सीबीआई जांच और सुप्रीम कोर्ट में एपीएस भर्ती 2010 का मामला होने के बावजूद शुरू की गई स्थायीकरण की प्रक्रिया पर सवालिया निशान!

लखनऊ : उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की अपर निजी सचिव भर्ती 2010 से चयनित और उत्तर प्रदेश सचिवालय में कार्यरत 223 अभ्यर्थियों की मांग पर सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा शुरू की गई स्थायीकरण की प्रक्रिया पर असफल अभ्यर्थियों ने सवाल उठाते हुए रोक लगाने की मांग की है। उल्लेखनीय है कि आयोग की पांच वर्ष की भर्तियों की जांच के दौरान सीबीआई ने अपर निजी सचिव भर्ती 2010 में बड़े पैमाने पर धांधली पकड़ी थी और तमाम अवरोधों के बाद नोटिफिकेशन जारी होने के पश्चात सीबीआई विधिवत इस भर्ती की जांच कर रही है। इसी बीच कुछ असफल अभ्यर्थियों ने भर्ती की अनियमितताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर दी, जिस पर अभी सुनवाई अंतिम दौर में है। राज्य सरकार की ओर से सचिवालय प्रशासन विभाग ने अभी 30 जून, 2020 को सुप्रीम कोर्ट में अमेंडमेंट काउंटर एफिडेविट दाखिल करके अवगत कराया है कि हिंदी शॉर्टहैंड में फेल अभ्यर्थियों को गलतियों में 5% के बाद 3% अतिरिक्त छूट देने संबंधी 1987 की अधिसूचना नई सेवा नियमावली 2001 लागू होने के साथ ही समाप्त हो चुकी है, जिसके कारण लोक सेवा आयोग को प्रश्नगत छूट देने का अधिकार नहीं है।

चूंकि, अपर निजी सचिव भर्ती 2010 में आयोग ने 50 से अधिक अभ्यर्थियों का चयन प्रश्नगत छूट देकर किया गया है, लिहाजा सरकार के काउंटर के बाद सुप्रीम कोर्ट से इन अनियमित नियुक्तियों की बर्खास्तगी की संभावना बन गई है, इसके साथ ही सीबीआई भी अब इन नियुक्तियों पर शिकंजा कस सकती है, लिहाजा इन अभ्यर्थियों ने ऐसी कोई कार्यवाही होने से पहले अपने आप को सचिवालय सेवा में स्थाई कराने की जोड़-तोड़ शुरू कर दी ताकि अपने स्थायीकरण का आदेश सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत करके सहानुभूति की दुहाई देकर अपनी नौकरी को बचा सके। ऐसे में सचिवालय प्रशासन विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर सवालिया निशान लगने लगे हैं कि एक ओर तो वह प्रश्नगत नियुक्ति में धांधली को प्रमाणित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन अभ्यर्थियों का स्थायीकरण भी करा रहे हैं। ज्ञातव्य हो कि इससे पूर्व सचिवालय प्रशासन विभाग के अधिकारियों ने ही सीबीआई जांच के दौरान इन अभ्यर्थियों से शपथ पत्र पर अंडरटेकिंग लेकर अस्थाई रूप से कार्यभार ग्रहण करा दिया था।

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