दोष समाप्त होते हैं. यदि जन्म कुंडली में पितृदोष है तो यह दोष समाप्त होता है. जिससे रोग, धन संकट, कार्य में बाधा आदि समस्याएं दूर होती हैं. श्राद्ध करने से परिवार में आपसी कलह और मनमुटाव का नाश होता है. घर के बड़े सदस्यों का सम्मान बढ़ता है. पितृ पक्ष के दौरान धैर्य और चित्त को शांत रखते हुए कार्य करने चाहिए. बुराई, मास- मदिरा और गलत कार्यों से बचना चाहिए. इस दौरान किसी को अपशब्द भी नही कहने चाहिए.