जिला कारागार का खुला फाटक और निकले क्रांतिकारी
बलिया। देश में सबसे पहले आजाद होने वाला जिला बलिया में बुधवार को जश्न के तौर पर जिला कारागार का फाटक खोला गया। जेल के अंदर से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व जिला प्रशासन के आला अफसर निकले तो माहौल में ‘भारत माता की जय और वंदेमातरम गूंज उठा। हालांकि, कोरोना के चलते यह पहली बार है कि बलिया बलिदान दिवस सादगीपूर्ण ढंग से मनाया गया। 19 अगस्त 1942 को देश में सबसे पहले बलिया आजाद हुआ था। जिले के क्रांतिकारी इतिहास की जानकारी देते हुए रंगकर्मी विवेकानंद सिंह ने बताया कि आजादी के लिए संघर्ष को तीव्र करते हुए दिल्ली से अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया गया तो बलिया में करो या मरो के रूप में क्रांतिकारी अंग्रेजी हुकूमत से दो-दो हाथ करने लगे। 1942 में नौ अगस्त से शुरू हुई क्रांति की ज्वाला 18 अगस्त तक इतनी धधक उठी कि अंग्रेजों की चूलें हिल गयीं। आखिरकार 19 अगस्त 1942 में जिला कारागार में बंद क्रांतिकारियों को तत्कालीन डीएम जे निगम ने छोड़ने का फ़ैसला लिया।
19 अगस्त को जिला कारागार का फाटक खोला गया और चित्तू पांडेय, महानन्द मिश्रा जैसे सैकड़ों क्रांतिकारी बाहर निकले। चित्तू पांडेय ने देश में सबसे पहले बलिया का शासन अपने हाथ में ले लिया। तब चौदह दिन तक बलिया आजाद रहा था। उसी के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष जिला कारागार का फाटक खोला जाता है। बुधवार को डीएम श्रीहरि प्रताप शाही, एसपी देवेंद्र नाथ, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामविचार पांडेय, चित्तू पांडेय के प्रपौत्र विनय पांडेय व पूर्व नपाध्यक्ष लक्ष्मण गुप्ता आदि लोग बाहर निकले। बाहर खड़े लोगों ने भारत माता की जय बोला। जेल से बाहर निकले सेनानी और जिला प्रशासन के अधिकारियों ने सेनानियों को नमन करते हुए शहीद राजकुमार बाघ की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। यहां से सभी लोग कुंवर सिंह चौराहे पर वीर कुंवर सिंह की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। फिर टीडी कालेज चौराहे पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामदहिन ओझा, चित्तू पांडेय चौराहे पर चित्तू पांडेय व शहर में विभिन्न प्रतिमाओं पर माल्यार्पण कर बलिया बलिदान दिवस मनाया गया।