यूपी कांग्रेस अध्यक्ष के आगे सपा प्रदेश अध्यक्ष क्यों ‘लल्लू’ साबित हो रहे!

– नवेद शिकोह

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कौन है? इस सवाल का जवाब शायद आम इंसान नहीं दे पाये, लेकिन राजनीति की कम जानकारी रखने वाला आम इंसान भी ये बता सकता है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू हैं। वजह ये है कि अल्पकाल में पद संभालने के बाद से ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू सुर्खियों और चर्चाओं में बने हुए हैं। जेल जाना, विरोध प्रदर्शन करना, धरना देना, पैदल यात्रा करना, जैसे जमीनी संघर्षों के साथ वो सिसकती कांग्रेस को आक्सीजन दे रहे हैं। लगने लगा है कि यहां भाजपा के मुकाबले सपा नहीं कांग्रेस है। भाजपा भी अपनी सियासी चाल के तहत सपा के स्पेस पर कांग्रेस को स्थापित कर रही है। प्रियंका गांधी और अजय लल्लू के हर एक्शन को रिएक्ट कर उन्हें आगे बढ़ने का मौका दे रही है। जिसका कारण है कि भाजपा को कांग्रेस की अपेक्षा सपा-बसपा की जातिगत राजनीति से ज्यादा खतरा है। कांग्रेस थोड़ा आगे जायेगी तो इसका नुकसान सपा-बसपा को होगा। और कांग्रेस 2022 के विधानसभा चुनाव तक एक वर्ष में चर्चा में रहकर अपना थोड़ा-बहुत जनाधार बढ़ा भी ले तो भी भाजपा को टक्कर देनें की स्थिति में नहीं आ सकती।

गौरतलब है कि पिछले करीब दो दशक से ज्यादा वक्त से कांग्रेस की इस सूबे से जड़ें अखड़ गयीं हैं। लाख कोशिशों के बाद भी वो पिछले विधानसभा चुनाव में सात सीटों पर ही सिमट गयी। जबकि योगी सरकार से पहले यहां सपा की बहुमत की सरकार थी और मोदी लहर में भी उसनें 47 सीटें बचा लीं थी। इस मायने से समाजवादी पार्टी सबसे बड़े संगठन और जनाधार वाला विपक्षी दल है।इस क्षेत्रीय दल का अस्तित्व का आधार भी यही यूपी है। बावजूद इसके इस दल के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम की तुलना में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने बहुत ही कम समय में जमीनी संघर्ष करके यूपी में पार्टी की जड़े जमाने का निरंतर प्रयास जारी रखा है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि कांग्रेस ने इन्हे़ पूरा मौका दिया है और सत्तारूढ़ भाजपा भी उन्हें रिएक्टर करती है। जबकि नरेश उत्तम सत्ता के विरुध जमीनी संघर्ष में उतना नजर नहीं आते जितना की मुख्य विपक्षी दल के नाते वो उभर सकते हैं। सपा की निष्क्रियता के कुछ कारण भी हैं। योगी-मोदी की ताकतवर सरकारें अखिलेश की पिछली सरकार के तमाम मामलों की सीबीआई जांच की धमकियां देकर डराती रही है। कहा जाता है कि किसी बड़ी जांच से बचने के लिए योगी सरकार के खिलाफ सपा ज्यादा आक्रामक नहीं होना चाहती। विरोधी को शांत रखने के लिए सत्ता के उपयोग का एक ट्रेलर सपा के दिग्गज नेता आजम ख़ान के अंजाम में दिखायी भी दिया है।

इन मजबूरियों में भी सपा प्रदेश अध्यक्ष अपनी पार्टी के संघर्ष की विरासत चाह कर भी नहीं निभा पा रहे हैं। अतीत में जाइये तो मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाले सपा जैसे क्षेत्रीय दल ने विपक्षी दल की भूमिका में ही गरीबों-किसानों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए सदन से लेकर सड़क पर खूब संघर्ष करके पार्टी की जड़ों को इस सूबे में स्थापित किया था। इसके बाद मुलायम के भाई शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहकर संगठन को मजबूत किया। जब-जब उनकी पार्टी विपक्ष में रही तब-तब शिवपाल सत्ताधारियों को विरोध के रडार में घेरे रहते थे। शिवपाल बतौर प्रदेश अध्यक्ष सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की मार तक खाये और जेल की हवा भी खाते रहे। पर अब सपा में अखिलेश राज के दौरान उस प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका ही कमजोर हो गयी जिस प्रदेश में पार्टी का अस्तित्व है। लगभग साढ़े तीन साल की योगी सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के ट्वीटर हैंडिल ही विपक्षी भूमिका में नजर आते हैं। और वो इस तरह अपनी पार्टी के शीर्ष नेता के रूप विपक्षी नेता के स्पेस पर कब्जा किये हैं। ऐसे में जमीनी नेता के अतीत वाले नरेश उत्तम एक उत्तम संघर्षकारी अध्यक्ष के तौर पर ना खुद उभर पा रहे हैं और ना पार्टी को कांग्रेस की अपेक्षा आक्रामक विपक्ष की सूरत में ढाल पा रहे हैं।

ये सच है कि कई वर्षों से कांग्रेस लाख कोशिशों के बाद भी उत्तर प्रदेश में खोया अपना जनाधार वापस नहीं ला पा रही है। संघर्षों और सक्रियता के बाद भी कांग्रेस का तुरुप का पत्ता कहे जाने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा अभी तक चर्चाओं के सिवा सफलता का एक भी मील का पत्थर तक नहीं पार कर सकीं। पिछले विधानसभा चुनाव में वो बिना किसी ओहदें के सक्रिय थीं, लोकसभा चुनाव से पहले वो कांग्रेस महासचिव और यूपी की प्रभारी बनीं। इस बड़ी जिम्मेदारी के साथ उन्होंने लोकसभा चुनावी प्रचार में जी जान लगा दी। लेकिन विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनावी नतीजों में भी प्रिंयका का जादू नहीं चल सकता। दुर्दशा इतनी हुई की कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को रायबरेली की अपनी जमी-जमायी लोकसभा सीट भी गवानी पड़ी। इसके बाद राज बब्बर को हटा कर प्रियंका गांधी ने विधायक अजय कुमार लल्लू को उ.प्र.कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी। लोगों को लगा कि नवनिर्वाचित अध्यक्ष डूबती कांग्रेस की नैया का एक और छेद साबित होकर पार्टी को और भी गर्त में ले जायेंगे,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लल्लू यूपी की चुनौतीपूर्ण राजनीति में लल्लू साबित नहीं हुए बल्कि फिल्हाल वो यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी को पछाड़ कर सपा के प्रदेश अध्यक्ष को लल्लू साबित कर रहे हैं।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com