लॉस एंजेल्स। विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने सुरक्षा परिषद में गुरुवार को ईरान के ख़िलाफ़ अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबंध फिर से लागू करने किए जाने की माँग को लेकर ‘विधिवत’ प्रस्ताव पेश किया। उन्होंने बाद में ट्वीट किया ‘ईरान के ख़िलाफ़ फिर से प्रतिबंध की प्रक्रिया प्रारंभ। सुरक्षा परिषद में लिखित में पत्र जमा कराया।” पोंपियो ने कहा है कि ईरान आणविक समझौते की शर्तों का पालन करने में पूरी तरह विफल रहा है। भारत सहित पंद्रह सदस्यीय सुरक्षा परिषद के पास इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए तीस दिनों का समय है। इस प्रस्ताव पर परिषद के स्थायी सदस्यों में चीन, रूस, इंग्लैंड, फ़्रांस और अमेरिका क्या रूख लेते हैं, अभी कहना कठिन है। ओबामा कार्यकाल में सन 2015 में पाँच बड़े देशों के बीच हुए आणविक समझौते में तीन यूरोपीय देशों -फ़्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड पहले से ही अमेरिकी प्रस्ताव को लेकर खिन्न हैं। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि ज्वाइंट कंप्रिहेंसिव प्लान आफ एक्शन ( जे सी पी ओ ए) से अमेरिका पहले ही मई, 2018 में अलग थलग हो चुका था। उस समय राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पल्ला झाड़ते हुए इसे एक अत्यंत ख़राब समझौता बताया था और कहा था कि इससे ईरान को भविष्य में आणविक हथियार बनाने का मौक़ा हाथ लग जाएगा।
ट्रम्प की ओर से इस समझौते से पल्ला झाड़ने के तर्क को आधार मान कर इंग्लैंड, जर्मनी और फ़्रांस अमेरिकी प्रस्ताव से असहमत हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार को कहा था कि वह ईरान के ख़िलाफ़ पूर्व प्रतिबंध फिर से लगाए जाने के इच्छुक हैं। बीते शुक्रवार को ईरान के ख़िलाफ़ हथियारों की आपूर्ति पर रोक को लेकर अमेरिकी प्रस्ताव पर एक देश को छोड़ कर शेष सभी असहमति जाता चुके हैं। रूस और चीन ने भी अमेरिकी प्रस्ताव को अनावश्यक बताया है। ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने इस प्रस्ताव को अनोचित्यपूर्ण बताया है। ईरान के रक्षा मंत्री ने दबाव की राजनीति के तहत अमेरिकी प्रस्ताव को नज़रंदाज करते हुए गुरुवार को अपने बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रमों को जारी रखने एवं 870 मील दूरी की भूतल से भूतल की क्रूज मिसाइल होने का दावा किया है। सुरक्षा परिषद में बारी बारी से अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया में परिषद के अध्यक्ष इंडोनेशिया के डायऐन तरीयनस्याह दजनी ने औपचारिक रूप से पत्र ले लिया है। इसी के साथ पत्र पर कार्रवाई के लिए मान्य नियमानुसार 30 दिन का समय निर्धारित है।